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सबसे महंगे दूल्हे राजा

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मिथिलेश कुमार राय टिप्पणीकार करिया कक्का तो कब से कह रहे थे कि अाजकल लड़के बड़े महंगे हा गये हैं. लेकिन सब उनकी बात हंसी में उड़ा दिया करते थे. अब बिहार के सीएम साहब ने दहेज-कुप्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद की है, तो उन्हें थोड़ा बल मिलने लगा है. दिन-प्रतिदिन दूल्हे कितने महंगे होते […]

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मिथिलेश कुमार राय
टिप्पणीकार
करिया कक्का तो कब से कह रहे थे कि अाजकल लड़के बड़े महंगे हा गये हैं. लेकिन सब उनकी बात हंसी में उड़ा दिया करते थे. अब बिहार के सीएम साहब ने दहेज-कुप्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद की है, तो उन्हें थोड़ा बल मिलने लगा है. दिन-प्रतिदिन दूल्हे कितने महंगे होते जा रहे हैं, यह बात सिर्फ बड़ी होती बिटिया के पापा को ही नहीं, बल्कि उनके पड़ोसियों को भी पता है. लेकिन, सबके पास अपनी-अपनी चुप्पी का खोल है, जिसमें इतनी गर्माहट है कि उसे उघारने की कभी इच्छा भी होती है, तो जैसे कोई हाथ पकड़ लेता है.
ताज्जुब है न! यहां जब-जब महंगाई बढ़ती है कुछेक पल के लिए हंगामा हो जाता है. सुनते हैं कि एक बार प्याज का दाम बढ़ गया था, तो सरकार ही डोल गयी थी. मतलब समाज महंगाई को लेकर काफी संवेदनशील है.
धरती पर महंगाई की कोई भी प्रक्रिया जनाक्रोश का एक कारण हो जाता है. निशाने पर सीधे सरकारें आ जाती हैं. लेकिन, इस क्रम में महंगे होते जा रहे दूल्हों को लेकर कहीं कोई आक्रोश नहीं. कहीं कोई जुलूस-प्रदर्शन नहीं. आज तक कभी किसी सरकार को किसी भी मंच या सदन में किसी ने भी घेरने की पहल नहीं की कि देश भर में दूल्हे इतने महंगे होते जा रहे हैं, जिससे पिता की परेशानियां बढ़ गयी हैं. उन्हें रात को नींद ही नहीं आ रही हैं.
दूल्हे के महंगे होने से बेमेल शादियां हो रही हैं. लड़कियों को जिल्लत की जिंदगी जीनी पड़ रही है. सरकार को जवाब देना चाहिए. लेकिन नहीं. इसका दंश सिर्फ लड़कियों के पिता ही भोगने के लिए अभिशप्त हैं.
सरकार के पास तो पहले से ही एक कानून है. जिसमें बताया गया है कि दहेज का लेन-देन करना कानूनन अपराध है. इसके लिए सजा का भी प्रावधान है. वैसे सरकार का पहला काम है भी यही. कानून बनाना. फिर चूक कहां हो रही है. अनुपालन में? चूक तो दरअसल महंगाई की दुहाई देनेवाली इस आमजन की तरफ से ही हो रही है. कानून का अनुपालन हम नहीं करेंगे, तो देवदूत आयेगा नहीं ऊपर से!
ये हो गया वो हो गया. ऐसा नहीं होना चाहिए और वैसा भी नहीं होना चाहिए. ऐसी बातें जितनी चाहे कर लें. लेकिन, जब खुद की बारी आती है, तो कहीं कोई चूं तक सुनाई नहीं पड़ती. अब तो हमारी बनायी नीतियां और कुरीतियां ही अभिषाप साबित हो रही हैं. आप ही बताइये, अगर निशाना मुनाफे पर और नजर सस्ती के जमाने पर हो, तो बात कैसे बनेगी भला!
महंगाई को बल कहां से मिलता है, यह सभी जानते हैं. सबको पता है कि मनुष्य की लिप्सा ज्यों-ज्यों बढ़ेगी, महंगाई का कद भी बढ़ेगा. फिर चाहे प्याज हो या दूल्हे राजा, ये और भी महंगे होते जायेंगे.

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