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बड़ी जीत से आगे

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पंद्रह सालों के लंबे अंतराल के बाद जूनियर वर्ल्ड कप पर भारतीय टीम ने कब्जा किया है. पहली बार ऐसा हुआ है, जब जीत मेजबान देश के खाते में गयी है. अक्तूबर में अंडर-18 एशिया कप और अब विश्व कप हासिल करने से भारतीय हॉकी के दिन बहुरने की उम्मीद भी बलवती हुई है. वर्ष […]

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पंद्रह सालों के लंबे अंतराल के बाद जूनियर वर्ल्ड कप पर भारतीय टीम ने कब्जा किया है. पहली बार ऐसा हुआ है, जब जीत मेजबान देश के खाते में गयी है. अक्तूबर में अंडर-18 एशिया कप और अब विश्व कप हासिल करने से भारतीय हॉकी के दिन बहुरने की उम्मीद भी बलवती हुई है. वर्ष 2001 में इस कप को जीतनेवाले खिलाड़ियों ने सीनियर टीम में शानदार योगदान दिया था. अब इन जूनियर खिलाड़ियों ने भरोसा जगाया है.

इस जीत को इस महीने विश्व सुपर सीरीज टेनिस में पीवी सिंधु के जोरदार प्रदर्शन, मुक्केबाज विजेंदर सिंह द्वारा डब्ल्यूबीओ एशिया-प्रशांत खिताब बरकरार रखना और क्रिकेट में विजय के साथ देखें, तो खेलों के लिए मौजूदा दौर कामयाबी भरा है. बहरहाल, आशा से लबरेज समय में चिंताओं और समस्याओं पर नजर रखना भी जरूरी है. क्रिकेट बोर्ड से लेकर खेल संघों पर कुंडली मार कर बैठने की परिपाटी से खेल और खिलाड़ियों की संभावनाओं को बड़ी चोट मिली है. भ्रष्टाचार, रिश्तेदारी, शोषण, सीमित संसाधन और सतही प्रशिक्षण के कारण खेलों में तमाम उपलब्धियों के बावजूद हम आज भी फिसड्डी देश हैं.

इस मद में हमारा बजट बहुत कम और प्रबंधन बेहद लचर है. खेल मंत्रालयों, विभागों और संघों में अनुभवी खिलाड़ियों को खास महत्व नहीं मिलता है. खराब प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों पर गाज गिरती रहती है, पर उनकी शिकायतों और जरूरतों को लेकर सरकारों और संघों का रवैया बेहद निराशाजनक रहता है. कई बार खिलाड़ियों के साथ फिजियोथेरेपिस्ट और प्रशिक्षक नहीं होते, पर बड़ी संख्या में खेल अधिकारी खेल आयोजनों में जाते हैं. खेल संघों के प्रबंधन में सुधार की मांग बरसों से होती रही है, पर नेताओं और अधिकारियों की ताकतवर मंडली के सामने वे बेअसर रही हैं. खेल प्रतिभाओं को बचपन से ही निखारने के लिए स्कूल-कॉलेजों और प्रशिक्षण संस्थानों में समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए और अच्छे खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के उपाय होने चाहिए.

यदि ऐसा नहीं होता है और खेल संघों पर काबिज रहने की प्रवृत्ति ऐसे ही कायम रही तो, कुछ जीतों के भरोसे भारतीय खेलों के उज्ज्वल भविष्य का सपना नहीं देखा जा सकता है. खेलों के विकास के लिए समाज को भी सरकारों पर लगातार दबाव बनाना चाहिए. खिलाड़ियों ने तो अपना दम दिखा दिया है, अब बारी प्रबंधन से जुड़े लोगों की है.

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