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आतंक पर कड़ा रूख

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भारत को आतंकवाद के माध्यम से अस्थिर और अशांत करने के पड़ोसी देशों के मंसूबों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कठोर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने भारत की इस नीति को दोहराया है कि हम अपने पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध रखना चाहते हैं, लेकिन कुछ देशों द्वारा आतंक को हथियार बनाये जाने को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि आतंकवाद के सहारे भारत को बातचीत करने के लिए मजबूर भी नहीं किया जा सकता है.

यह जगजाहिर तथ्य है कि आतंकवाद पाकिस्तान की विदेश और रक्षा नीति का अहम हिस्सा है. वह दशकों से भारत में आतंकी और अलगाववादी गिरोहों के सहारे अस्थिरता फैलाने की कोशिश में लगा रहता है. कुछ दशक पहले पाकिस्तान ने पंजाब को झुलसाने की कोशिश की थी, पर उसमें वह असफल रहा. कश्मीर में भी पाकिस्तान परस्त गिरोह और संगठन अब पस्त हो चुके हैं. वहां के लोग भी पाकिस्तान के नापाक इरादों को समझ चुके हैं.

आतंक के मसले पर पाकिस्तान जब भी घिरने लगता है, तो वह मानवाधिकारों की दुहाई देने लगता है, जबकि इस संबंध में पाकिस्तान का अपना रिकॉर्ड बेहद शर्मनाक रहा है. हाल में दुनिया ने देखा कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री और अन्य कूटनीतिज्ञ कश्मीर को लेकर अनाप-शनाप बयान देने लगे थे. पाकिस्तान को समझना चाहिए कि दक्षिण एशिया की शांति को भंग कर वह अपने लिए भी मुसीबत मोल ले रहा है.

यह किसी से छुपा हुआ नहीं है कि आतंकी गिरोहों की पाकिस्तान में समानांतर सत्ता चलती है तथा पाकिस्तानी सेना और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा उनका इस्तेमाल होता है ताकि पाकिस्तान की सत्ता पर सेना का दबदबा बना रहे. वहां के राजनेता भी अपने स्वार्थों के लिए इस खेल में शामिल होते हैं. चीन न केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी आक्रामकता दिखा रहा है, बल्कि वह पाकिस्तान को उसके भारत-विरोधी पैंतरों में पूरा समर्थन भी करता है.

चीन ने पाकिस्तान में बड़ा निवेश किया हुआ है और उसकी अनेक परियोजनाएं वहां चलती हैं. उनकी सुरक्षा के लिए वह भी आतंकी गिरोहों का सहयोग लेता है और उन्हें धन मुहैया कराता है. यह अनायास नहीं है कि सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान में रह रहे कुख्यात आतंकी सरगनाओं को वह बचाता भी रहा है. दुनिया ने देखा है कि जब भी नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान आदि पड़ोसी देशों को आवश्यकता हुई है, भारत ने सबसे पहले सहायता भेजी है. इन देशों के साथ सहयोग बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पड़ोसी पहले’ की नीति पर भारत सरकार काम कर रही है.

भारत को आतंकवाद के माध्यम से अस्थिर और अशांत करने के पड़ोसी देशों के मंसूबों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कठोर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने भारत की इस नीति को दोहराया है कि हम अपने पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध रखना चाहते हैं, लेकिन कुछ देशों द्वारा आतंक को हथियार बनाये जाने को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि आतंकवाद के सहारे भारत को बातचीत करने के लिए मजबूर भी नहीं किया जा सकता है.

यह जगजाहिर तथ्य है कि आतंकवाद पाकिस्तान की विदेश और रक्षा नीति का अहम हिस्सा है. वह दशकों से भारत में आतंकी और अलगाववादी गिरोहों के सहारे अस्थिरता फैलाने की कोशिश में लगा रहता है. कुछ दशक पहले पाकिस्तान ने पंजाब को झुलसाने की कोशिश की थी, पर उसमें वह असफल रहा. कश्मीर में भी पाकिस्तान परस्त गिरोह और संगठन अब पस्त हो चुके हैं. वहां के लोग भी पाकिस्तान के नापाक इरादों को समझ चुके हैं.

आतंक के मसले पर पाकिस्तान जब भी घिरने लगता है, तो वह मानवाधिकारों की दुहाई देने लगता है, जबकि इस संबंध में पाकिस्तान का अपना रिकॉर्ड बेहद शर्मनाक रहा है. हाल में दुनिया ने देखा कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री और अन्य कूटनीतिज्ञ कश्मीर को लेकर अनाप-शनाप बयान देने लगे थे. पाकिस्तान को समझना चाहिए कि दक्षिण एशिया की शांति को भंग कर वह अपने लिए भी मुसीबत मोल ले रहा है.

यह किसी से छुपा हुआ नहीं है कि आतंकी गिरोहों की पाकिस्तान में समानांतर सत्ता चलती है तथा पाकिस्तानी सेना और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा उनका इस्तेमाल होता है ताकि पाकिस्तान की सत्ता पर सेना का दबदबा बना रहे. वहां के राजनेता भी अपने स्वार्थों के लिए इस खेल में शामिल होते हैं. चीन न केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी आक्रामकता दिखा रहा है, बल्कि वह पाकिस्तान को उसके भारत-विरोधी पैंतरों में पूरा समर्थन भी करता है.

चीन ने पाकिस्तान में बड़ा निवेश किया हुआ है और उसकी अनेक परियोजनाएं वहां चलती हैं. उनकी सुरक्षा के लिए वह भी आतंकी गिरोहों का सहयोग लेता है और उन्हें धन मुहैया कराता है. यह अनायास नहीं है कि सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान में रह रहे कुख्यात आतंकी सरगनाओं को वह बचाता भी रहा है. दुनिया ने देखा है कि जब भी नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान आदि पड़ोसी देशों को आवश्यकता हुई है, भारत ने सबसे पहले सहायता भेजी है. इन देशों के साथ सहयोग बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पड़ोसी पहले’ की नीति पर भारत सरकार काम कर रही है.

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