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रिजर्व बैंक की स्वायत्तता

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नोटबंदी के फैसले और उसे लागू करने के तौर-तरीकों पर बहस का सिलसिला जारी है. इसके तात्कालिक और दूरगामी नतीजों पर अलग-अलग राय के अलावा इस प्रकरण में एक महत्वपूर्ण मुद्दा रिजर्व बैंक की स्वायत्तता का भी है. देश की मौद्रिक नीति तय करने का अधिकार रिजर्व बैंक को है और वित्तीय प्रबंधन का जिम्मा […]

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नोटबंदी के फैसले और उसे लागू करने के तौर-तरीकों पर बहस का सिलसिला जारी है. इसके तात्कालिक और दूरगामी नतीजों पर अलग-अलग राय के अलावा इस प्रकरण में एक महत्वपूर्ण मुद्दा रिजर्व बैंक की स्वायत्तता का भी है. देश की मौद्रिक नीति तय करने का अधिकार रिजर्व बैंक को है और वित्तीय प्रबंधन का जिम्मा वित्त मंत्रालय का. ऐसे में केंद्रीय बैंक और केंद्र सरकार के बीच असहमतियां और तनातनी स्वाभाविक है तथा पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है. पर, मौजूदा चर्चा में रिजर्व बैंक की चुप्पी से कई सवाल खड़े हुए हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर मनमोहन सिंह ने बैंक की साख और संस्थागत स्वायत्तता के नुकसान की बात कही है. दो अन्य पूर्व गवर्नरों- वाइवी रेड्डी और बिमल जालान- तथा दो पूर्व उप गवर्नरों- उषा थोराट और केसी चक्रबर्ती- ने भी यह चिंता जतायी है. रिजर्व बैंक के कर्मचारियों ने गवर्नर उर्जित पटेल को पत्र लिख कर कहा है कि नोटबंदी के बाद के कुप्रबंधन से वे अपमानित महसूस कर रहे हैं तथा इस पूरे प्रकरण में बैंक की छवि को गहरा धक्का लगा है. यह शायद पहला मौका है, जब देश के केंद्रीय बैंक की साख और स्वायत्तता पर ऐसी खुली बहस हो रही है जो कि एक बड़ी चिंता की बात है.
नोटबंदी के फैसले पर सरकार और बैंक के विरोधाभासी बयान तथा नोट बदलने और निकासी के दर्जनों नियमों को लागू करने का मामला आर्थिक प्रशासन की गंभीरता को कम करते हैं. ऐसे विषयों को राजनीतिक खींचतान से परे अर्थव्यवस्था की बेहतरी को ध्यान में रख कर सुलझाया जाना चाहिए. इस संबंध में जालान का यह सुझाव महत्वपूर्ण है कि मौद्रिक नीतियों पर बैंक को सरकार से राय-सलाह करनी चाहिए और सरकार को भी अंतिम निर्णय का अधिकार बैंक पर छोड़ देना चाहिए, भले ही वह कितना भी मुश्किल क्यों न हो. सरकार को भी बैंक की साख कायम रखने के लिए समुचित कदम उठाने चाहिए.
दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंकों की तुलना में रिजर्व बैंक के अधिकारों का दायरा ज्यादा बड़ा है. स्वायत्तता के जरिये इस संस्था ने हमारी अर्थव्यवस्था को पटरी पर रखने और उसे गति देने में बड़ी भूमिका निभायी है. यह भी उल्लेखनीय है कि महालेखा परीक्षक और चुनाव आयोग की तरह रिजर्व बैंक को संवैधानिक सरंक्षण नहीं है. ऐसे में मौजूदा नियमों तथा स्थापित परंपराओं के आधार पर रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार को संतुलित रवैये के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.

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