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जानें व्रत रखने का क्‍या हैं विज्ञान

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श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ के भक्त श्रद्धावश व्रत नियम का पालन करते हैं. व्रत रखने के तीन कारण हैं- पहला दैहिक, दूसरा मानसिक और तीसरा आत्मिक रूप से शुद्ध होकर पुनर्जीवन प्राप्त करना और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होना. दैहिक में आपकी देह शुद्ध होती है. शरीर के भीतर के टॉक्सिन […]

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श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य
श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ के भक्त श्रद्धावश व्रत नियम का पालन करते हैं. व्रत रखने के तीन कारण हैं- पहला दैहिक, दूसरा मानसिक और तीसरा आत्मिक रूप से शुद्ध होकर पुनर्जीवन प्राप्त करना और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होना. दैहिक में आपकी देह शुद्ध होती है.
शरीर के भीतर के टॉक्सिन या जमी गंदगी बाहर निकल जाती है. इससे जहां शरीर निरोगी होता है, वहीं मन संकल्पवान बनकर सुदृढ़ बनता है. देह और मन के मजबूत बनने से आत्मा अर्थात् आप स्वयं खुद को महसूस करते हैं. आत्मिक ज्ञान का अर्थ ही यह है कि आप खुद को शरीर और मन से ऊपर उठकर देख पाते हैं.
हालांकि व्रत रखने का मूल उद्देश्य होता है- संकल्प को विकसित करना. संकल्पवान मन में ही सकारात्मकता, दृढ़ता और एकनिष्ठता होती है. संकल्पवान व्यक्ति ही जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता है. जिस व्यक्ति में मन, वचन और कर्म की दृढ़ता या संकल्पता नहीं है, वह मृत समान माना गया है. संकल्पहीन की बातों, वादों, क्रोध, भावना और उसके प्रेम का कोई भरोसा नहीं. ऐसे व्यक्ति कभी भी किसी भी समय बदल सकते हैं.
अब यदि आप व्रत नहीं रखेंगे, तो निश्चित ही एक दिन आपकी पाचन क्रिया सुस्त पड़ जायेगी. आंतों में सड़ाव होगा. पेट फूल जायेगा, तोंद निकल आयेगी. आप यदि कसरत करते भी हैं और पेट को न भी निकलने देते हैं, तो भी व्रत रखना पाचन तंत्र के लिए सर्वथा लाभकारी है. मगर इसका अर्थ पूर्णत: भूखा रहकर शरीर को सूखाना नहीं, बल्कि शरीर को कुछ समय के लिए आराम देना और उसमें से जहरीले तत्वों को बाहर करना है.
पशु, पक्षी भी अपने तरीके से भूखा रह कर खुद को स्वस्थ कर लेते हैं. इस क्रिया से मन-मस्तिष्क स्वस्थ हो जाते हैं. अत: रोग और शोक मिटाने वाले चतुर्मास में कुछ विशेष दिन व्रत रखें. चिकित्सक परहेज रखने का कहें, इससे पहले ही आप व्रत रखना शुरू कर दें. क्रमश:

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