जो 14 साल में नहीं हुआ, एक साल में हुआ!
इशान करण आजकल लोकल चैनलों पर सरकार के प्रायोजित विज्ञापनों की बाढ़ सी आयी हुई है. सीएम तो सीएम, हर मंत्री कुछ न कुछ कह रहा है. भले आप उस दौरान टीवी छोड़ दूसरे जरूरी काम निबटाने लगते हों, लेकिन वे कह क्या रहे हैं, इस पर ध्यान देने की जरूरत है. अब वक्त आ […]
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इशान करण
आजकल लोकल चैनलों पर सरकार के प्रायोजित विज्ञापनों की बाढ़ सी आयी हुई है. सीएम तो सीएम, हर मंत्री कुछ न कुछ कह रहा है. भले आप उस दौरान टीवी छोड़ दूसरे जरूरी काम निबटाने लगते हों, लेकिन वे कह क्या रहे हैं, इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
अब वक्त आ गया है कि इन दावों का मूल्यांकन किया जाये. मुस्कुरा कर, दप्प-दप्प करते चेहरे और तसर सिल्क के कुरते में सजे-धजे सीएम जब कहते हैं कि लोगों ने जो कहा हमने कर दिखाया, जो 14 साल में नहीं हुआ वह हमने एक साल में कर दिया, तो मन बाग-बाग हो जाता है.
जो आज तक की सरकारें नहीं कर सकीं, सिर्फ वादा करती रही, वो इस सरकार ने कर दिखाया है.
बिंदुवार चलें इस विकास यात्र पर : ..
आज तक की सारी सरकारें (मरांडी से कोड़ा तक) एकल विंडो (सिंगल विंडो सिस्टम) स्थापित करने का वादा करती रहीं, लेकिन नहीं कर सकी. इस सरकार ने उसे न केवल स्थापित किया, बल्कि दृढ़तापूर्वक लागू भी किया. उस सिंगल विंडो सिस्टम का नाम है- आरएच सिस्टम. जी हां, रकीबुल हसन सिस्टम. और यह सिस्टम कितना उपयोगी और सफल रहा, इसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है.
अब आपको अपने बिल्डिंग का नक्शा पास करना है, तो पहले आप क्या करते थे? नक्शा बनवा कर टाउन प्लानर से मिलते थे. वो आपको एफएआर और सेटबैक टाइप का टर्म समझा कर कन्फूज करता था और फिर तीन- चार महीने दौड़ा कर रेट बताता था 60-65 रुपये प्रति वर्ग फीट. कॉमर्शियल है तो 100-150 रुपये प्रति वर्गफीट. वह आपको अपने लिए पांच रुपये स्कवॉयर फीट रखने की बात कह कर दिल्ली तक भेजे जानेवाली राशि का ब्रेकअप बताता था. आप मोल-मोलाई करते- करते थक जाते थे. आरएच सिस्टम लागू होते ही सबकुछ मक्खन जैसा स्मूद (आसान) हो गया. आप नक्शा लेकर ‘बेलायर’ पहुंचे, बेल दबाया. ड्राइंग रूम में बैठे, चाय- नाश्ता किया. रकीबुल ने एक फोन लगाया- आपने पेमेंट किया- कल आपके नक्शे पर ‘पास्ड’ (स्वीकृत) का ठप्पा लग गया. अब आप सहजानंद चौक पर चार कट्ठे पर सात तल्ले की बिल्डिंग बना लें या 10 फीट चौड़ी गली में जहां एक मारुति 800 भी नहीं जा पाये, वहां मैरेज हॉल बना लें- ये सब इसी सिंगल विंडो की मेहरबानी से हुआ. लोगों का काम हुआ, रोजगार बढ़ा. यह तो सचमुच चमत्कार है, जो इसी सरकार की देन है. टाउन प्लानर ने इसे मूर्त्तरूप दिया.
