15.1 C
Ranchi
Friday, February 28, 2025 | 04:15 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

विकास की बुनियाद बनाने के लिए जरूरी है शिक्षा

Advertisement

रुक्मिणी बनर्जी निदेशक, असर सरकार और समाज, दोनों को स्वीकार करना होगा कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का स्तर बहुत खराब है. बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात आदि कुछ राज्यों ने इस सच्चाई को स्वीकार कर बदलाव की शुरुआत की है. बच्चों को किसी भी देश, किसी भी राज्य का भविष्य माना जाता है. यदि […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

रुक्मिणी बनर्जी
निदेशक, असर
सरकार और समाज, दोनों को स्वीकार करना होगा कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का स्तर बहुत खराब है. बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात आदि कुछ राज्यों ने इस सच्चाई को स्वीकार कर बदलाव की शुरुआत की है.
बच्चों को किसी भी देश, किसी भी राज्य का भविष्य माना जाता है. यदि बच्चे ठीक से पढेंगे, उन्हें बुनियादी सुविधाएं मिलेगी, तो निश्चित रूप से वे एक बेहतर नागरिक बनेंगे और राज्य की प्रगति होगी. अन्य राज्यों की तरह ही झारखंड में बड़े पैमाने पर बच्चे स्कूल जाते हैं, लेकिन वे स्कूल में कितना सीख पाते हैं, या सीखने की प्रवृत्ति कितनी विकसित हो पाती है, इसे लेकर संशय है. झारखंड की तुलना अगर उसके मूल राज्य बिहार को सामने रख कर करें तो वहां कई कार्यक्रम चला कर बच्चों की बेहतरी के लिए प्रयास किये गये हैं.
जैसे कि ‘मिशन गुणवत्ता’ के तहत गुणवत्ता में सुधार किया गया. इसके तहत पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों के लिए अलग से शिक्षक नामित किये गये हैं, जो इन बच्चों को पढाएंगे. इसी तरह तीसरी, चौथी, या पांचवीं के बच्चों के लिए स्कूल के समय के अंदर ही अलग से समय निकाल कर उन्हें पढ़ाने की व्यवस्था की गयी है. इस तरह के प्रयास झारखंड में नजर नहीं आते. हो सकता है कि इसके पीछे एक प्रमुख कारण राजनीतिक अस्थिरता हो.
अब तक झारखंड के कई स्कूलों में टेक्सट बुक भी नहीं पहुंचा है, इससे आप समझ सकते हैं कि शिक्षा के प्रति कितनी गंभीरता है. स्कूली बच्चों के भाषा विकास के लिए तो काम किया गया, लेकिन व्यापक तौर पर इस दिशा में प्रयास होता नहीं दिखता कि उन्हें हिंदी की ओर कैसे लाया जाये. छोटे बच्चों के मामले में भाषा एक प्रमुख समस्या है. उनके घर की बोली का स्क्रिप्ट अलग है, जबकि पाठय़क्रमों की भाषा अलग है. इसी तरह शिक्षक के प्रशिक्षण का सवाल है.
प्रदेश सरकार सतत रूप से इस दिशा में पुख्ता प्रयास नहीं कर रही है. साथ ही साथ इनके फॉलोअप, मॉनीटरिंग की व्यवस्था नहीं है, जिससे कि गुणवत्ता में सुधार हो. हालांकि गांव और शहर की तुलना की जाये तो शहरों में सरकारी और निजी विद्यालयों में तुलनात्मक रूप से शिक्षकों की उपलब्धता अच्छी है. प्रदेश में अगर बच्चों के स्कूलों में उपस्थिति पर गौर किया जाये तो आज भी 60-62 फीसदी से ज्यादा उपस्थिति नहीं मिलती.
समाधान क्या है? सबसे पहले सरकार और समाज, दोनों को स्वीकार करना होगा कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का स्तर बहुत खराब है. संकट को स्वीकार करके ही समाधान निकल सकता है. बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात आदि कुछ राज्यों ने इस सच्चाई को स्वीकार कर बदलाव की शुरुआत की है. शिक्षा व्यवस्था में शुरुआती कमजोरियों को अगर समय रहते दूर नहीं किया जाये तो इसका खामियाजा लंबे समय तक भुगतना पड़ता है.
राज्य के निर्माण के 14 वर्ष हो गये. इसका मतलब यह हुआ कि स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली एक पूरी पीढ़ी का आज झारखंड से लगातार पलायन हो रहा है. काम करने के लिए किसी प्रदेश में जाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि वे किस काम के लिए जाते हैं. वे बुनियादी क्षेत्र में काम करने के लिए जाते हैं, अकुशल मजदूर के रूप में जाते हैं. इसका प्रभाव कई स्तरों पर पड़ता है.
अगर बुनियादी शिक्षा सही तरीके से हो तो आगे चलकर व्यक्ति कुशल श्रमिक के रूप में काम करता है. झारखंड में लोग परंपरागत रूप से भी अलग-अलग विद्याओं में कुशल रहे हैं. लोग परंपरा से भी स्किल सीखते हैं, लेकिन समय के साथ उनकी आकांक्षा बढ़ती है, जरूरतें बढ़ती हैं, उस जरूरत के मुताबिक जो कौशल है, उसका विकास तभी हो पायेगा जब वे बुनियादी शिक्षा बेहतर तरीके से ग्रहण करें और आगे अपनी जरूरत के मुताबिक कौशल अपनाएं. राज्य के युवाओं का कौशल विकास कैसे रणनीतिक स्तर पर हो, इसकी तैयारी कम ही दिखती है. मैन्यूफैक्चरिंग या फिर माइनिंग के क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों के द्बारा सीमित स्तर पर कुछ प्रयास हुए हैं. उन्होंने कुछ आधुनिक सुविधाएं देने की कोशिश की है, कुछ स्कूल भी अडॉप्ट कर उनको सुधारने का प्रयास किया है, लेकिन राज्य सरकार के स्तर पर व्यापक प्रयास किये जाने की दरकार है.
राजनीतिक स्थिरता से कई समस्याओं का समाधान होता है. इसके उदाहरण भी हैं. बिहार में पिछले 7-8 साल में राजनीतिक नेतृत्व कमोबेश एक जैसा रहा है. इसकी वजह से किसी भी कार्यक्रम के निर्माण से लेकर उसके कार्यान्यवयन तक में सहूलियत रही है. इस तरह का नेतृत्व झारखंड में नहीं दिखता. बिहार में पंचायतों में आरक्षण, स्कूली बच्चों को साइकिल वितरण, साक्षरता के लिए जम कर काम करने की प्रवृत्ति आदि से निराशा का माहौल बदला. यदि झारखंड में भी राजनीतिक नेतृत्व स्थायी होता, तो इस तरह की पहल हो सकती थी.
(आलेख बातचीत पर आधारित)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें
Home होम Videos वीडियो
News Snaps NewsSnap
News Reels News Reels Your City आप का शहर