झारखंड में किसानों की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में संतोषजनक नहीं है. कई किसान भुखमरी के कगार पर हैं. किसानों की स्थिति सुधारने के लिए कई सरकारी योजनाएं चलायी गयी हैं, पर उनका क्रियान्वयन ठीक ढंग से नहीं हो पाया. सरकार ने विकास के नाम पर खनिज पदार्थो के दोहन पर ज्यादा ध्यान दिया, न कि किसानों की स्थिति बेहतर करने पर.
इनकी स्थिति को सुधारने के लिए कई बड़ी-बड़ी सिंचाई योजनाएं बनायी गयीं. यहां तक कि इन योजनाओं के के लिए उनकी जमीन तक अधिगृहीत की गयीं. करोड़ों रुपये खर्च किये गये, पर किसानों की जमीन तक पानी नहीं आया.
झारखंडी किसानों की हताशा बराबर सूखे की मार झे लते और सरकारी उपेक्षा के चलते काफी बढ़ी है. यहां ना तो सिंचाई, बीज, खाद और खेती के औजार की समुचित व्यवस्था बन पायी है और ना कोई वैकिल्पक रोजगार के अवसर बनते नजर आते हैं. इसके फलस्वरूप किसान अपना पेट पालने के लिए अपना गांव छोड़ कर शहर की ओर पलायन रहे हैं. बिचौलियों से भी किसान काफी परेशान हो रहे हैं. केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) तो बना है, लेकिन सरकारी जटिल प्रक्रि या के चलते बहुत कम किसान लाभान्वित हुए हैं.
जरूरत है कि सरकार किसानों की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान दे, अन्यथा इनका पलायन जारी रहेगा. पहले इनकी बुनियादी समस्याओं का निवारण करना होगा. सरकार चाहे जितनी योजनाएं किसानों के हित में चला ले, लेकिन जब तक क्रियान्वयन ठीक ढंग से नहीं हो पायेगा, तब तक किसानों को लाभ नहीं मिल सकेगा. इसके लिए सरकार को निष्पक्षता से और बिना किसी भ्रष्टाचार के काम करना होगा.
पूनम गुप्ता, मधुपुर