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प्रदूषण के लिए सरकार जिम्मेवार

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डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री देश के तमाम शहरों में वायु प्रदूषण ने गंभीर रूप धारण कर लिया है. लोग बीमार हो रहे हैं, परंतु सरकार निष्क्रिय है. सरकार के इस कृत्य को समझने के लिए प्रदूषण का गरीब तथा अमीर पर अलग-अलग प्रभाव को समझना होगा. अर्थशास्त्र में दो तरह के माल बताये जाते है- […]

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डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
देश के तमाम शहरों में वायु प्रदूषण ने गंभीर रूप धारण कर लिया है. लोग बीमार हो रहे हैं, परंतु सरकार निष्क्रिय है. सरकार के इस कृत्य को समझने के लिए प्रदूषण का गरीब तथा अमीर पर अलग-अलग प्रभाव को समझना होगा. अर्थशास्त्र में दो तरह के माल बताये जाते है- व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक. व्यक्तिगत माल वे हुए, जिन्हें व्यक्ति अपने स्तर पर बाजार से खरीद सकता है जैसे चाय पत्ती, कपड़ा एवं कार. सार्वजनिक माल वे हुए, जिन्हें व्यक्ति चाहे तो भी अपने स्तर पर हासिल नहीं कर सकता है, जैसे कानून व्यवस्था, करेंसी, पानी या स्वच्छ हवा. रिजर्व बैंक नोट छाप कर अर्थव्यवस्था में न डाले, तो धंधा चौपट हो जायेगा. कानून व्यवस्था तथा करेंसी ऐसे माल हैं, जिन्हें केवल सरकार ही उपलब्ध करा सकती है.
इन्हें व्यक्तिगत स्तर पर हासिल करना बहुत ही मंहगा पड़ता है. दूसरे सार्वजनिक माल ऐसे होते हैं, जिन्हें अमीर द्वारा तुलना में कम खर्च करके हासिल किया जा सकता है, जैसे पीने का पानी. जनता उसी पानी को पियेगी, जिसे सरकार उपलब्ध कराती है. लेकिन, अमीर द्वारा कुछ खर्च कर अपने घर में आरओ से पानी को शुद्ध किया जा सकता है. ऐसी ही स्थिति स्वच्छ वायु की है.
सरकार की यह जिम्मेवारी है कि वह इन सभी सार्वजनिक माल को अपनी जनता को उपलब्ध कराये. इस कार्य के लिए ही सरकार को टैक्स वसूल करने का अधिकार हासिल होता है. इन माल को सरकार द्वारा उपलब्ध कराने का खर्च कम पड़ता है. जैसे जलकल विभाग द्वारा पानी को साफ करने का खर्च न्यून आता है. उसी पानी को घर में आरओ लगा कर साफ करने का खर्च दस गुना से भी ज्यादा आता है.
सामान्य व्यक्ति न तो आरओ लगा सकता है, न ही हवा शोधन करने का यंत्र. अतः उसका एकमात्र सहारा सरकार है. सरकार इन माल को उपलब्ध न कराये, तो गरीब मारा जाता है. कुएं का प्रदूषित पानी पीना पड़े, तो परिवार के लोग बीमार पड़ते हैं. दवा और डाॅक्टर का खर्च सर पर आ पड़ता है. देश का हर नागरिक चाहता है कि सरकार द्वारा उसे साफ पानी और हवा उपलब्ध करायी जाये. वह इस माल का दाम भी अदा करने को तैयार है. मसलन, यदि शहर की पानी सप्लाइ को साफ करने का खर्च एक रुपये प्रति परिवार प्रतिदिन आता है, तो जनता इस मूल्य को अदा करने को तैयार होगी. 30 रुपये प्रतिमाह देकर वह दवा और डाॅक्टर के 300 रुपये प्रतिमाह के खर्च से छुटकारा पा जायेगी. जनता से 30 रुपये प्रतिमाह वसूल कर सभी को साफ पानी उपलब्ध कराने में सरकार पर अतिरिक्त बोझ भी नहीं पड़ेगा. परंतु, अमीर के लिए यह घाटे का सौदा हो जाता है. उसकी फैक्ट्री द्वारा गंदा पानी नाले में बहाया जाता है. प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने में उसे करोड़ों का खर्च करना होगा. लेकिन, अमीर के लिए लाभप्रद है कि गंदे पानी को नाले में बहाये और अपने घर में आरओ लगा ले. इसी प्रकार उसके लिए लाभप्रद है कि फैक्ट्री से प्रदूषित हवा छोड़े और अपने घर में वायु शोधन यंत्र लगाये.
यह जरूरी है कि सरकार जनता से साफ पानी और हवा का मूल्य वसूल करे. उद्योगों पर सख्ती करके उन्हे गंदा पानी नाले में डालने से रोके. प्रदूषण नियंत्रण करने में आये खर्च को उनके उद्योगों को सब्सिडी के रूप में दिया भी जा सकता है. ऐसी व्यवस्था सबके हित में होगी. सामान्य नागरिक द्वारा 30 रुपये प्रतिमाह दिया जायेगा और 300 रुपये के दवा और डाॅक्टर के खर्च की बचत की जायेगी. वसूल की गयी रकम से अमीर को सब्सिडी दी जायेगी.
प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने व चलाने में जो खर्च आता है, वह उसे मिल जायेगा. सरकारी अधिकारियों के लिए भी यह व्यवस्था लाभप्रद है, चूंकि जनता से रकम वसूलने तथा अमीर को सब्सिडी देने में उनका धंधा बढ़ेगा. परंतु, सबके लिए हितकारी होने के बावजूद सरकार इस व्यवस्था को लागू नहीं करती है. कारण, अमीर को सब्सिडी लेकर प्रदूषण रोकने में लाभ कम तथा गंदे पानी को नाले में बहाने में लाभ ज्यादा है. एक हाथ से उसे सब्सिडी मिलती है, तो दूसरे हाथ से वह रकम प्रदूषण नियंत्रण उपकरण चलाने में खर्च हो जाती है. उसकी बचत शून्य रहती है. तुलना में गंदे पानी को नाले में बहाना अमीर के लिए लाभप्रद है. प्रदूषण नियंत्रण का करोड़ों का खर्च बचता है और घर में आरओ लगाने का मामूली खर्च वहन करना पड़ता है. इसीलिए सरकार द्वारा पानी तथा हवा के प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं किया जाता है.
सरकार की जिम्मेवारी है कि कानून व्यवस्था, करेंसी, तथा साफ पानी तथा हवा जैसे सभी सार्वजनिक माल जनता को उपलब्ध कराये और इसके लिए जरूरी रकम जनता से टैक्स लगा कर वसूल करे. इन माल को उपलब्ध कराना सबके लिए हितकारी है. परंतु सरकार द्वारा केवल वे ही सार्वजनिक माल उपलब्ध कराये जाते हैं, जिन्हें अमीर व्यक्तिगत स्तर पर हासिल नहीं कर सकता है, जैसे कानून व्यवस्था एवं करेंसी.
सरकार द्वारा उन सार्वजनिक माल को हासिल कराने में रुचि नहीं ली जाती है, जिन्हें अमीर व्यक्तिगत स्तर पर हासिल कर सकता है, जैसे साफ पानी तथा हवा. सरकार पर इन्हीं लोगो का वर्चस्व रहता है. इसलिए सरकार द्वारा प्रदूषण पर नियंत्रण करने के सर्वहितकारी कदम नहीं उठाये जाते हैं.

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