खेलों में बेहतरी की राह

अंतरराष्ट्रीय खेलों में लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के बीच उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मानव विकास के बुनियादी क्षेत्रों में धन का समुचित निवेश भी जरूरी है. रियो ओलिंपिक की पदक तालिका इंगित करती है कि इसमें शीर्ष पर रहनेवाले देश उच्च आयवाले हैं और चीन के अलावा शेष शीर्ष देश मानव विकास सूचकांक में भी भारत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 23, 2016 11:51 PM

अंतरराष्ट्रीय खेलों में लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के बीच उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मानव विकास के बुनियादी क्षेत्रों में धन का समुचित निवेश भी जरूरी है. रियो ओलिंपिक की पदक तालिका इंगित करती है कि इसमें शीर्ष पर रहनेवाले देश उच्च आयवाले हैं और चीन के अलावा शेष शीर्ष देश मानव विकास सूचकांक में भी भारत से बहुत आगे हैं. इसका अर्थ यह है कि उन देशों में स्वास्थ्य, साक्षरता और रहन-सहन की बेहतरी का भी उनके प्रदर्शन से गहरा संबंध है.

हालांकि, ब्राजील, जमैका, क्यूबा और केन्या जैसे कम या मध्य आयवाले तथा मानव विकास में बहुत पीछे खड़े देश भी पदक जीतनेवाले शीर्ष 20 देशों में शामिल हैं, लेकिन इनके खिलाड़ियों का प्रदर्शन कुछ खेलों तक ही सीमित है. वित्तीय संस्था ‘गोल्डमैन सैक्स’ ओलिंपिक प्रदर्शन की भविष्यवाणी करने में देशों के राजनीतिक एवं सांस्थानिक परिवेश को भी एक आधार के रूप में प्रयुक्त करता है. इस वर्ष ब्रिटेन और कनाडा के शानदार प्रदर्शन के पीछे बड़ा निवेश और दीर्घकालीन रणनीति जैसे कारक महत्वपूर्ण रहे हैं, तो चीन और ऑस्ट्रेलिया की सरकारों के पुरजोर सहयोग ने पदक बटोरने में बड़ा योगदान दिया.

यूरोपीय देशों ने सर्वाधिक 451, पूर्वी एशियाई देशों ने 162, लैटिन अमेरिकी देशों ने 52 और अफ्रीकी देशों ने 36 पदक जीते हैं. इस आंकड़े से स्पष्ट है कि खिलाड़ियों के उत्कृष्ट प्रदर्शन में देश के आर्थिक विकास के साथ सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की भी बड़ी भूमिका रही है. हालांकि यह भी उल्लेखनीय है कि गरीब और पिछड़े देशों ने अपनी क्षमता और संभावना के अनुरूप कम खेलों पर ध्यान केंद्रित कर विकसित देशों को पीछे छोड़ते हुए पदक जीतने में कामयाबी पायी है. इस विश्लेषण से भारत कुछ जरूरी सबक ले सकता है. रियो में हम दो पदकों के साथ 67वें स्थान पर रहे हैं.

स्वास्थ्य की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया में 103वां है, तो मानव विकास सूचकांक में हम 130वें पायदान पर खड़े हैं. रियो में महिला खिलाड़ियों ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है, पर कार्यशक्ति में महिलाओं की भागीदारी के मामले में हम ब्रिक्स देशों में सबसे पीछे हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य और अवसर की समानता के मामले में उनकी स्थिति चिंताजनक है. ऐसे में जरूरी है कि आम जीवन-स्तर को ऊंचा उठाने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनें और तात्कालिक तौर पर कुछ चुनिंदा खेलों पर ध्यान केंद्रित कर अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में भाग लिया जाये.

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