डिफॉल्टरों पर नकेल

जिसे कर्ज चुकाने में दिलचस्पी न हो और सरकारी बैंक उसे ही कर्जा देने को तत्पर हों, तो इसे देश की बैंकिंग-प्रणाली और अर्थव्यवस्था के लिए आत्मघाती ही माना जायेगा. हमारे देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है. सरकारी बैंक कर्ज न चुकानेवाले पूंजीपतियों पर मेहरबान हैं, और रिजर्व बैंक तथा केंद्र सरकार को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2016 7:02 AM
जिसे कर्ज चुकाने में दिलचस्पी न हो और सरकारी बैंक उसे ही कर्जा देने को तत्पर हों, तो इसे देश की बैंकिंग-प्रणाली और अर्थव्यवस्था के लिए आत्मघाती ही माना जायेगा. हमारे देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है. सरकारी बैंक कर्ज न चुकानेवाले पूंजीपतियों पर मेहरबान हैं, और रिजर्व बैंक तथा केंद्र सरकार को ऐसे डिफॉल्टरों के नाम तक जाहिर करने में परेशानी हो रही है.
यह मांग लंबे समय से की जा रही है कि पारदर्शिता की दुहाई देनेवाली सरकार को खुद ही आगे बढ़ कर बड़े कर्जदारों का खुलासा करना चाहिए. इसी से जुड़े एक मामले में अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी नाम छिपाने की सरकार की नीयत पर सवालिया निशान लगाया है. अदालत का कहना है कि बड़े कर्जदारों के नाम सार्वजनिक करना लोकहित में है. रिजर्व बैंक के नये आंकड़े बताते हैं कि बैंकों पर फंसे हुए कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है.
बीते जून में बैंकों का एनपीए (गैर निष्पादित परिसंपत्ति) 121 अरब डॉलर से बढ़ कर 138 अरब डॉलर का हो चुका था. महज छह माह के भीतर इसमें 15 फीसदी का इजाफा हुआ. उम्मीद तो यही थी कि सरकार इस डूबी हुई रकम को कर्जदार पूंजीपतियों से वसूलने के लिए सख्त कदम उठायेगी, पर इसके उलट सरकार उन पूंजीपतियों के नाम तक नहीं बताना चाह रही है. विडंबना यह है कि इसके लिए सूचना के अधिकार के एक विशेष प्रावधान का सहारा लिया जा रहा है, जबकि इस कानून की मंशा लोकहित की रक्षा में यथासंभव हर तरह की सूचना को सार्वजनिक करने की है.
इस अधिकार में अपवाद-स्वरूप राष्ट्रीय एकता, अखंडता और आर्थिक सुरक्षा तथा किन्हीं दो पक्षों के बीच विश्वास के आधार पर हुए आपसी लेन-देन जैसे संदर्भों में सार्वजनिक प्राधिकरणों को कुछ सूचनाएं जाहिर न करने की छूट दी गयी है. सरकार और रिजर्व बैंक इसी प्रावधान की ओट में कर्जदार पूंजीपतियों के नाम छुपाने पर आमादा हैं. कर्जदारों के नाम के साथ कर्जमाफी का मसला भी जुड़ा हुआ है. पिछले कुछ समय से बैंकों ने कर्जे की बड़ी रकम माफ की है.
संबंधित विवरणों के जगजाहिर होने से ही पता चलेगा कि किसे कर्जमाफी का फायदा हुआ है और कहीं ऐसा करने के पीछे निहित स्वार्थ तो काम नहीं कर रहे थे. बहरहाल, उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय के कड़े रुख से सरकार और रिजर्व बैंक के रवैये में समुचित सुधार होगा.

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