18.4 C
Ranchi
Wednesday, February 12, 2025 | 02:22 am
18.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

राम मंदिर मुद्दा अब अप्रासंगिक

Advertisement

पवन के वर्मा लेखक एवं पूर्व प्रशासक पुरानी कहावत है कि इतिहास खुद को पहली बार तो एक दुखद घटना और फिर उसकी भी अगली बार प्रहसन के रूप में दोहराया करता है. पर कुछ राजनीतिक दल मानो इस सत्य से परिचित नहीं होते. उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए होनेवाले आगामी चुनावों में राम मंदिर […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

पवन के वर्मा

लेखक एवं पूर्व प्रशासक

पुरानी कहावत है कि इतिहास खुद को पहली बार तो एक दुखद घटना और फिर उसकी भी अगली बार प्रहसन के रूप में दोहराया करता है. पर कुछ राजनीतिक दल मानो इस सत्य से परिचित नहीं होते. उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए होनेवाले आगामी चुनावों में राम मंदिर निर्माण को एक मुद्दे के रूप में उभार कर भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों ने यह साफ कर दिया है कि वे न तो इतिहास को याद रख सके हैं, न ही उसके सबक आत्मसात कर पाये हैं.

इस संबंध में पिछले अनुभव कट्टरवादी राजनीति के घटते फायदों के अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं. 1990 के दशक की शुरुआत में भाजपा को राम मंदिर आंदोलन से फायदा पहुंचा, मगर यह स्थिति टिकी न रह सकी. 1993 के चुनावों के नतीजतन भाजपा ने सरकार तो बना लिया, पर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा मतदाताओं के लिए तब से ही लगातार ठंडा पड़ने लगा.

1996 के चुनावों में भाजपा एक साधारण बहुमत हासिल करने में और उसके बाद तो सबसे बड़ा दल हो पाने में भी विफल रही. अगस्त 2003 में, जब राम मंदिर आंदोलन की स्मृति जनता के मन में ताजा थी, राष्ट्र का मिजाज भांपने के लिए ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका द्वारा कराये गये एक सर्वेक्षण में लगभग 50 फीसदी हिंदुओं ने यह बताया कि उनका मत अयोध्या के मुद्दे से तय नहीं होगा.

स्वयं अयोध्या में भी, जहां भाजपा उम्मीदवार हमेशा अच्छा प्रदर्शन करते रहे थे, उनकी जीत का अंतर तथा उनके मतों का हिस्सा मोटे तौर पर घटता ही रहा है.

शहर के दुकानदार भी, जो परंपरागत रूप से भाजपा के मजबूत समर्थक रहे हैं, अब राम मंदिर निर्माण से बढ़ कर अपने कारोबार के घटते जाने से चिंतित हैं. 2002 में भाजपा छोड़ चुके इस क्षेत्र के एक प्रमुख राजनेता वेद प्रकाश गुप्ता ने कहा कि मंदिर के लिए बार-बार होनेवाले आंदोलनों से बनिया समुदाय के लोगों को नुकसान पहुंचा है.

यदि भाजपा राम मंदिर निर्माण का इस्तेमाल मतों के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए करना चाहती है, तो यह जानना दिलचस्प होगा कि मुसलिम भी इस मुद्दे पर उत्तेजित होने के अनिच्छुक हैं.

2002 में ‘आउटलुक’ द्वारा कराये गये एक सर्वेक्षण में 40 फीसदी मुसलिम उत्तरदाताओं ने यह बताया कि वे बाबरी मसजिद के मामले के लिए लड़नेवालों को मुसलिम समुदाय के सच्चे प्रवक्ता नहीं मानते, जबकि 52 फीसदी मुसलिम अयोध्या विवाद का समाधान बातचीत से करने के हामी थे. बाकी बचे 48 फीसदी ने बताया कि वे अदालत के फैसले को खुशी-खुशी मानेंगे. एक भी उत्तरदाता हिंसा का पक्षधर नहीं निकला. निष्कर्ष यह है कि बाबरी विध्वंस के बाद से लेकर अब तक एक सामान्य व्यक्ति, चाहे वह हिंदू हो या मुसलिम, एक-दूसरे से संघर्ष करना नहीं चाहता.

भाजपा-संघ के कट्टरवादी मतदाता इस भावना को कमजोर करने के लिए यह अथवा ऐसे ही अन्य मुद्दे उभारते रहते हैं. वे यह नहीं समझ पाते कि स्वयं हिंदू मत कोई एकाकार नहीं, बल्कि जातियों के उन धड़ों में बंटा हुआ है, जो खुद आर्थिक, सामाजिक, व्यक्तिगत गरिमा एवं राजनीतिक नजरिये की लंबी और बद्धमूल भिन्नताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं. भाजपा इन भिन्नताओं को कट्टर राष्ट्रवाद की भावनाएं उभार ढांपने की कोशिश कर रही है. ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ को दलगत आधार से ऊपर उठ कर समर्थन मिला, पर प्रधानमंत्री, उनके वरीय मंत्री एवं भाजपा कार्यकर्ता जिस तरह उसका चुनावी इस्तेमाल करना चाहते हैं, वह निंदनीय है.

मतदाताओं के सामने वास्तविक मुद्दा आर्थिक हालात के बुरे होते जाने का ही है. जीडीपी में सात प्रतिशत से ऊपर वृद्धि दर का केंद्र का दावा जमीन पर कहीं नहीं दिखता. निर्यात घट रहे हैं, औद्योगिक उत्पादन निम्न है, विनिर्माण क्षेत्र ह्रासोन्मुख है, बैंकिंग क्षेत्र में अव्यवस्था व्याप्त है और कीमतें और बेरोजगारी की दर ऊपर जा रही हैं. प्रतिवर्ष दो करोड़ रोजगारों का सृजन एक जुमला सिद्ध हो चुका है.

कृषि क्षेत्र की स्थिति तो सबसे बुरी है. पिछले वर्ष राष्ट्र की कृषि वृद्धि दर एक प्रतिशत थी. किसानों से किया गया यह वादा सुविधापूर्वक भुला दिया गया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत पर पचास प्रतिशत मुनाफे के आधार पर तय किये जायेंगे. उर्वरक सब्सिडी घटा दी गयी एवं सिंचाई बजट का आकार छोटा कर दिया गया. देश के किसानों की आधी तादाद प्रति व्यक्ति 47,000 रुपये की कर्जदार है, मगर उन्हें और अधिक कर्ज उपलब्ध कराने के वादे के सिवा भाजपा को और कोई उपाय नहीं सूझ रहा.

ऐसी स्थिति में यदि भाजपा यह यकीन करती है कि एक बार फिर मंदिर कार्ड खेल कर, सांप्रदायिक खाई खोद कर अथवा छद्म राष्ट्रवाद उभार कर वह मतदाताओं को आर्थिक परेशानियां और सामाजिक गैर-बराबरी जैसे उनके जीवन से संबद्ध मुद्दे भूल जाने के लिए भरमा लेगी, तो वह इतिहास को दुखद तथा प्रहसन बना डालने की हद तक दोहराने को अभिशप्त है.

(अनुवाद: विजय नंदन)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें