किसी फैसले को लेकर जो भी प्रावधान बनते हैं, उनमें समस्या है कि हम विदेशों की नकल करके उन्हें लागू करना चाहते हैं. हमारे यहां यह सफल नहीं होता, क्योंकि हमारी व्यवस्था और स्थिति बिल्कुल अलग है. कुछ चीजों को छोड़ कर केंद्र सरकार की भूमिका अधिक होती है. स्वास्थ्य, राज्य का विषय है, लेकिन जब आपदा प्रबंधन अधिनियम या महामारी एक्ट लगा होता है, तब केंद्र सरकार का ही निर्णय अहम होता है.

भारत आबादी और भौगोलिक तौर पर बड़ा देश है. यहां जनसंख्या घनत्व अधिक है. मुंबई और दिल्ली में जो नियम लागू होंगे, वह छोटे शहरों-कस्बों में लागू नहीं किये जा सकते. विदेशों में इतनी घनी आबादी नहीं होती. दूसरा, वहां ज्यादातर लोग वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हैं. बचपन से उनकी वैज्ञानिक सोच विकसित करायी जाती है. हमारे यहां ढंग से मास्क लगवाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ी.

लॉकडाउन में घरों में रहने के लिए सख्ती बरतनी पड़ी. हालांकि, अमेरिका में भी विद्रोह करके लोग बीच पर जाकर पिकनिक कर रहे थे, लेकिन वह विरोध के तौर पर था. हमारे यहां अज्ञानतावश है. वैज्ञानिक तथ्यों और उपायों को प्राथमिकता देते हुए नीति बनाने की जरूरत है. वायरस विज्ञान का सिद्धांत कहता है कि आपके इलाके में एक बार वायरस आ गया, तो उसकी मौजूदगी बनी रहेगी. वह सुषुप्ता अवस्था में चला जाता है. उदाहरण के तौर पर, भारत भले ही पोलियो मुक्त हो चुका है, लेकिन उसका वायरस मौजूद है.

बच्चों को टीका देने से प्रतिरक्षा विकसित हो गयी है. भविष्य में कभी सामुदायिक प्रतिरक्षा कम होने पर वह दोबारा सक्रिय हो सकता है. ठीक उसी तरह कोरोना वायरस रहेगा, तो क्या सारे सिस्टम को ठप करके रखा जायेगा? ऐसा संभव नहीं है. जरूरत है कि विचारपूर्वक किसी निर्णय पर पहुंचा जाए. जहां संक्रमण अधिक है, वहां स्कूल बंद रखे जाएं, लेकिन जहां संक्रमण धीमा पड़ गया है, वहां चरणबद्ध तरीके से स्कूल खोले जाएं.

बड़े बच्चों के स्कूल पहले खुलें, बाद में छोटे बच्चों के स्कूल खोले जाएं. बड़े बच्चे सामाजिक दूरी, मास्क लगाने, हाथों की स्वच्छता जैसे एहतियात बरत सकते हैं. चूंकि, अगस्त और सितंबर में संक्रमण की तीसरी लहर अनुमानित है, ऐसे में अगस्त तक स्कूलों को खोलने के विचार को स्थगित कर देना चाहिए. इस अ‌वधि में टीकाकरण की गति तेज कर दी जाए.

जब हमारी आबादी का 80 से 85 फीसदी का टीकाकरण हो जाए, तो सभी स्कूलों को खोला जा सकता है. अभी क्षेत्रवार स्थिति को देखते हुए फैसला करने की जरूरत है. राज्यों का भी निर्णय क्षेत्र के मुताबिक अलग-अलग हो. बच्चों में हल्का संक्रमण होने पर स्थिति गंभीर नहीं होती. सीरो सर्वे में देखा गया है कि बच्चे पॉजिटिव आ रहे हैं, यानी बच्चों को संक्रमण हुआ और वे ठीक हो गये. इसका कारण है कि बच्चों में प्रतिरक्षा क्षमता अधिक होती है.

बच्चों में एंटीबॉडी बन जाती है और वे जल्दी ठीक हो जाते हैं. अभी अभिभावकों में बच्चों को लेकर मनोवैज्ञानिक डर है. ब्रिटेन में देखा गया है कि बच्चों में हो रहा संक्रमण गंभीर और चिंताजनक नहीं है. हमें बच्चों को हाई वायरल लोड से बचाना है. यह मॉल, सिनेमाहॉल जैसे अति भीड़भाड़ वाले इलाकों में होता है. स्कूलों को खोलने से पहले अध्यापकों और अभिभावकों का टीकाकरण जरूरी है. इससे संक्रमण की संभावना कम हो जायेगी. कई कंपनियां बच्चों के लिए वैक्सीन का ट्रायल कर रही हैं. उम्मीद है कि जल्दी ही बच्चों के लिए भी वैक्सीन उपलब्ध होगी.

अगस्त में स्कूलों को खोलना उचित नहीं है. नवंबर-दिसंबर में कुछ दिनों के लिए स्कूलों को खोला जा सकता है, फिर ठंड की छुट्टियां आ जायेंगी. इससे मौका मिल जायेगा, जिससे हालात का विश्लेषण कर सकेंगे. फिर, जनवरी से स्कूलों को दोबारा खोला जा सकेगा. स्कूल के अन्य स्टाफ को भी प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन देना जरूरी है. सितंबर तक देखना होगा कि बच्चों में संक्रमण की क्या स्थिति बनती है, उसके बाद ही कोई फैसला हो.

इस मसले पर जितने भी अध्ययन हुए हैं, खासकर जब से इस बीमारी को हवा में फैलनेवाली बीमारी माना गया है, तब से यही सुझाव दिया जा रहा है कि कार्यस्थल को पूरी तरह हवादार रखा जाए. एयर कंडीशन की बजाय खिड़कियों को खुला रखा जाए. स्कूल काफी समय से बंद हैं, इसलिए उन्हें पहले सैनिटाइज किया जाए. खुले कमरे में हाई वायरल लोड नहीं आयेगा.

अभी तक बच्चों को नजदीक बैठाने की व्यवस्था थी. अब बच्चों को दूर-दूर बिठाने की व्यवस्था करनी होगी. एक कमरे में यदि 50 बच्चे होते थे, तो अब 25-25 बच्चों को बिठाने की व्यवस्था हो या फिर शिफ्ट के मुताबिक बच्चों को बुलाया जाए. इससे स्कूलों में भीड़ कम होगी. साथ ही मास्क लगाने, हाथ धोने और सामाजिक दूरी बरतना, आज भी उपयुक्त है. इससे केवल कोरोनावायरस ही नहीं, अन्य बीमारियों का भी संक्रमण कम हुआ है.

डायरिया, टीबी और अन्य सांसों की बीमारियां, जिन्हें आइएलआइ (इन्फ्लुएंजा लाइक इलनेस) कहते हैं, वे भी कम हो गयी हैं. बच्चों की फास्ट फूड की आदत छुड़वाएं, ताकि उनका प्रतिरक्षा तंत्र सामान्य हो सके. एक अमेरिकी शोध में पाया गया है कि उन बच्चों में गंभीर संक्रमण पाया गया, जो मोटे थे और जिन्हें बचपन से कोई बीमारी थी.

बच्चों की जीवनशैली को सुधारने के लिए अभी से प्रयत्न करने की जरूरत है. बच्चे वजन कम करें और योग-व्यायाम करें, ताकि किसी भी बीमारी से वे खुद को बचा सकें. माता-पिता ज्यादा घबराएं नहीं, बल्कि उनकी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को जागरूक करें, लेकिन संतुलित दृष्टिकोण के साथ करें.