बुजुर्गो के सम्मान से ही बचेगी संस्कृति
शास्त्रों में माता-पिता की तुलना देवी-देवताओं से की गयी है. एक समय था, जब माता-पिता को आदर्श मान उनका सम्मान किया जाता था. संपरूण विश्व में शायद भारत ही ऐसा एकमात्र देश है, जहां तीन पीढ़ियां प्रेम से एक ही घर में रहती थीं.परंतु आज पश्चिमी संस्कृति के प्रति बढ़ते रुझान ने नयी पीढ़ी को […]
शास्त्रों में माता-पिता की तुलना देवी-देवताओं से की गयी है. एक समय था, जब माता-पिता को आदर्श मान उनका सम्मान किया जाता था. संपरूण विश्व में शायद भारत ही ऐसा एकमात्र देश है, जहां तीन पीढ़ियां प्रेम से एक ही घर में रहती थीं.परंतु आज पश्चिमी संस्कृति के प्रति बढ़ते रुझान ने नयी पीढ़ी को इस कदर वश में कर लिया है कि वो माता-पिता के साथ चंद लम्हे बिताना अपने सिद्धांतों के विरुद्ध समझती है.
जो माता-पिता अपनी औलाद के आगमन की खुशी में मोहल्ले में मिठाइयां बांटते फिरते थे और उसकी एक हंसी से दुनिया की पूरी खुशियां प्राप्त कर लेने की अनुभूति करते थे, वही औलाद माता-पिता की एक छोटी सी इच्छा की पूर्ति करने में आनाकानी कर रही है और उन्हें अपने जीवन का बोझ समझती है.
वह उन्हें अपने जीवन से जल्द से जल्द निकालने का प्रयास करती है. युग बदल गया है. एक तरफ तो देश विज्ञान के क्षेत्र में दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा है, वहीं युवाओं की सोच दिन-प्रतिदिन मलिन होती जा रही है.
माता-पिता के प्रति नफरत बढ़ती ही जा रही है. भले ही देश के युवाओं की सोच बदल गयी हो, लेकिन माता-पिता अब भी नहीं बदले हैं. आज भी माता-पिता का कलेजा फटता है और बच्चों की सेवा में रात गुजर जाती है. आज भी बूढ़ी आंखें दरवाजे पर टकटकी लगाये बेटे के आने का इंतजार करती हैं. आज भी अपने बेटे के संग बैठ कर चंद बातें करने को माता-पिता का मन मचलता है और सारी जिंदगी उनकी सलामती की दुआ में बीत जाती है.
परंतु निर्दयी औलाद के मन में उनके प्रति थोड़ा भी स्नेह नहीं रहता. अब भी समय है. यदि हम अपनी सभ्यता-संस्कृति को जिंदा रखना चाहते हैं, तो हमें अपने बुजुर्गो और माता-पिता का आदर करना होगा.
आस्था मुकुल, रांची