19.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 08:15 pm
19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति की कविताएं

Advertisement

बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति का जन्म बिहार के भागलपुर जिले में एक मार्च 1978 को हुआ. पैतृक निवास मुंगेर है. स्कूली शिक्षा बिहार के समस्तीपुर जिले के ताजपुर से हुई. पटना विश्वविद्यालय से स्नातक और फिर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमए किया. संप्रति ‘Centre for World Solidarity’ के ज्वाइंट डायरेक्टर हैं. लिखने-पढ़ने के शौकीन हैं. हिंदी […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति का जन्म बिहार के भागलपुर जिले में एक मार्च 1978 को हुआ. पैतृक निवास मुंगेर है. स्कूली शिक्षा बिहार के समस्तीपुर जिले के ताजपुर से हुई. पटना विश्वविद्यालय से स्नातक और फिर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमए किया. संप्रति ‘Centre for World Solidarity’ के ज्वाइंट डायरेक्टर हैं. लिखने-पढ़ने के शौकीन हैं. हिंदी और अंग्रजी भाषा में समान रूप से कविताएं लिखते हैं. इन्होंने इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट में रहते हुए प्लानिंग कमीशन के लिए बिहार और झारखंड में BRGF इवैल्यूएशन, ICSSR का शोध अध्ययन, मेनचेस्टर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेनिस रोजर्स के निर्देशन में शहरी हिंसा पर शोध किया है. इनके कई रिसर्च पेपर्स अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में छपे हैं. बालेंदुशेखर CRY के नेशनल फेलो भी रह चुके हैं.ब्लॉग – http://www.poemsofbalendu.com, ईमेल आईडी bsmangalmurty@gmail.com


दीवार ढाहनी है मुझे
एक दीवार है,
जिसमे कुछ दरारें हैं,
इस दीवार के उस पार एक सुनहरी नदी है,
जिसकी चांदी सी चमकती जलधारा है,
इस पर क्या है,
रेत है, मरुस्थल है,
तपिश है,
प्यास है,
उस पार जल है,
शीतल पवन है,
इस पार हौसला है,
उस पर अवसर है
ये चीजें हैं,
जो इस दीवार के परे हैं,
दीवार में कुछ दरारें हैं,
इन दरारों पर मै चोट करने आया हूँ,
उन अवसरों को देखा नहीं मैंने,
वो शीतलता नहीं देखी,
चांदी सी चमकती जलधारा नहीं देखी,
पर मै सुन सकता हूँ,
कल-कल बहती धारा को,
मै महसूस कर सकता हूँ,
उन अवसरों को,
जो दीवार के परे हैं.
पर मेरे पास हौसला है,
ज्ञान का प्रकाश है,
घोर अँधेरे में भी जो रौशनी है,
मेरे पास एक हथोडा है,
जिसे मै उठा रहा हूँ,
इन सुराखों को तोड़ देने के लिए,
एक खिड़की खुले,
नहीं- नहीं सिर्फ एक खिड़की क्यों खुले,
कई खिड़कियाँ बनानी हैं मुझे,
हौसले से भरे युवा इन खिडकियों के पार देखें,
वो जहाँ शहद और दूध की नदी बह रही है..

तुम्हारे विचार
तुम हर बात में अपने विचार ठेलते हो,
हां, तुम्हारे लिए ठेलना शब्द ही उचित है,
क्योंकि तुम दूसरों को सुनते नहीं,
तुम पढ़ते नहीं,
तुम पूरी को मारो गोली,
तुम विस्तृत जानकारी भी नहीं जुटाते,
न तुम दूर तक देख सकते हो,
न तुम विरोध को पचा सकते हो,
अल्टरनेटिव ओपिनियन सुनते ही पेट तुम्हारा,
गुड़गुड़ करने लगता है,
सीधे अपने विचारों का लोटा लेकर,
भागते हो शौंच करने
जब ये हालात हैं,
एक अल्टरनेटिव ओपिनियन पर पेट गुड़गुड़,
तो फिर काहे की सोच बे,
कैसी सोच,
ये तो शौच है,
जाओ दिमाग का भुर्जी न बनाओ,
जाओ अपने विचार का अचार,
अपने ग्रुप में सुनो, सुनाओ,
एक घेट्टो बनाओ,
वही तुम सब हरे, पीले, लाल,
जो हो, गुड़गोबर करो
याद रखो,
दुनिया तुम जैसे नमूनों से नहीं,
कोई बुद्ध, कोई मार्क्स,
कोई न्यूटन, कोई एडिसन,
कोई सांकृत्यायन,
अरबों से, ग्रीक से,
सुकरात से,
खूबसूरत हुई है,
आगे बढ़ी है,
तुम्हारा वश चले तो,
तुमने तो हर युग मे
जॉन ऑफ आर्क को जलाया,
ईसा को सूली पर लटकाया,
गैलिलियो को बेइज़्ज़त किया,
बामियान के बुद्ध को तोड़ा,
नालंदा के पुस्तकालय को जलाया,
इसलिए तुम याद रखो,
भीड़ में लाख हल्ला कर लो,
तुम रंगे सियार,
हाँ तुम सब रंगे सियार,
सभ्यता के प्रतीक नहीं,
तुम इस रथ के पहिये में लगे ज़िद्दी कीचड़ हो/
जाओ,
तुम डायरिया ऑफ वर्ड्स,
और कॉन्स्टिपेशन ऑफ आइडियाज से ग्रस्त हो/


