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छठ महापर्व: सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम कर रहीं मुस्लिम महिलाएं, सेवा की भावना से बनाती हैं चूल्हा

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जूही स्मिता पटना: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की बात ही निराली है. छठ में जितनी अनेकता में एकता है, उतनी शायद ही किसी और पूजा में दिखता है. सूर्य की उपासना का यह महापर्व सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी कायम करता है. छठ पर्व करने वाली व्रतीमहिलाएं जिस कच्चे चूल्हे पर प्रसाद बनाती […]

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जूही स्मिता

पटना: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की बात ही निराली है. छठ में जितनी अनेकता में एकता है, उतनी शायद ही किसी और पूजा में दिखता है. सूर्य की उपासना का यह महापर्व सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी कायम करता है. छठ पर्व करने वाली व्रतीमहिलाएं जिस कच्चे चूल्हे पर प्रसाद बनाती है, उस चूल्हे को कई मुस्लिम महिलाएं सफाई और शुद्धता का ख्याल रखते हुए बड़े ही मनोयोग से बनाती हैं. आपको ये महिलाएं कदमकुआं, दारोगा राय पथ, आर ब्लॉक और जेपी गोलंबर के पास चूल्हा बनाते हुए हुए दिख जायेंगी.
इन इलाकों की मुस्लिम महिलाएं दुर्गापूजा के बाद से ही छठ पर्व के लिए चूल्हा तैयार करने में जुट जाती हैं. ये महिलाएं पिछले करीब 20-30 वर्षों से इन चूल्हों को बनाती हैं.
मैं पिछले 20 सालों से चूल्हा बना रही हूं. मिट्टी के चिकना बनाने के लिए कंकड़-पत्थर हाथ से चुनकर निकालती हूं. चूल्हे को बनाते समय या कभी भी हमें इस बात का ख्याल नहीं रहता कि हम मुस्लिम होकर यह काम कर रहे हैं. हमारे पास व्रती चूल्हा लेने आते हैं. जब चूल्हा बन जाता है तो व्यापारी भी ऑर्डर पर ले जाते हैं. इस बार मैंने दुर्गापूजा से ही चूल्हा बनाना शुरू किया.
साजमून खातून, आर ब्लॉक
मैं पिछले 25 साल से चूल्हा बना रही हूं. जब हम चूल्हा बनाती हैं, तो इस दौरान पूरी सावधानी बरती जाती है और इस काम में साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखते हैं. क्योंकि छठ पर्व श्रद्धा और विश्वास का त्योहार है. वे बताती हैं कि उनके पास कई तरह के खरीददार आते हैं, इनमें कई लोग तो चूल्हे की अच्छी कीमत दे देते हैं, लेकिन कई मोल-भाव भी करते हैं.
मुक्तरी खातून, आर ब्लॉक
मैं पिछले 30 वर्षों से अपने पति के साथ छठ पर्व के लिए चूल्हा बना रही हूं. दस रुपये से चूल्हा बेचना शुरू किया था और अब इसकी कीमत 100 रुपये हो गयी है. गांव की रहने वाली हूं तो चूल्हा बनाना आता था. छठ पर्व में महिलाओं को चूल्हा पर खाना बनाते हुए देखती थी. यहीं वजह है कि इन्होंने चूल्हा बनाना शुरू किया. विश्वकर्मा के बाद से चूल्हा बनाना शुरू कर दिया था. हर साल 200 चूल्हा बनाती हूं.
मदीना खातून, कमला नेहरू
मैं पिछले 20 साल से चूल्हा बना रही हूं. सासु मां की मदद करते-करते अब उनके बाद खुद से बना रही हूं. बारिश की वजह से मिट्टी की कीमत बढ़ गयी है. प्रति ट्रैक्टर तीन हजार से लेकर चार हजार तक मिट्टी मिल रही है. भूसा भी 10-15 रुपये किलो मिल रहा है. फिर भी हम काम करते हैं. थोड़ी दिक्कत तो आती है लेकिन पैसा निकल जाता है. मुनाफे का सौदा नहीं है, बल्कि एक तरह से सेवा है.
मदीना खातून, मिलर ग्राउंड

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