दुनिया के कई देशों ने अपने तात्कालिक या दीर्घकालिक फायदों के कारण आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होने के प्रयासों में जो सुस्ती दिखायी है, उससे आतंक के पैरोकारों के हौसले बढ़े हैं.
सबसे क्रूर चरमपंथी आइएस ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं को ताक पर रख कर महाशक्तियों को आईना दिखाया है. इस समस्या से निबटने के लिए बड़ी शक्तियों को हाथ मिलाना चाहिए. वास्तव में आतंकवाद के विरुद्ध ऐसी नीतियों की आवश्यकता है जो व्यक्तिगत, राष्ट्रगत और क्षेत्रगत हितों से ऊपर उठ कर मानव कल्याण और वैश्विक सभ्यता की शांतिपूर्ण स्थापना में सहायक भूमिका अदा करें.
चंदन मिश्रा, टाटानगर