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Indian Economy : भारतीयों की बचत के संदर्भ में साल के अंत में आयी भारतीय स्टेट बैंक की एक विस्तृत रिपोर्ट देशवासियों की बचत में वृद्धि और उनकी बचत के तरीकों में आये बदलाव के बारे में तो बताती ही है, इससे यह भी स्पष्ट होता है कि बढ़ती बचत के जरिये हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की बचत दर वैश्विक औसत से कहीं आगे निकल चुकी है.
भारत की बचत दर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 30.2 प्रतिशत हो चुकी है, जो वैश्विक औसत 28.2 फीसदी से अधिक है. बचत के मामले में चीन, इंडोनेशिया और रूस के बाद भारत चौथे स्थान पर है. अपने यहां कुल घरेलू बचत में शुद्ध वित्तीय बचत की हिस्सेदारी 2014 के 36 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 52 फीसदी हो गयी, हालांकि 2022 और 2023 में इस हिस्सेदारी में कमी आयी. देश में वित्तीय समावेशन में भी उछाल आया है. अब 80 प्रतिशत से अधिक वयस्कों के पास औपचारिक बैंक खाता है, जबकि 2011 में 50 फीसदी वयस्कों के पास ही बैंक खाते थे.
जाहिर है, बैंक खातों के आंकड़ों में आयी वृद्धि का एक बड़ा कारण सरकारी कल्याण योजनाएं भी हैं, जिनकी धनराशि बैंक खातों में ही आती है. इसका एक बड़ा लाभ यह भी है कि सरकारी कल्याण योजनाओं की धनराशि सीधे लक्षित लोगों तक ही पहुंचती है. भारतीयों में बचत की आदत पीढ़ी दर आयी है. पहले लोग सोना आदि में निवेश करते थे. फिर बैंक जमा में वृद्धि होने लगी. लेकिन भारतीय स्टेट बैंक की ताजा रिपोर्ट बताती है कि वित्तीय बचत में बैंक जमा और करेंसी की हिस्सेदारी अब घटने लगी है तथा म्यूचुअल फंड व शेयर बाजार जैसे निवेश के नये रास्ते उभर रहे हैं.
आंकड़ा बताता है कि शेयर और डिबेंचर में परिवारों का निवेश 2014 में जीडीपी का 0.2 प्रतिशत था, जो 2021 में बढ़कर एक फीसदी हो गया. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2021 से सालाना तीन करोड़ डीमैट खाते खोले जा रहे हैं, जिनमें 30 साल से कम उम्र के निवेशकों की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है. इतना ही नहीं, अब प्रत्येक चार निवेशकों में से एक महिला है, जिसका मतलब यह है कि पहले की तुलना में महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से ज्यादा सशक्त हुई हैं, बल्कि उनमें बचत और उसके नये पैटर्न के प्रति रुझान भी बढ़ा है. कुल मिलाकर, भारतीय स्टेट बैंक की यह रिपोर्ट भारतीयों की बचत और देश की अर्थव्यवस्था के बारे में सकारात्मक संदेश देती है.