अब टेंडर मैनेज करना कितना मुश्किल काम है. कार्यपालक अभियंता से विभागीय सचिव तक सबको खुश करना, रेट भी कम डालना, फिर एग्रीमेंट के पहले टेंडर समिति के सारे सदस्यों को खुश करना. एक टेंडर फाइनल कराने में तेल निकल जाता था. यह सिस्टम लागू हुआ कि पांच करोड़ की योजनाओं का टेंडर दो महीने में फाइनल. विभाग के एक सर्वशक्तिमान उपसचिव को पकड़ा और जिसे देना है, उसी का टेंडर फाइनल होगा, यह सुनिश्चित. बस एक ही काम करना है, ‘बेलायर’ जाकर रकीबुल से मिलना है, रेट बताना है, 10 प्रतिशत जमा करना है. कल आपको स्वीकृति पत्र मिल जाना है. इतना फास्ट सिस्टम आपने कहीं देखा है. इसके लिए यह सरकार सचमुच बधाई का पात्र है.
वैसे बहुत से लोगों को पता नहीं कि यह ‘बेलायर’ है कहां? जी, यह ‘बेलायर’ रांची का सबसे पहला सुव्यवस्थित रेसिडेंसियल कांप्लेक्स है, जो चर्च कांप्लेक्स के ठीक सामने स्थित जेडी मॉल के पीछे महावीर टावर के बगल में है.
यहां बड़े पदाधिकारी, मोटर कार एजेंसी के मालिक, आभूषण विक्रेता के बड़े-बड़े फ्लैट हैं. इसी में हमारा सिंगल विंडो भी काम करता था. इसी में रहनेवाले एक बड़े पदाधिकारी, जिनके श्वसुर वन विभाग के बड़े पदाधिकारी थे, ने रकीबुल के कहने पर जेडी मॉल के निकट का डिवाइडर तुड़वा दिया था, ताकि लोगों को रकीबुल तक पहुंचने में घूम कर न जाना पड़े और वन विभाग का टेंडर भी यहां से मैनेज हुआ था. समाज कल्याण, सर्व शिक्षा अभियान के सारे टेंडर यहीं से मैनेज हुए थे. सोचिए , अगर यह सिंगल विंडो नहीं होता, तो झारखंड कितना पीछे रह जाता? योजनाएं लटक जाती, नक्शे नहीं पास होते, आवंटित राशि लैप्स कर जाती.
तो इस दावे में तो भई पूरी सच्चई है कि जो 14 साल में नहीं हुआ, वो एक साल में कर दिया. ऐसे सिंगल विंडो सिस्टम की आवश्यकता पूरे देश में है. झारखंड आदर्श बन सकता है.
वंशवाद और जातिवाद की जड़ें मजबूत करना
वंशवाद की बेल को बरगद का रूप देने का काम यहां हुआ. ना मरांडी इसे कर पाये, न मुंडा. झारखंड के मुख्यमंत्री जी के पूज्य पिताजी सांसद हैं, भाभी विधायक हैं. यही नहीं इस सरकार के मंत्रियों को भी यह परंपरा निभाने की पूरी आजादी रही. एक माननीय का सारा सरकारी कार्य जैसे टेंडर, फ्रेंचाइजी, परचेज, ट्रांसफर उनके पुत्र अपने अशोक नगर स्थित आवास से करते हैं. यहां बताते चलें कि झारखंड के सरकारी हलकों में अशोक नगर का भी वही रुतबा है, जो ‘बेलायर’ का है.
जातिवाद की अक्षुण्ण परंपरा को कायम रखने के लिए भी इस सरकार का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा. अभी तक जातिवाद के नाम पर मंत्री अपने पीए से लेकर बॉडीगार्ड तक ही अपनी जाति का रखता था या ज्यादा से ज्यादा सचिव या डीसी. लेकिन झारखंड में एक महिला मंत्री के जिले को जातिवाद की प्रयोगशाला बना दिया गया. वहां एसपी वही महिला पदाधिकारी हैं, जो कभी राबड़ी देवी की पीएसओ हुआ करती थीं और साथ में बरही की एसडीपीओ भी. क्या ऐसा संभव है? जी हां, ऐसा हुआ था. वो पटना और बरही दोनों जगह पदस्थापित थीं और फिर हजारीबाग में एएसपी, फिर कोडरमा की एसपी. इनकी काबिलियत सिर्फ माननीय की स्वजाति का होना है. संजीवनी के मालिक को जीते-जी मृत्यु प्रमाण पत्र देनेवाले पदाधिकारी वहां एएसपी हैं. पूरा जिला एक जाति के लिए आरक्षित. 50 साल में जो झारखंड में नहीं हुआ, वह एक साल में हुआ. 14 साल की कौन कहे?
