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एक स्वस्थ बिहार के लिए मानव संसाधन की भूमिका अहम

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-उषा किरन तरिगोपुला- (इंडिया कंट्री लीड, स्टेट हेल्थ एंड कम्युनिटी सिस्टम्स) पिछले दशक के दौरान बिहार ने महत्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति दर्ज की है. राज्य में लगभग 10 फीसदी की दर से वार्षिक वृद्धि हुई है. कृषि एवं पशुपालन क्षेत्र भी विकसित हुआ है, जो बिहार के लिए महत्वपूर्ण है, जहां अधिकतर जनसंख्या इन […]

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-उषा किरन तरिगोपुला-
(इंडिया कंट्री लीड, स्टेट हेल्थ एंड कम्युनिटी सिस्टम्स)
पिछले दशक के दौरान बिहार ने महत्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति दर्ज की है. राज्य में लगभग 10 फीसदी की दर से वार्षिक वृद्धि हुई है. कृषि एवं पशुपालन क्षेत्र भी विकसित हुआ है, जो बिहार के लिए महत्वपूर्ण है, जहां अधिकतर जनसंख्या इन दो क्षेत्रों पर निर्भर रहती है. नवजात मृत्यु दर वर्ष 2005 में 61 से घट कर 2015 में 42 हुई है. मातृ मृत्यु दर 2004-06 के 312 मामलों से घट कर 2011-13 में 208 मामलों पर जा पहुंची है. संपूर्ण टीकाकरण दरें भी लगभग दोगुनी हो चुकी हैं. कालाजार के मामलों में 75 प्रतिशत की कमी आयी है.
साल 2030 के लिए भारत के महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य लक्ष्य हैं, जो वैश्विक स्थायी विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के समानांतर हैं. एसडीजी को हासिल करने के लिए बिहार देश का एक प्रमुख राज्य होगा, क्योंकि यहां कुल मातृ मृत्यु के 12.5 प्रतिशत मामले, नवजात मृत्यु दर के करीब 10.5 प्रतिशत मामले और 5 वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु के करीबन 12 प्रतिशत मामले दर्ज होते हैं. बिहार में क्षयरोग (टीबी) के 58,000 से अधिक मामले हैं और यहां गर्भनिरोधकों की बड़ी मांग है (38 प्रतिशत), जो पूरी नहीं हो पा रही. साथ ही महिलाओं तथा बच्चों में कुपोषण का अत्यधिक बोझ है. विकास होने के बावजूद, भारत के 76 प्रतिशत कालाजार के मामले बिहार में पाये जाते हैं. यह राज्य जापानी मस्तिष्क ज्वर का भी अत्यधिक शिकार है.
पिछले कुछ वर्षों में बिहार सरकार ने अपनी स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है, ताकि राज्य की जनसंख्या को पर्याप्त सुविधाएं मिल सकें. राज्य ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का एक कार्यशील तंत्र तैयार किया है, जो पूरे समय काम करता है.
हालांकि, एक तरफ जहां बिहार अपनी ढांचागत सुविधाओं में सुधार कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उच्च कुशल एवं प्रशिक्षित मानव संसाधन की उपलब्धता अब भी एक चुनौती है.
राज्य सरकार के इस कदम के तहत उपलब्ध विशेषज्ञ डॉक्टरों का यथोचित इस्तेमाल करते हुए जिला एवं उप-जिला अस्पतालों में गहन देखभाल सुविधाओं का सुधार किया गया. जनरल ड्यूटी डॉक्टरों की संख्या में करीब 20 प्रतिशत वृद्धि और विशेषज्ञ डॉक्टरों में (19 प्रतिशत) वृद्धि के साथ ब्लॉक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और रेफरल अस्पतालों में नवजात जन्म, बाल स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं.
एनएसएसओ राउंड 68 डेटा के अनुसार, बिहार में प्रति 10,000 लोगों के लिए सिर्फ 5.3 डॉक्टर तथा नर्स/एएनएम मौजूद हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 22.8 का मापदंड निर्धारित किया गया है और भारत में राष्ट्रीय औसत 20.7 है. प्राथमिक देखभाल के लिए डॉक्टरों की मौजूदगी तथा गहन देखभाल के लिए विशेषज्ञों की उपलब्धता, मातृत्व एवं नवजात संबंधी जटिलताओं के लिए प्रसूति या स्त्री रोग व बाल रोग विशेषज्ञों तथा एनेस्थेटिस्ट्स का मौजूद रहना एसडीजी लक्ष्यों के अनुकूल प्रगति के लिए बेहद आवश्यक होगा.
राज्य में मेडिकल एवं नर्सिंग ग्रेजुएट्स की संख्या बढ़ाने के साथ योग्य मानव संसाधन नीतियों के जरिये सार्वजनिक क्षेत्र में प्रतिभाओं को आकर्षित करना तथा बनाये रखना मानव संसाधन सुधार के अनिवार्य घटक हैं, जिनकी योजना बिहार सरकार बना रही है. स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मानव संसाधन कैडर के पुनर्निर्माण द्वारा ना सिर्फ प्रभावी कार्य स्थानांतरण, बल्कि सार्वजनिक प्रणाली में मौजूदा मानव संसाधन की संभावित क्षमताओं को बाहर लाने की योजना पर भी काम चल रहा है. इससे अंतिम छोर पर मौजूद स्वास्थ्यकर्मियों से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन कैडर पर ध्यान दे पाना संभव होगा, ताकि निवारक स्वास्थ्य और प्रभावी निगरानी प्रक्रियाएं सुनिश्चित की जा सकें, जिसकी कल्पना भारत सरकार की नयी स्वास्थ्य नीति में गयी है.
इसके अलावा, राज्य द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र में एएनएम और ग्रेड ए नर्स ट्रेनिंग स्कूलों का विस्तार किया जा रहा है.एक तरफ जहां सार्वजनिक एवं निजी मेडिकल कॉलेजों तथा नर्सिंग स्कूलों की मौजूदा संख्या राज्य में विशेषज्ञों, डॉक्टरों तथा नर्सों की मांग पूरी करने के लिए अपर्याप्त हैं, वहीं यहां की नयी भर्तियों के लिए सेवा-पूर्व प्रशिक्षण तथा स्वास्थ्य सेवा के मौजूदा मानव संसाधन के कौशल विकास हेतु उन्हें रिफ्रेशर ट्रेनिंग दिये जाने की तत्काल आवश्यकता है. राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने के प्रयास तेज करने होंगे. बिहार में अन्य भारतीय राज्यों के अनुभवों को लागू करने पर भी विचार किया जा सकता है, जिसके तहत डिप्लोमा पाठ्यक्रमों द्वारा विशेषज्ञों की संख्या बढ़ायी जा सकती है.
वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में न तो अच्छा प्रदर्शन करनेवालों के लिए प्रोत्साहन है, न ही खराब प्रदर्शन करनेवालों के लिए जवाबदेही. स्वास्थ्य कर्मचारियों के प्रदर्शन के बुनियादी प्रबंधन (पुरस्कार या सम्मान योजनाओं के जरिये) की मदद से स्वास्थ्य क्षेत्र के मौजूदा मानव संसाधन के जरिये प्रयासों के स्तर और परिणामों में महत्वपूर्ण सुधार लाने में मदद मिल सकेगी.
बिहार ने पिछले दशक में प्रगति करते हुए आसान परिणाम तो हासिल कर लिये हैं, लेकिन मानव संसाधन से जुड़ी गंभीर चुनौतियों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है. तभी हम स्वास्थ्य संबंधी स्थायी विकास लक्ष्यों के करीब पहुंच सकेंगे.

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