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इ-कॉमर्स का सामना कीजिए

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इसमें कोई शक नहीं कि भविष्य इ-कामर्स का होगा. विषय है कि इस उभरते बाजार में विदेशी कंपनियों को प्रवेश दिया जाये या नहीं. अर्थशास्त्र में एक कांसेप्ट इन्फैंट इंडस्ट्री का है- प्रतिस्पर्धा में टिकने के लिए छोटे एवं नये उद्यमी को कुछ समय तक संरक्षण देना चाहिए. बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबाव है कि इ-कामर्स […]

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इसमें कोई शक नहीं कि भविष्य इ-कामर्स का होगा. विषय है कि इस उभरते बाजार में विदेशी कंपनियों को प्रवेश दिया जाये या नहीं. अर्थशास्त्र में एक कांसेप्ट इन्फैंट इंडस्ट्री का है- प्रतिस्पर्धा में टिकने के लिए छोटे एवं नये उद्यमी को कुछ समय तक संरक्षण देना चाहिए.

बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबाव है कि इ-कामर्स में विदेशी निवेश को छूट दी जाये. दो अमेरिकी सांसदों ने ओबामा से आग्रह किया है कि नरेंद्र मोदी पर इस दिशा में दबाव बनायें. जापानी इ-कामर्स कंपनी राकूटेन ने भी मोदी से ऐसा आग्रह किया है. दूसरी तरफ स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार से आग्रह किया है कि जिन भारतीय इ-कामर्स कंपनियों में विदेशी निवेश अधिक है, उन पर प्रतिबंध लगाया जाये.

अर्थव्यवस्था में लेन-देन मुख्य रूप से उत्पादक-उपभोक्ता के बीच होता है. अब इंटरनेट से यह कार्य होने लगा है. कई शहरों में लोगों ने सब्जी पहुंचाने की वेबसाइट बनायी है. आप प्रात: अपना ऑर्डर बुक करा सकते हैं. साइट का मालिक आपके लिए मंडी से सब्जी खरीद कर सीधे आपके घर पहुंचा देगा. इससे संकट बड़े विक्रेताओं पर है. फ्यूचर ग्रुप के किशेर बियानी ने भी इ-कामर्स से उपजे उस संकट का बयान किया है. इन विरोधों के बावजूद इ-कामर्स फूले-फलेगा.

इ-कामर्स से उपभोक्ता की च्वॉइस में भी विस्तार हो रहा है. मुङो मोबाइल फोन खरीदना था. तीन चार दुकानों में गया, तो कुछ ही मॉडल उपलब्ध थे. ऑनलाइन सर्च किया तो 20-25 मॉडल दिखे और अपना मनपसंद मॉडल मैंने एक इ-कामर्स वेबसाइट से मंगवा लिया. च्वॉइस भी मिली और सुविधा भी. एक प्रकाशक की पुरानी पुस्तकें नहीं बिकती थीं. बुकसेलर केवल नयी पुस्तकें रखना चाहते थे. उन्होंने अपनी समस्त पुस्तकों को वेबसाइट पर डाला, तो पुरानी पुस्तकें भी बिकने लगीं. जिन ग्राहकों को इन पुस्तकों की जरूरत थी, उन तक पहुंचना संभव हो गया.

बड़ी इ-कामर्स साइटों से घबराने की जरूरत नहीं है. हर व्यापार की एक विशेष उपयुक्त साइज होती है. जैसे 10,000 लोगों को बैठानेवाले रेस्तरां नहीं बनाये जाते हैं चूंकि बड़ी संख्या में रोटी बनाने में बचत कम होती है, लेकिन मैनेजमेंट कठिन हो जाता है. इसी प्रकार इ-कामर्स की वेबसाइटों की एक उपयुक्त साइज कुछ समय में निर्धारित हो जायेगी. एक इ-कामर्स कंपनी ने बताया कि माल की बुकिंग के तीन दिन के अंदर डिस्पैच करना होता है अन्यथा ऑर्डर कैंसिल हो जाता है और बदनामी भी होती है. अत: छोटी इ-कामर्स कंपनियों को उत्तम सेवा देनी चाहिए.

