15.1 C
Ranchi
Friday, February 14, 2025 | 03:55 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

देश में चंपारण आंदोलन की गूंज

Advertisement

मणींद्र नाथ ठाकुर एसोसिएट प्रोफेसर, जेएनयू चंपारण आंदोलन के सौ वर्ष पूरे हो गये. सरकारें उत्सव मना रही हैं. यदि गांधी होते, तो इसके बारे में क्या सोचते? भारत में किसानों की हालत तब भी खराब थी और आज भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं. आज मरनेवालों के परिवार को मुआवजा मिलता है. उनका कर्ज […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

मणींद्र नाथ ठाकुर
एसोसिएट प्रोफेसर, जेएनयू
चंपारण आंदोलन के सौ वर्ष पूरे हो गये. सरकारें उत्सव मना रही हैं. यदि गांधी होते, तो इसके बारे में क्या सोचते? भारत में किसानों की हालत तब भी खराब थी और आज भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं. आज मरनेवालों के परिवार को मुआवजा मिलता है. उनका कर्ज माफ किया जा रहा है. क्या चंपारण की लड़ाई मुआवजे के लिए या कर्ज माफी के लिए थी? आज इन सवालों को उठाना ही चंपारण आंदोलन का सही उत्सव होगा.
गांधी किसानों के बारे में क्या सोचते थे, इसकी जानकारी हमें इस बात से मिल सकती है कि उन्होंने चंपारण जाना क्यों तय किया? गांधी को न तो गांव का ही कोई अनुभव था, न खेती-किसानी से कोई संबंध और न उन्हें मालूम ही था कि चंपारण कहां है. ऐसे में यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है कि गांधी ने चंपारण जाने का निर्णय क्या सोच कर लिया होगा.
संभव है कि बहुत शोध करने पर भी इस बात का कोई प्रामाणिक उत्तर न मिल सके. लेकिन, हम अनुमान कर सकते हैं. मसलन, गांधी अभी-अभी भारत आये हैं. उनके दक्षिण अफ्रीकी प्रयोग से लोग परिचित भी हैं और प्रभावित भी. लोग उन्हें नेतृत्व देने के लिए तैयार भी रहे होंगे. लेकिन, अपनी भारत यात्रा के दौरान गांधी को यह बात समझ में आ गयी थी कि किसानों को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल किये बिना अंगरेजों को हराना संभव नहीं होगा. चंपारण ने इन्हें अच्छा मौका दिया किसानों को समझने और आगे की दिशा तय करने का.
वैसे तो चंपारण आंदोलन को नील की खेती और उसके कारण किसानों पर हो रहे अत्याचार के लिए जाना जाता है. लेकिन, सच यह है कि आंदोलन के समय तक नील की खेती खुद ही बहुत कम हो गयी थी, क्योंकि रासायनिक नील की खोज हो चुकी थी. नील से आमदनी कम होने के कारण अंगरेजों ने अलग-अलग तरह के शुल्क लगा दिये थे और उसकी वसूली के लिए अत्याचार बढ़ गया था.
कुछ टैक्स इस तरह थे: होली-रामनवमी कर, पाइन कर (सिंचाई के लिए), बैंट माफी कर (हल रखने के लिए), कोलहुवान कर (तेल निकालने के लिय), चूल्हियावन कर (चूल्हा बनाने के लिए), बापही-पुतही कर (बच्चा होने पर). लेकिन, सबसे आश्चर्यजनक था घवही कर जो घाव होने पर देना पड़ता था. गांधी का आंदोलन किसानों के वर्तमान से ज्यादा उनके भविष्य में होनेवाले शोषण के लिए था. किसानों पर कर बोझ तो बढ़ ही रहा था, उसकी वसूली के लिए अत्याचार में भी विस्तार हो रहा था. गांधी को न केवल इसकी समझ थी, बल्कि उन्हें यह भी लग रहा था कि उपनिवेशवाद का यह सबसे घिनौना रूप था और इसके खिलाफ लड़ना किसानों को स्वतंत्रता आंदोलन की ओर आकर्षित करेगा.
