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कश्मीर में अमन कब?

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कश्मीर में कर्फ्यू 41वें दिन भी जारी रहा. इस हिंसक दौर में 67 लोग मारे जा चुके हैं, पांच हजार से अधिक घायल हुए हैं. इस बीच घाटी में अमन-बहाली की राह तलाशने के लिए संसद के दोनों सदनों में चार बार चर्चा और एक सर्वदलीय बैठक के बाद भी हालात में सुधार के संकेत नहीं मिले हैं.

कड़ी सुरक्षा, कर्फ्यू और इंटरनेट पर पाबंदी के बावजूद रोष प्रदर्शन भी हो रहे हैं और सुरक्षाबलों पर हमले भी. राज्यसभा में कर्ण सिंह द्वारा वृहत जम्मू-कश्मीर का मामला उठाने और स्वतंत्रता दिवस संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पाक-अधिकृत कश्मीर, गिलगिट और बलूचिस्तान का जिक्र किये जाने के बाद पाकिस्तान की बौखलाहट बढ़ी है. पंद्रह अगस्त के बाद से सुरक्षाबलों पर आतंकी हमलों का सिलसिला तेज हो गया है और ऐसी वारदातों में अब तक चार सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं, कई घायल हुए हैं.

निश्चित रूप से पाकिस्तान की मंशा कश्मीर को और अधिक अशांत करने की है, ताकि वह इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भुना सके. ऐसे में जरूरी है कि केंद्र और राज्य सरकारें घाटी में अमन-चैन बहाल करने के अपने प्रयासों को तेज करे और राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टियां- नेशनल कांफ्रेंस तथा कांग्रेस- ऐसे प्रयासों में सक्रिय एवं सकारात्मक योगदान दे. ऐसे नाजुक वक्त में राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों को अपने दलगत व सामुदायिक हितों से ऊपर उठ कर हालात को सामान्य बनाने के लिए ठोस प्रयास करना जरूरी है.

कश्मीर में शांति स्थापित करके ही हम पाकिस्तान के स्वार्थों और उसकी शह पर सक्रिय अलगाववादी तत्वों के दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों को मात दे सकते हैं. कश्मीर की शांति और समृद्धि ही उनकी हिंसक गतिविधियों और उनके षड्यंत्रों का माकूल जवाब होगा. इस दिशा में कश्मीरी अवाम से संवाद को प्रमुखता देने की जरूरत है.

हिंसक प्रदर्शनों के प्रतिकार में बल प्रयोग जारी रहने से कश्मीरी जनता के असंतोष और आतंकवादी गिरोहों की हरकतों को एक पटल पर रख कर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने प्रस्तुत करना पाकिस्तान के लिए आसान हो सकता है. कश्मीर में शांति और वहां के लोगों में भरोसा पैदा करके ही राज्य के विकास की राह भी प्रशस्त होगी. ऐसी सकारात्मक परिस्थितियां पैदा करके ही हम पाकिस्तान की नापाक हरकतों पर अंकुश लगा सकते हैं और उसकी कश्मीर नीति के खोखलापन को जगजाहिर कर सकते हैं.

कश्मीर में कर्फ्यू 41वें दिन भी जारी रहा. इस हिंसक दौर में 67 लोग मारे जा चुके हैं, पांच हजार से अधिक घायल हुए हैं. इस बीच घाटी में अमन-बहाली की राह तलाशने के लिए संसद के दोनों सदनों में चार बार चर्चा और एक सर्वदलीय बैठक के बाद भी हालात में सुधार के संकेत नहीं मिले हैं.

कड़ी सुरक्षा, कर्फ्यू और इंटरनेट पर पाबंदी के बावजूद रोष प्रदर्शन भी हो रहे हैं और सुरक्षाबलों पर हमले भी. राज्यसभा में कर्ण सिंह द्वारा वृहत जम्मू-कश्मीर का मामला उठाने और स्वतंत्रता दिवस संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पाक-अधिकृत कश्मीर, गिलगिट और बलूचिस्तान का जिक्र किये जाने के बाद पाकिस्तान की बौखलाहट बढ़ी है. पंद्रह अगस्त के बाद से सुरक्षाबलों पर आतंकी हमलों का सिलसिला तेज हो गया है और ऐसी वारदातों में अब तक चार सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं, कई घायल हुए हैं.

निश्चित रूप से पाकिस्तान की मंशा कश्मीर को और अधिक अशांत करने की है, ताकि वह इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भुना सके. ऐसे में जरूरी है कि केंद्र और राज्य सरकारें घाटी में अमन-चैन बहाल करने के अपने प्रयासों को तेज करे और राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टियां- नेशनल कांफ्रेंस तथा कांग्रेस- ऐसे प्रयासों में सक्रिय एवं सकारात्मक योगदान दे. ऐसे नाजुक वक्त में राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों को अपने दलगत व सामुदायिक हितों से ऊपर उठ कर हालात को सामान्य बनाने के लिए ठोस प्रयास करना जरूरी है.

कश्मीर में शांति स्थापित करके ही हम पाकिस्तान के स्वार्थों और उसकी शह पर सक्रिय अलगाववादी तत्वों के दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों को मात दे सकते हैं. कश्मीर की शांति और समृद्धि ही उनकी हिंसक गतिविधियों और उनके षड्यंत्रों का माकूल जवाब होगा. इस दिशा में कश्मीरी अवाम से संवाद को प्रमुखता देने की जरूरत है.

हिंसक प्रदर्शनों के प्रतिकार में बल प्रयोग जारी रहने से कश्मीरी जनता के असंतोष और आतंकवादी गिरोहों की हरकतों को एक पटल पर रख कर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने प्रस्तुत करना पाकिस्तान के लिए आसान हो सकता है. कश्मीर में शांति और वहां के लोगों में भरोसा पैदा करके ही राज्य के विकास की राह भी प्रशस्त होगी. ऐसी सकारात्मक परिस्थितियां पैदा करके ही हम पाकिस्तान की नापाक हरकतों पर अंकुश लगा सकते हैं और उसकी कश्मीर नीति के खोखलापन को जगजाहिर कर सकते हैं.

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