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हताशा के भंवर से बाहर आती कांग्रेस

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लोकतंत्र मजबूत तभी होता है, जब सत्तापक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी भूमिकाओं के प्रति सजग और सक्रिय हों. लेकिन, गत आम चुनाव में मिली ऐतिहासिक पराजय और लोकसभा में नेता विपक्ष का पद भी गंवा देने के बाद से देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस हताशा में डूबी और शिथिल पड़ती नजर आ रही थी. […]

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लोकतंत्र मजबूत तभी होता है, जब सत्तापक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी भूमिकाओं के प्रति सजग और सक्रिय हों. लेकिन, गत आम चुनाव में मिली ऐतिहासिक पराजय और लोकसभा में नेता विपक्ष का पद भी गंवा देने के बाद से देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस हताशा में डूबी और शिथिल पड़ती नजर आ रही थी.
राजनीति विज्ञानी कह रहे थे कि सत्ता पक्ष के किसी भी मनमाने कदम का विरोध तभी कारगर हो सकेगा, जब राज्यों और गुटों में बंटे विपक्षी दलों को एकजुट कर कांग्रेस उसका नेतृत्व करे. पर, संसद का अहम सत्र शुरू होने से पहले पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ‘अज्ञातवास’ में चले गये. इस मुद्दे पर हुई भारी फजीहत के बाद अब लगता है कि कांग्रेस ने हताशा से बाहर आने का फैसला कर लिया है. भूमि अधिग्रहण बिल से जुड़ी चिंताओं को संसद से सड़क तक उठा कर, राहुल की गैरमौजूदगी में ही उसने सक्रिय होने का संकेत दिया है.
सोमवार को भट्टा पारसौल से संसद तक यूथ कांग्रेस के मार्च के बाद मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के नेतृत्व में 10 विपक्षी दलों के राष्ट्रपति भवन तक मार्च के प्रयास में कांग्रेस के अपनी भूमिका के प्रति सचेत होने का संकेत साफ परिलक्षित हुआ है. ऐसा भी नहीं है कि उसने सत्ता पक्ष के हर फैसले का विरोध करने की ठानी है. संसद में बीमा अधिनियम (संशोधन) विधेयक पर उसने सकारात्मक रुख अपनाया. पार्टी ने निराशा से उबरने का संकेत पिछले हफ्ते अपने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मजबूती से खड़े होकर भी दिया है.
नरसिंह राव के बाद मनमोहन दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत आरोपी के तौर पर न्यायिक कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा. राव कोर्ट से बरी हो गये थे और मनमोहन को भी भरोसा है कि वे अपनी बेगुनाही साबित करेंगे. इसलिए जब तक दोष साबित नहीं होता, पार्टी को अपने पूर्व प्रधानमंत्री के साथ होना ही चाहिए. राम मनोहर लोहिया ने 1960 के दशक में कांग्रेस की अजेय सत्ता को चुनौती देते हुए कहा था, ‘जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं’. आम चुनाव के दस महीने बाद ही सही, कांग्रेस यदि रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए सक्रिय हो रही है, तो लोकतंत्र के शुभचिंतकों के लिए यह अच्छी खबर है. आगाज अच्छा है, अंजाम का इंतजार करना चाहिए.

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