17.1 C
Ranchi
Friday, February 14, 2025 | 01:23 am
17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

…कि आयें कौन दिशा से हम?

Advertisement

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य अपनी जीवन-दिशा तय करता है, उसी प्रकार प्रत्येक समाज और राष्ट्र भी अपनी दिशा का संधान करता है. जीवन-दशा को बेहतर बनाने के लिए ही दिशा की खोज की जाती है. देश की दिशा का निर्धारण स्वार्थी, धन-लोलुप और कुटिल जन नहीं कर सकते. चंपारण सत्याग्रह शताब्दी एक […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

रविभूषण

वरिष्ठ साहित्यकार

जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य अपनी जीवन-दिशा तय करता है, उसी प्रकार प्रत्येक समाज और राष्ट्र भी अपनी दिशा का संधान करता है. जीवन-दशा को बेहतर बनाने के लिए ही दिशा की खोज की जाती है. देश की दिशा का निर्धारण स्वार्थी, धन-लोलुप और कुटिल जन नहीं कर सकते.

चंपारण सत्याग्रह शताब्दी एक अवसर है, जब हम गांधी की दिशा के साथ आज की दिशा को देखें, समझें और यह निश्चय करे कि हमारी दिशा-दृष्टि कितनी उचित और संगत है? राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के समय गांधी, भगत सिंह, नेहरू, लोहिया, आंबेडकर सभी देश के विकास और उन्नयन की जिस दिशा की खोज कर रहे थे, क्या स्वतंत्र भारत में हमने वह दिशा-ज्ञान प्राप्त किया?

निराला ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता ‘राम की शक्ति पूजा’ (1936) में ‘खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन चार’ लिखा था. स्वतंत्र भारत की एक हिंदी फिल्म ‘सीमा’ (1955) में गीतकार शैलेंद्र के भजन ‘तू प्यार का सागर है’ की एक पंक्ति है- ‘कानों में जरा कह दो कि आयें कौन दिशा से हम?’ संदर्भ भिन्न है. निराला और शैलेंद्र दोनों का निधन साठ के दशक में हुआ- क्रमश: 1961 और 1966 में.

क्या 21वीं सदी के भारत में जब राजनीति पूरी तरह चुनाव केंद्रित, वोट केंद्रित हो चुकी है, राजनीतिक दल कोई भी हो, क्या हमें दिशा-संबंधी प्रश्न नहीं करना चाहिए- ‘कि आयें कौन दिशा से हम?’ दिशा से एक साथ दशा और दृष्टि जुड़ी होती है. नागार्जुन ने अपनी एक कविता में लिखा था- ‘अंगरेजी, अमरीकी जोंकें, देसी जोंकें एक हुईं. नेताओं की नीयत बदली, भारत माता टेक हुईं.’ स्वतंत्र भारत के आरंभिक वर्षों में नागार्जुन ने देसी-विदेशी जोंकों की मैत्री की जो बात कही थी, वह दूर हुई या सघन?

क्या हमने दिशा का ज्ञान खो दिया है? कवियों को ‘दिशा’ की जितनी चिंता रही है, क्या राजनेताओं को भी स्वतंत्र भारत में उतनी ही चिंता रही है? मुख्य सवाल है कि हम सामाजिक विकास की दिशा-दृष्टि किससे प्राप्त करें? राजनीतिक सिद्धांतकारों, समाज सुधारकों, कवि-कलाकारों, विचारकों-चिंतकों के पास जायें या और कहीं? भारत जैसे वैविध्य बहुल देश में सर्वांगीण विकास की कोई एक दिशा संभव है? क्या हम सचमुच दिशा-बोध, दिशा-ज्ञान व दिशा-दृष्टि से वंचित हैं?

एक ओर जोंकों की कतार है, रक्तपायी वर्ग है, उससे नाभिनालबद्ध लोग हैं और दूसरी ओर वह विशाल जनता है, जिसका कोई सच्चा मार्गदर्शक नहीं है. क्या कांग्रेस गांधी-नेहरू से भिन्न जिस मार्ग पर चल रही है, वह मार्ग सही है? वामपंथी, दक्षिणपंथी, समाजवादी सबने अपनी-अपनी दिशा की बात की, पर दक्षिणपंथी दल भाजपा को छोड़ कर कोई भी राजनीतिक दल अपनी दिशा पर नहीं चल सका. परिणाम सामने है. एक भ्रम की स्थिति है.

साल 1936-37 में विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ था. फरवरी 1937 में चुनाव परिणाम घोषित हुआ था. ग्यारह राज्यों में हुए चुनाव की कुल सीटें 1585 थीं, जिनमें सर्वाधिक सीटें कांग्रेस को मिली थीं- 707. मुसलिम लीग को 106, अन्य दलों को 397 और स्वतंत्र प्रत्याशियों को 385 सीटें मिली थीं.

सभी अपनी-अपनी ‘दिशा’ तय कर रहे थे. पहली बार चुनाव में हुई यह बड़ी जन-भागीदारी थी. देश गुलाम था और वायसराय लिनलिथगो ने बिना देशवासियों की सलाह के 3 सितंबर, 1939 को जर्मनी से भारत का युद्ध घोषित किया था. क्या आज भी देशवासियों से किसी भी मुद्दे पर सलाह ली जाती है? क्या भूमि अधिग्रहण कानून किसानों से विचार कर बनाया जाता है? सत्ता में आ जाने के बाद सरकार किसी भी निर्णय लेने को स्वतंत्र है.

जन-विरोध का उसके लिए अर्थ नहीं है. वह इस सवाल से परेशान नहीं होती कि क्यों कश्मीर में लड़कियां पत्थरबाजी कर रही हैं? क्या सरकार और राजनीतिक दलों का जनता से संवाद भंग नहीं हुआ है? जो मंत्री ‘जनता दरबार’ लगाते हैं, वे यह नहीं समझते कि लोकतांत्रिक देश में ‘दरबार’ के लिए कोई स्थान नहीं है.

‘मुगल दरबार’ होता था. ‘जनता दरबार’ का क्या अर्थ है? हमने क्या सचमुच इतिहास से कोई शिक्षा ग्रहण की है? क्या हमने, किसी भी राजनीतिक दल ने, सही दिशा का संधान किया? क्या सारी समस्याएं सही दिशा के संधान न होने से नहीं जुड़ी हैं?

प्रश्न वही है- ‘…कि आयें कौन दिशा से हम?’ इस दिशा का निर्धारण कोई एक व्यक्ति, महापुरुष नहीं कर सकता.

बड़े प्रश्नों पर अब कम विचार होते हैं. फिलहाल राष्ट्रपति का चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव राजनीतिक दलों की चिंता में है. ऐसे समय में निराला और शैलेंद्र की काव्य-पंक्ति का स्मरण स्वाभाविक है. निराला ने परतंत्र भारत में दिशा के ज्ञान के खोने की बात कही थी- 1936 की विधानसभा चुनाव के पहले और गीतकार शैलेंद्र ने प्रथम लोकसभा चुनाव के बाद यह सवाल किया था- ‘…कि आयें कौन दिशा से हम?’

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें