यादों में जीवंत है पटना का दशहरा
कुमार रंजन बता रहे हैं पटना के दशहरा के बारे में
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महाष्टमी की सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं. तीन दशक से भी अधिक समय से दिल्ली में रह रहा हूं. जब भी दशहरा का त्योहार आता है, तो मुझे अक्सर पटना का दशहरा याद आ जाता है. दशहरा के समय तीन-चार दिनों तक पूरे पटना शहर में उत्सव का माहौल रहता था. अनेक मोहल्लों में भव्य पंडालों में दुर्गा जी की मूर्ति बैठती थी. इस समय शहर में काफी चहल-पहल रहती थी और लोग बिना किसी डर-भय के रात-रात भर घूमते रहते थे. उस जमाने में पटना में दुर्गा पूजा के दौरान संगीत के छोटे-बड़े अनेक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ करता था. इन कार्यक्रमों में एक से एक दिग्गज कलाकारों की भागीदारी रहती थी. इनमें शास्त्रीय संगीतकारों के अलावा बड़े कव्वाल और फिल्मी गायक शामिल रहते थे. वो स्मृतियां आज भी मानस पटल पर अंकित हैं.
शायद हाई स्कूल में था, जब पहली बार लंगरटोली मोहल्ले में संगीत के कार्यक्रम में जाने का मौका मिला था. उस समय मुझे न संगीत के स्वरों का कोई ज्ञान था, न आरोह-अवरोह, अंतरा-मुखड़ा और रागों की कोई पहचान थी. ताल-लय, दादरा-ठुमरी और कजरी-टप्पा तो दूर की बात थी. फिर भी सुनना अच्छा लगा. उसके बाद तो हर वर्ष इन कार्यक्रमों में जाता रहा और सुनता रहा. बाद में लंगरटोली का यह कार्यक्रम पटना कॉलेजिएट स्कूल के मैदान में आयोजित होने लगा था. उस जमाने में, पटना में संगीत के चार-पांच बड़े कार्यक्रम आयोजित हुआ करते थे, जो सप्तमी से लेकर विजयादशमी तक तीन-चार दिनों तक चलते थे. इनमें गोरियाटोली, लंगरटोली, मुसल्ल्हपुर हाट, पटना सिटी और गांधी मैदान के कार्यक्रम प्रमुख थे. खुले आकाश के नीचे पूरी रात संगीत की महफिल सजती, जिसमें संगीत जगत के एक से बढ़कर एक दिग्गज कलाकार अपनी प्रस्तुति देते. इनमें कुछ नाम जो मुझे आज भी याद रह गये हैं उनमें सितारा देवी, उर्मिला नागर, एन राजम, वीजी जोग, बिस्मिल्लाह खान, अमजद अली खान, किशन महाराज, सामता प्रसाद उर्फ गोदई महाराज, राजेंद्र मेहता-नीना मेहता, चंदन दास प्रमुख हैं.
संगीत का कार्यक्रम पूरी रात चलता. कई बार तो कार्यक्रम सूर्योदय होने तक चलता और लोग पूरी तन्मयता से संगीत का आनंद लेते रहते. मुझे याद है, एक बार किसी बड़े कलाकार ने मंच से कहा था कि उन्होंने दुनिया के कई देशों में कार्यक्रम दिये हैं, परंतु पटना में जिस तरह से कार्यक्रम आयोजित होते हैं, वह अद्भुत है. उस जमाने का शायद ही ऐसा कोई प्रमुख कलाकार होगा, जिसने पटना में अपनी प्रस्तुति न दी हो. आयोजनकर्ताओं में भी एक तरह से होड़ लगी रहती थी कि कौन अपने यहां के मंच पर किस कलाकार को उतारता है. पूरा शहर रातभर संगीत के स्वरों से गूंजता रहता. शहनाई, सितार, तबला, सरोद, संतूर, बांसुरी के धुन और दिग्गज शास्त्रीय गायकों की आवाज का जादू हवा में तैरता रहता था. यह सब न सिर्फ बुजुर्गों को, बल्कि युवाओं को भी बांधे रखता था. भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुर्लभ प्रस्तुतियां- बिरजू महाराज, सितारा देवी, किशन महाराज, गोदई महाराज, पंडित जसराज, बीजी जोग, हरिप्रसाद चौरसिया, शिवकुमार शर्मा, ओंकारनाथ ठाकुर, भीमसेन जोशी और भी न जाने कितने नाम. एक से बढ़कर एक दिग्गज कलाकार. उस जमाने का शायद ही ऐसा कोई कलाकार होगा, जिसका नाम पटना के संगीत कार्यक्रमों से न जुड़ा हो और जिसने पटना में अपनी प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध न किया हो, समां न बांधा हो.
हालांकि पटना में दुर्गा पूजा को लेकर इन संगीत कार्यक्रमों से भी काफी पहले की कुछ यादें हैं. शायद 1972-73 की बात रही होगी. तब मैं बहुत छोटा था और स्कूल में पढ़ता था. दशहरा में सप्तमी, अष्टमी और नवमी की रात को मेरे मोहल्ले में दो स्थानों पर फिल्म दिखाई जाती थी. सोलह एमएम के पर्दे पर हर दिन दो पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में. फिल्म दिखाने का काम रात नौ से दस बजे के बीच शुरू होता और दो से ढाई बजे बजे रात तक चलता. वहां देखी गयी कुछ फिल्मों के नाम आज भी याद हैं, ‘आस का पंछी, हम दोनों, सीता और गीता, गुमराह.’ वर्ष 1985 में दुर्गा पूजा के समय मैं पटना में प्रदीप (हिंदुस्तान) अखबार में रिपोर्टर था और शहर में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों को कवर करने का मुझे अवसर मिला था. उस वर्ष मैंने महान नृत्यांगना सितारा देवी, तबला वादक किशन महाराज और गजल गायक राजेंद्र मेहता-नीना मेहता का इंटरव्यू लिया था, जो उस समय अखबार में प्रमुखता से छपा था. एक-डेढ़ वर्ष बाद मैं पीटीआइ में नौकरी करने दिल्ली आ गया. इस बीच दुर्गा पूजा के दौरान यदा-कदा ही पटना में रहने का अवसर मिला. इस तरह पटना में दुर्गा पूजा की मेरी यादें तीन दशक से भी ज्यादा पुरानी हो गयी हैं. अब पता नहीं उस तरह के सांस्कृतिक या कहें संगीत के कार्यक्रम आयोजित होते हैं या नहीं?