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परमेश्वर के प्रेम में बने रहिए

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फादर ज्योतिष कुमार किंडो प्रिंसिपल, डॉन बॉस्को स्कूल, कोकर, रांची क्रिसमस का त्योहार हमें तीन बातों पर ध्यान देने को प्रेरित करता है-1. मुक्ति के इतिहास में बेतलेहम का योगदान 2. मुक्ति के इतिहास में मरियम का योगदान 3. मुक्ति के इतिहास में हमारा योगदान.जकारियस जो योहन बपतिस्ता का पिता था, माता मरियम यीशु खीस्त […]

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फादर ज्योतिष कुमार किंडो

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प्रिंसिपल, डॉन बॉस्को स्कूल,

कोकर, रांची
क्रिसमस का त्योहार हमें तीन बातों पर ध्यान देने को प्रेरित करता है-1. मुक्ति के इतिहास में बेतलेहम का योगदान 2. मुक्ति के इतिहास में मरियम का योगदान 3. मुक्ति के इतिहास में हमारा योगदान.जकारियस जो योहन बपतिस्ता का पिता था, माता मरियम यीशु खीस्त की मां, इन सभी ने परमेश्वर के निमंत्रण को कभी अस्वीकार नहीं किया, बल्कि मुक्ति के काम में परमेश्वर के सहभागी बनें.
आज के आधुनिक युग में, मुक्ति के इतिहास में हमारा क्या योगदान है? यीशु संसार में सब लोगों के लिए आये. अमीर-गरीब, मालिक-नौकर या किसी भी ओहदे के व्यक्ति क्यों न हों, सभी की मुक्ति के लिए यीशु आये. कभी-कभी हम यीशु से दूर हो जाते हैं, ईश्वर के विरुद्ध हम काम करते हैं, फिर भी यीशु हमारे दिल में आते हैं. हमारे पापों को क्षमा करते हैं. ईश्वर ने संसार को मुक्ति देने का मनुष्य के साथ जो करार किया था, वह उसे पूरा करते हैं.
आज के आधुनिक युग का प्रश्न है कि ईश्वर के मुक्ति विधान में मेरा क्या योगदान है? क्रिसमस का संदेश यीशु के नाम में ही निहित है. माता मरियम को संदेश देते समय ग्राबियल दूत का यह संदेश दिया- माता मरियम जिस पुत्र को प्रसव करेंगी, उसका नाम इमानएल होगा, जिसका अर्थ है- ईश्वर हमारे साथ है. यह बताने के लिए कि ईश्वर हमारे साथ हैं, यीशु इस दुनिया में आये. वे हमारी तरह मनुष्य बनें तथा संसार की सारी बातों को अनुभव किया.
इस जीवन के प्रलोभनों पर किस तरह से विजय प्राप्त की जाये और किस तरह सें ईश्वर की आज्ञा पूरी की जाये, आदि बातें उन्होंने अपने जीवन के द्वारा हमें बतलायीं. वे मानव जीवन की जटिलताओं को अच्छी तरह से समझते हैं, क्योंकि उन्होंने इसे जिया है, इसलिए क्रिसमस का पर्व हमारे जीवन में यह विश्वास लेकर आना चाहिए कि हम इस जीवन की परीक्षा में अकेले नहीं हैं, प्रभु यीशु हमारे साथ हैं.परमेश्वर से प्यार करने का क्या मतलब है?
इसे एक उदाहरण से समझिए. मान लीजिए आप सड़क पर चले जा रहे हैं. मौसम देखकर लगता है कि तूफान आनेवाला है. फिर देखते-ही-देखते आसमान में काली घटाएं छाने लगती हैं. बिजलियां कड़कने लगती हैं और बादलों की तेज़ गर्जन से कान फटने लगते हैं और फिर मूसलाधार बारिश होने लगती है.
आप यहां-वहां भागते हैं और सिर छिपाने की जगह ढूंढ़ते हैं. तभी आपको सड़क के किनारे एक घर नजर आता है. यह एक मज़बूत मकान है, जिसमें पनाह लेकर आप तूफान से बच सकते हैं. इस मकान से मिलनेवाली हिफाज़त के लिए आप कितने एहसानमंद होंगे!