शहरों में पानी कैद हो गया है !!
वो एक भिखारिन थी,
प्यासी, प्यास से अधमरी हुई जा रही थी.
उम्मीद में आगे बढ़ रही थी
कि इंसानों के शहर में उसकी प्यास
बुझ जायेगी
आखिर वो भी एक इंसान है.
उसने देखा तो पाया कि
पानी तो बंद है बोतलों में,
उसकी कीमत तय है.
सड़क पर मशीन पानी पिला रहे हैं.
पर वे भी पैसे मांग रहे हैं.
कैसे बुझाऊं प्यास,
क्या प्यास बुझाने के लिए देने पड़ेंगे पैसे
क्या सांस लेने के लिए भी पैसे दूंगी,
तब हवा मिलेगी.
नहीं ऐसा नहीं हो सकता.
वो आगे बढ़ चली,
होटलों के दरवाज़े उसके लिए बंद हैं,
डर रही है मुच्छड़ पहरेदारों से,
घुड़क देते हैं वे.
अपार्टमेंट हैं, पर उन पर गार्ड के पहरे हैं,
घरों में लोहे के दरवाज़े लगे हैं,
एक सन्नाटा पसरा,
प्यास भी इतनी बड़ी चीज हो सकती है,
उसके समझ से परे है.
शहर का चरित्र उसके लिए
किसी नकाबपोश किरदार की तरह है.
और आगे बढ़ चली,
बहुत खोजा उसने,
पर एक चापाकल न मिला,
एक नल न मिला.
सोच में पड़ गयी
इतना बड़ा शहर और
राह चलते गरीबों के लिए
पानी नहीं.
कैसा बेदिल शहर है.
शहरों में प्यास बड़ी हो चली है,
अब ये मामूली न रही.
शहरों में अब पानी कैद हो चूका है.
बोतलों में, वेंडिंग मशीनों में बंद हो चूका है.
प्यास से गिरकर
अंत में सड़क पर बह रहे बरसाती पानी
में मुंह लगा दिया उसने.
उस एक पल में वो भूल गयी
कि वो एक इंसान है.
इंसान हार गया, प्यास जीत गयी.
बेदिल, बुजदिल शहर जीत गया !!
मैं एक ख्वाब बुन रहा हूं!!
मैं एक ख्वाब बुन रहा हूं!!
जाड़े की गुनगुनी धूप में,
छत पर लेटा हुआ,
मैं एक ख्वाब बुन रहा हूं,
ये एक कोरा ख्वाब नहीं,
इसकी एक जमीं है.
मैं तुम्हारे बदन पर
ये खूबसूरत सा ख्वाब
बुन रहा हूं.
मेरी दोनों बाहें सलाइयां हैं.
और तुम्हारी मूंदती पलकें
इस ख्वाब की हकीक़त.
देख रहा हूं तुम्हारी इन गहरी पलकों को,
और संतुष्ट हो रहा हूं
कि उफ्फ ख्वाब इतना खूबसूरत होकर उतर रहा है.
मैं अब रुक नहीं सकता,
मैं इस ख्वाब को पूरा करना चाहता हूं,
गर अधूरा छोड़ दूं इस ख्वाब को,
तो ये गुनगुनी धूप मेरी दुश्मन बन जाएगी,
बेचैन कर देगी मुझे.
उफ्फ कैसा होगा उस अधूरेपन का एहसास,
नहीं, यही ठीक है
कि बिन रुके मैं इसे पूरा करूं.
जाड़े की इस गुनगुनी धूप में,
मैं तुम्हारे बदन पर
एक ख्वाब बुन रहा हूं!!
सुनो ए राही
सुनो ए राही,
अभी जलना है, सुलगना है,
राह संघर्ष की थाम कर आगे बढ़ना है,
चलते जाना है, कदम दर कदम,
उस घडी तक,
जब तक मंजिल न मिले,
पर मंजिल पर पहुंच कर भी नहीं रुकना है.
कि जीवन का सफ़र अभी तय नहीं हुआ,
जो मिला महज़ एक मंजिल ही था,
एक मील का पत्थर,
इससे ज्यादा कुछ नहीं,
अभी तो ऊर्जा बाकी है,
जीवन प्राण बाक़ी है,
अभी तो वक़्त के थपेड़े और खाने हैं,
किस्मत से उलझना हर घड़ी है,
कुछ और पाना है,
कुछ खोना है,
अभी तो गम और भी हैं,
ख़ुशी और भी है.
महफ़िल भी है,
वीराने भी हैं,
साहिल भी है,
समंदर भी है,
अभी जीवन बाकी है
जो मिला वो एक मंजिल है,
मंजिल जिंदगी नहीं,
तो सुनो ए राही मेरी बात,
अभी जलना है, सुलगना है,
राह संघर्ष की थाम कर आगे बढ़ना है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें