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मध्याह्न जन व सामाजिक परिवर्तन

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प्राथमिक विद्यालयों में ‘मध्याह्न भोजन योजना’ का चाहे जितना विरोध किया जाये, लेकिन यह सच्चाई है कि इसने शिक्षा जगत में कई क्रांतिकारी परिवर्तन की है. सामाजिक-आर्थिक समानता को भारतीय समाज में दोबारा स्थािपत करने में इसकी भूमिका अहम है. एक समय था, जब भूखे-प्यासे बच्चे विद्यालयों की ओर नजर उठा कर भी नहीं देखते […]

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प्राथमिक विद्यालयों में ‘मध्याह्न भोजन योजना’ का चाहे जितना विरोध किया जाये, लेकिन यह सच्चाई है कि इसने शिक्षा जगत में कई क्रांतिकारी परिवर्तन की है. सामाजिक-आर्थिक समानता को भारतीय समाज में दोबारा स्थािपत करने में इसकी भूमिका अहम है. एक समय था, जब भूखे-प्यासे बच्चे विद्यालयों की ओर नजर उठा कर भी नहीं देखते थे.
उनका सारा समय गली-मुहल्लों व सड़कों पर आवारा घूमने तथा खेलने में ही बीतता था, लेकिन अब थाली लेकर ही सही, पर वे विद्यालय पहुंच रहे हैं. सुखद यह है कि बच्चे उक्त अभिशप्त परिस्थितियों से मुक्ति पा रहे हैं. विद्यालय में उपस्थित रहने से कुछ शब्द उनके कान में पड़ जाते हैं. बड़ी बात यह िक प्रतिदिन विद्यालय जाने के लिए बच्चा अभ्यस्त भी हो रहा है. धीरे-धीरे समझ बढ़ेगी, तो वह अच्छा प्रदर्शन भी करेगा. नियमित विद्यालय जाने से वह न सिर्फ भोजन ग्रहण कर रहा है, अपितु अनुशासन, खेल, सहयोग व सम्मान की भावना तथा नेतृत्व का गुण भी सीख रहा है.
दूसरी अोर हम देखें तो मध्याह्न भोजन के कारण बच्चे सामाजिक तौर पर परिपक्व हो रहे हैं. छोटी उम्र से ही ये बच्चे धर्म, जाति, संप्रदाय व परिवार आदि में विभेद किये बिना साथ भोजन कर रहे हैं और खेल भी रहे हैं. इससे आने वाले समय में देश में सामाजिक-आर्थिक भेदभाव तथा असमानता की दीवारें निश्चित तौर पर टूटेंगी. निःसंदेह, इस योजना ने समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरुआत की है, जिसका स्वप्न कभी गांधी, अंबेडकर व ज्योतिबा फूले देखा करते थे.
इस योजना का उद्देश्य बहुआयामी है. निर्धन परिवार के बच्चों के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं है. किसी भी हालत में यह योजना बंद नहीं होनी चाहिए. अन्यथा नौनिहालों का एक बड़ा हिस्सा वंिचत रह जायेगा.
– सुधीर कुमार, राजाभीठा, गोड्डा

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