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दुख का कारण पदार्थ

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दो खोजे हैं. एक है आवश्यकता की पूर्ति की खोज और दूसरी है सुख की खोज. आवश्यकता की पूर्ति पदार्थ से ही संभव है, अध्यात्म से वह नहीं हो सकती. सुख की उपलब्धि अध्यात्म से ही संभव है, पदार्थ से नहीं हो सकती. खेत-खलिहानों में या बाजार में जाने पर आवश्यकता की पूर्ति होती है. […]

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दो खोजे हैं. एक है आवश्यकता की पूर्ति की खोज और दूसरी है सुख की खोज. आवश्यकता की पूर्ति पदार्थ से ही संभव है, अध्यात्म से वह नहीं हो सकती. सुख की उपलब्धि अध्यात्म से ही संभव है, पदार्थ से नहीं हो सकती. खेत-खलिहानों में या बाजार में जाने पर आवश्यकता की पूर्ति होती है.

पदार्थ के किसी भी क्षेत्र में जाने पर, पदार्थ की सीमा में जाने पर, यह सच है कि आवश्यकता की पूर्ति होगी. पदार्थ का समूचा क्षेत्र आवश्यकता-पूर्ति का क्षेत्र है. अध्यात्म का क्षेत्र इससे बिल्कुल उल्टा है. वह है सुख-पूर्ति का क्षेत्र. मनुष्य इस विषय में भ्रांत है. जो आवश्यकता-पूर्ति का क्षेत्र है, उसे उसने सब कुछ देने वाला मान लिया है, दुख से छुटकारा देने वाला मान लिया.

अगर इससे सुख की पूर्ति होती तो मैं समझता हूं कि आज के युग का व्यक्ति सबसे अधिक सुखी होता. आज विज्ञान ने जितने पदार्थ उपलब्ध कराये हैं, वे अनगिनत हैं. उनका विकास चरम सीमा को पार कर गया है. फिर भी आदमी दुखी है, उसे सुख नहीं मिला है.
हम इस सच्चाई को स्वीकार करें कि जिन मनुष्यों को अधिक पदार्थ उपलब्ध हैं, वे ही अधिक पागल होते हैं. वे ही अधिक आत्महत्या करनेवाले होते हैं. वे ही अनिद्रा के शिकार होते हैं. उन लोगों में ही अपराध की वृत्ति अधिक पनपी है. इन सब रोगों का एक ही कारण है- पदार्थों की अधिक उपलब्धि. हमें इसी पर विचार करना है. यदि पदार्थ से सुख होता तो ये न्यूनताएं कभी मनुष्य में नहीं पनपतीं.
।। आचार्य महाप्रज्ञ ।।

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