शायद गांधी के लिए चंपारण एक और कारण से आकर्षक रहा होगा और यह कारण सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. गांधी ने भारत आकर लगभग यह तय कर लिया था कि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन एक तरह से दुनिया के लिए पश्चिमी सभ्यता का एक विकल्प प्रस्तुत करने का भी मौका था.
यह विकल्प केवल एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में नहीं, बल्कि एक पूरी सभ्यता के रूप में होना चाहिए. और गांधी के लिए भारत की ग्रामीण सभ्यता में ये संभावनाएं थीं. गांधी जब गांवों की बात करते थे, तो उसका अर्थ केवल शहर से दूर कोई जगह, जहां खेती किसानी की आर्थिक व्यवस्था थी, ऐसा गांव नहीं था, बल्कि एक पूरी सभ्यता थी; एक अलग तरह की जीवन प्रणाली, नैतिक मूल्य और सामाजिक व्यवस्था थी. चंपारण में गांधी उसी खोज में गये.
गांधी यहां अंगरेजों के खिलाफ या किसी भी शासन के खिलाफ लड़ने के तरीकों पर प्रयोग करते हैं. उनके सत्याग्रह का मूल तत्व था अपने विरोधी को यह समझा देना कि उनका विरोध किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि उस सोच से है, जिसका परिणाम है शोषण. यह कोई आसान काम नहीं रहा होगा. यह समझ अभी भी नक्सलवादियों को नहीं है. जब-जब पुलिस के लोगों को मारने में उन्हें सफलता मिलती है, तब-तब उनके विचारों को सर्वमान्य बनाने में उन्हें असफलता मिलती है. सफलता तो निकटगामी है ओर असफलता दूरगामी; एक क्षणिक है और दूसरा स्थायी. गांधी को इस बात की समझ थी और इसलिए गांधी ने सत्याग्रह को ही लड़ाई के अस्त्र-शस्त्र के रूप में चुना. चंपारण में गांधी ने घोषणा कर दी कि किसानों का आंदोलन अलग तरह का है. इसमें मानवीय मूल्यों की सर्वामन्यता को हथियार बनाया जायेगा. विद्यालय बनाना, सफाई करना, स्वास्थ्य की देख-भाल करना.
इन बातों का आंदोलन से सीधा संबंध तो नहीं ही होगा. फिर गांधी के आंदोलन के तकनीक में इन सबकी क्या भूमिका थी? इसमें समझने की बात यह है कि गांधी की राजनीतिक समझ में सरकार और राज्य से इतर समाज की स्वायत्ता का दर्शन शामिल है. यह उनकी कल्पना की पहली उड़ान थी. उनका दूसरा मंत्र था औपनिवेशिक राज्य के डर को लोगों के मन से बाहर निकलना. उन्होंने तय किया कि जहां प्रदर्शन के लिए मना किया गया है, ठीक वहीं प्रदर्शन होगा और गिरफ्तारी दी जायेगी. उन्हें गिरफ्तार किया गया. लेकिन, जैन विरोध के आगे प्रशासन को खुद ही उनकी जमानत भर कर उन्हें मुक्त करना पड़ा. यह औपनिवेशिक मानसिकता की पहली हार थी. यही चंपारण का महत्व है.
आज के किसानों को किसी गांधी की खोज करनी होगी, जो आत्महत्या के बदले मुआवजा या कर्जमाफी की लड़ाई को ही अपना उद्देश्य न मान ले, बल्कि एक व्यापक लड़ाई की तैयारी करे.
आवश्यकता देश में एक सांस्कृतिक क्रांति की है, जिसमें शहरी सभ्यता के गुण तो हों, लेकिन ग्रामीण सभ्यता लुप्त न हो जाये. पश्चिमी देशों में सभ्यता का जो संकट है, शायद गांधी उसे समझ रहे थे. इसलिए चंपारण में वे इस संकट का हल खोजने गये थे. गांधी की उस खोज को आगे बढ़ाना ही चंपारण आंदोलन का उत्सव मनाना होगा.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें