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निजता की रक्षा है जरूरी

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सुधांशु रंजन वरिष्ठ टीवी पत्रकार अभी निजता के अधिकार पर कई कारणों से व्यापक बहस चल रही है. उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ को तय करना है कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है या नहीं.आधार (यूएआइडी) की संविधानिकता को चुनौती देनेवाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान महान्यायाधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा […]

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सुधांशु रंजन

वरिष्ठ टीवी पत्रकार

अभी निजता के अधिकार पर कई कारणों से व्यापक बहस चल रही है. उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ को तय करना है कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है या नहीं.आधार (यूएआइडी) की संविधानिकता को चुनौती देनेवाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान महान्यायाधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह एक मौलिक अधिकार नहीं है.

इस पर सुनवाई कर रही तीन न्यायाधीशों की एक खंडपीठ ने सरकार के अनुरोध पर मामला संविधान पीठ को सौंप दिया है. इसके अलावा, डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक भी बन कर तैयार है, जिसे संसद में पेश किया जाना है.

इसको लेकर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं कि एकत्र किये गये संवेदनशील आंकड़ों का दुरुपयोग हो सकता है, जो व्यक्ति की निजता में घुसपैठ होगा.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में स्पष्ट किया कि आधार संख्या का इस्तेमाल केवल रसोई गैस की सब्सिडी एवं जन वितरण प्रणाली के लिए किया जायेगा, अन्य कार्यो के लिए नहीं. इसके दूरगामी प्रभाव होंगे.

निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा स्पष्ट रूप से तो प्राप्त नहीं हुआ है, परंतु भारतीय परंपरा में लोगों को यह अधिकार प्राचीन काल से प्राप्त है.

इसलिए यह आवश्यक है कि देश की सर्वोच्च अदालत ऐसे मसले पर स्थिति स्पष्ट करे. महान्यायाधिवक्ता ने जब दलील दी कि निजता एक मौलिक अधिकार नहीं है, तो इसकी पृष्ठभूमि में उच्चतम न्यायालय के दो महत्वपूर्ण निर्णय थे, जिनका हवाला उन्होंने दिया.

1954 में एमपी शर्मा बनाम सतीश चंद्र में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अमेरिका के चौथे संविधान संशोधन की तरह भारतीय संविधान में निजता को मौलिक अधिकार के रूप में पहचान नहीं मिली है और खींच-तीर कर व्याख्या के जरिये इसे आयात करने की कोई जरूरत नहीं है.

दरअसल, इस मामले में अपराध प्रक्रिया विधान, 1898 की धारा 96 की वैधता को चुनौती दी गयी थी, जिसमें छापेमारी का अधिकार राज्य को प्राप्त है.

यहां जिक्र करना प्रासंगिक होगा कि अमेरिकी संविधान के चौथे संशोधन की तर्ज पर संविधान सभा में काजी करीमुद्दीन ने एक संशोधन पेश किया था, जो खारिज हो गया.

परंतु भीमराव आंबेडकर ने इसकी महत्ता पर जो बयान दिया, उसके आलोक में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी उचित प्रतीत नहीं होती है. बाद में 1963 में खरक सिंह बनाम उत्तर प्रदेश में इसी तरह का प्रश्न उठा कि क्या उत्तर प्रदेश पुलिस नियमन के तहत निगरानी का अधिकार वैध है या नहीं.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन व व्यक्तिगत आजादी का अधिकार) के तहत इसे अवैध करार दिया, पर उसने स्पष्ट किया कि चूंकि निजता एक संविधान प्रदत्त अधिकार नहीं है, इसलिए किसी के आने-जाने पर नजर रखना, जिससे निजता में अतिक्रमण होता हो, मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है. परंतु न्यायमूर्ति के सुब्बा राव ने इससे असहमति जतायी.

उन्होंने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत आजादी के अधिकार का अर्थ केवल घूमने-फिरने की आजादी नहीं है, बल्कि निजी जीवन में भी घुसपैठ से स्वतंत्रता है. भले ही मौलिक अधिकारों में निजता को शामिल नहीं किया गया हो, पर यह व्यक्तिगत आजादी का अभिन्न अंग है.

प्राद्यौगिकी के विस्तार से निजता में घुसपैठ शुरू हो गयी है. 1888 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एज ने लिखा कि चूंकि इंगलैंड में निजता का कोई रिवाज नहीं है, इसलिए उस आधार पर यह मानना गलत होगा कि भारत में ऐसा नहीं है.

भारतीय दंड विधान की धारा 509 के अनुसार किसी स्त्री की निजता में घुसपैठ अपराध है.वर्ष 2012 में केंद्र सरकार ने निजता के अधिकार व डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक, 2007 के तहत न्यायमूर्ति ए पी शाह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसे इन दोनों मुद्दों पर अपनी राय देनी थी.

समिति ने स्पष्ट रूप से अनुशंसा की कि ऐसा कोई कानून बनाने से पहले निजता के अधिकार का एक मजबूत कानून बनना चाहिए.

डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक अपराधों के अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वैज्ञानिक तरीके से व्यक्ति की पहचान होगी, जिससे उसके डीएनए की जांच होगी. परंतु संवेदनशील आंकड़ों का दुरुपयोग भी संभव है.

एडवर्ड स्नोडेन द्वारा किये गये खुलासे से जाहिर है कि निजी अधिकारियों के पास जो संवेदनशील गोपनीय सूचनाएं होती हैं, वे अन्य के साथ साझा की जाती हैं. ‘आधार’ को लेकर भी काफी आशंकाएं हैं. यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि संवेदनशील आंकड़े व जानकारियां सुरक्षित रहें.

अमेरिका में 1974 का निजता कानून ऐसे किसी दुरुपयोग के खिलाफ एक सुरक्षा प्रदान करता है. इसमें संबद्ध व्यक्ति को भी अधिकार है कि वह अपने बारे में एकत्र आंकड़े को देख सके.प्रौद्यौगिकी का लाभ उठाना वक्त की जरूरत है, किंतु संतुलन बनाना अनिवार्य है, ताकि उससे किसी की निजता प्रभावित न हो.

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