आज हम भी मुसीबतों के तूफान में घिरे हुए हैं. दुनिया के हालात बद-से-बदतर होते जा रहे हैं. मगर हमारे लिए भी एक पनाह मौजूद है, जिसकी हिफाज़त में रहने से हमें ऐसा कोई नुकसान नहीं होगा, जिसकी भरपाई न की जा सके. वह पनाह क्या है? गौर कीजिए कि बाइबल क्या सिखाती है- “मैं यहोवा के विषय कहूंगा कि वह मेरा शरण स्थान और गढ़ है; वह मेरा परमेश्वर है, मैं उस पर भरोसा रखूंगा।”-भजन 91:2.
क्या यह हैरतअंगेज़ बात नहीं कि पूरे जहान को बनानेवाला, महाराजाधिराज यहोवा ही हमें पनाह दे सकता है, क्योंकि वह ऐसे हर प्राणी और चीज़ से कहीं ज़्यादा ताकतवर है, जो हमें नुकसान पहुंचा सकती है. चाहे हमारे साथ कितनी ही बुराई क्यों न हुई हो, यहोवा हमारे हर घाव को भर सकता है. हम यहोवा की पनाह में कैसे आ सकते हैं? हमें उस पर पूरा भरोसा रखना होगा. परमेश्वर का वचन हमसे गुज़ारिश करता है- “अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाये रखो.” (यहूदा 21)
हमें परमेश्वर के प्रेम में बने रहना होगा, यानी अपने स्वर्गीय पिता के साथ प्यार का एक मज़बूत रिश्ता कायम रखना होगा. तभी हम पक्का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ही हमारा शरणस्थान है.
परमेश्वर को पाने के तीन प्रमुख सिद्धांत
सिद्धांत एक : परमेश्वर आपसे बहुत प्रेम करता है. आपके जीवन के लिए उसकी एक अद्भुत योजना है. उसने आपको बनाया है. वह चाहता है कि आप भी उसे जानें और उसके साथ अनंत जीवन बिताएं. परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि अपना इकलौता पुत्र दे दिया. यीशु इसलिए आये, ताकि हममें से हर एक जन व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर को जान और समझ सके. केवल यीशु ही जीवन में अर्थ और उद्देश्य दे सकते हैं. तो प्रश्न है कि परमेश्वर को जानने से हमें कौन दूर रखता है?
सिद्धांत दो : हम सब पाप करते हैं और हमारे पापों ने ही हमें परमेश्वर से अलग किया है. हम उस अलगाव को, जो हमें परमेश्वर से दूर करता है, अपने पापों की वजह से महसूस करते हैं. बाइबल हमें बताती है- हम तो सब के सब भेड़ों की तरह भटक गये थे, हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग ले लिया.
हमारे दिल की गहराई में, परमेश्वर और उसके तरीकों के प्रति हमारा रवैया शायद एक सक्रिय विद्रोह या फिर एक निष्क्रिय उदासीनता की तरह है. लेकिन ये सब उसी का प्रमाण है, जिसे बाइबल पाप कहती है.
सिद्धांत तीन : हमारे पापों को धोने का एकमात्र तरीका यीशु मसीह हैं. केवल उनके द्वारा हम परमेश्वर के प्रेम को और हमारे जीवन के लिए जो उनकी योजना को जान सकते हैं. यीशु ने हमारे सारे पाप अपने ऊपर ले लिये. यह जानते हुए कि हमने कितना पाप किया है और कितना पाप आगे करेंगे, उन्होंने हमारे सारे पापों का भुगतान सलीब पर चढ़ कर, अपनी जान हमारे लिए देकर चुका दिया.
केवल यह जानना कि यीशु ने हमारे लिए क्या किया और वे हमें क्या दे रहे हैं, पर्याप्त नहीं है. परमेश्वर के साथ एक रिश्ता बनाने के लिए हमें उनको अपने जीवन में स्वागत करना होगा.

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