इ-कामर्स से हमारे लिए वैश्विक बाजार के खुलने की संभावना है. तमाम ऐसी सेवाएं हैं, जो कि इंटरनेट के माध्यम से दूसरे देश पहुंचायी जा सकती हैं. मेरी एक मित्र ने अमेरिकी छात्रों को ऑनलाइन ट्यूशन देने का काम शुरू किया है. उन्होंने किसी अमेरिकी ट्यूशन वेबसाइट में अपना पंजीकरण कराया. इंटरनेट के माध्यम से वे अमेरिकी छात्रों को गणित सिखाती हैं. तमाम भारतीय इंजीनियर विदेशियों की वेबसाइट डिजाइन कर रहे हैं. ग्लोबलाइजेशन के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं के बीच अनुवाद की मांग बढ़ेगी. भारतीय युवा यदि जर्मन से जापानी में अनुवाद कर सकें, तो बहुत बड़ा बाजार उनकी सेवा के लिए खड़ा रहेगा.

भविष्य इ-कामर्स का होगा. विषय है कि इस उभरते बाजार में विदेशी कंपनियों को प्रवेश दिया जाये या नहीं. अर्थशास्त्र में एक कांसेप्ट इन्फैंट इंडस्ट्री का है- प्रतिस्पर्धा में टिकने के लिए छोटे एवं नये उद्यमी को कुछ समय तक संरक्षण देना चाहिए. इसलिए हमें इ-कामर्स कंपनियों को संरक्षण देना चाहिए. जब वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने की क्षमता हासिल कर लें, तभी विदेशी कंपनियों को प्रवेश देना चाहिए.

इ-कामर्स में भारत की संभावनाओं को साकार करने में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. अत: सरकार को इ-कामर्स के लिए पंजीकरण अनिवार्य कर देना चाहिए. इ-कामर्स पुलिस स्थापित करनी चाहिए, जो शिकायतों का शीघ्र निपटारा कर सके. जिस प्रकार हमने बड़े उद्योगों पर अधिक एक्साइज ड्यूटी लगा रखी है, बड़ी इ-कामर्स कंपनियों पर टैक्स लगाना चाहिए. दुकानदार भी इ-कामर्स का सामना करने के लिए ऐसी सेवाओं को मुहैया करायें, जो इ-कामर्स से उपलब्ध नहीं हो सकती हैं, जैसे ट्यूटोरियल, डांस सिखाना, बाल काटना, भाषाएं सिखाना, ब्यूटीशियन इत्यादि. आनेवाले समय में इन सेवाओं की मांग बढ़ेगी, जबकि किताब, सब्जी, टीवी और कपड़ों की बिक्री इ-कामर्स के माध्यम से ज्यादा होगी. अत: यथा संभव सेवा क्षेत्र में प्रवेश करना चाहिए.

इंग्लैंड में किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि 38 प्रतिशत लोग इंटरनेट पर माल की खोज करते हैं और खरीद किसी दुकान से करते हैं. कारण, माल में शिकायत आने पर आप दुकान पर समाधान करा सकते हैं. किसी व्यक्ति ने इ-कामर्स के माध्यम से कोई सॉफ्टवेयर खरीदा. सीडी आयी तो वह बताये गये सॉफ्टवेयर की नहीं निकली. शिकायत की तो कहा गया कि सीडी वापस कर दो. वापस किया तो जवाब आया कि वापस की गयी सीडी विक्रता द्वारा भेजी गयी सीडी नहीं है. ऐसी समस्या दुकान से की गयी खरीद में कम आती है. अत: दुकानदारों को चाहिए कि ग्राहकों को उत्तम सेवा दें, जो इ-कामर्स से उपलब्ध नहीं हो सकती है.

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

bharatjj@gmail.com

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