स्थानांतरण- पदस्थापन को पारदर्शी व डिजिटल बनाना
पूर्व की सरकारें ट्रांसफर- पोस्टिंग को उद्योग की तरह चलाती थीं. बीच में एक सरकार ने तो इसे कुटीर उद्योग का दरजा दे दिया. लेकिन इस सरकार ने इसे पारदर्शी बना दिया और डिजिटाइज्ड कर दिया. अब ट्रांसफर- पोस्टिंग की तीन श्रेणियां हो गयीं- प्रीपेड, पोस्ट पेड और ओपन बीड.
प्रीपेड में पोस्टिंग के पहले एक निर्धारित राशि जमा करनी होती है, फिर प्रोसेसिंग होती है. पोस्टपेड में टोकन मनी अभी देना है, बाकी पोस्टिंग के बाद. ओपेन बिड में खुली प्रतिस्पर्धात्मक बोली में उच्चतम बोलीवाले को प्राथमिकता दी जाती है.
नो पैरवी, नो कास्ट, नो काबिलियत. अब आप सोचिए, इतनी पारदर्शी व्यवस्था कहीं है? एक बात और, पदाधिकारी को कोई अपने पल्ले से पैसा नहीं देना है. एसपी की प्रीपेड/पोस्टपेड भुगतान की जिम्मेवारी कोयला/लोहा कंपनी या थानेदारों की होती है. डीसी के लिए बड़े ठेकेदार, शराब माफिया, भू-मफिया को ये जिम्मेवारी उठानी होती है.
ओपन बीड केटेगरी में बोधराज के जिले शामिल हैं. (बोधराज मानें- बोकारो, धनबाद, रांची, जमशेदपुर). वैसे इनमें हरा भी जुट गया है- हजारीबाग, रामगढ़. छह महीनों पर रिचार्ज की व्यवस्था है. अगर रिचार्ज नहीं हुआ, तो मीडिया में ऐसी खबरें आने लगती हैं- धनबाद, रामगढ़ के डीसी- एसपी के ट्रांसफर की फाइल आगे बढ़ी. फाइल तो आगे नहीं बढ़ती, वह पदाधिकारी जरूर आगे बढ़ कर सही जगह पहुंच जाता है.
नौकरशाही पर अंकुश
पहले आरोप लगता था कि सरकार पर नौकरशाही हावी है, मंत्रियों की नहीं चलती है, वगैरह-वगैरह. नौकरशाह मतलब आइएएस. इस सरकार ने इस भ्रम को तोड़ दिया. इस सरकार ने छुटभैये नौकरशाहों और जापानी आइएएस को माथे पर बिठा लिया. एक उप सचिव को पूरे राज्य की जिम्मेवारी दे दी. यह उप सचिव ऐरा-गैरा नहीं है. काबिल तो इतना है कि पूर्व के उप मुख्यमंत्री का जब पीए थे, तो आइजी रैंक के पदाधिकारी इनसे स्लिप देकर मिलते थे. उनकी ख्याति तब और फैली, जब घोटालों में पूर्व सीएम जेल चले गये, लेकिन उनके मंत्री पर आंच तक नहीं आयी. जब मामला गरम हुआ, तब ये दो साल के लिए यूनिसेफ में चले गये. लौटे तो साफ-सफाई विभाग में रहे. नेपथ्य से सरकार चलाया. राष्ट्रपति शासन में तड़ीपार हुए, लेकिन अब तो पूरा राज्य इनके रहमोकरम पर है. जिस डीसी के मातहत इन्होंने प्रशासन का ककहरा सीखा, उन्हें सीएम हाउस से बाहर करवा कर एक यस मैन को वहां बैठाया. और मुख्य सचिव की तो जो दुर्गति हुई, वह बताने लायक भी नहीं है.
इस सरकार ने राज्य प्रशासनिक सेवा में 150 पद संयुक्त सचिव के सृजित कर दिये. जहां बीडीओ/सीओ के लिए पदाधिकारी नहीं हैं, वहीं हर विभाग में पांच संयुक्त सचिव बिठा दिये. अब आपदा प्रबंधन, जो एक सेक्शन का विभाग है, उसे भी पांच संयुक्त सचिव दे दिये. माने चार सहायक और पांच संयुक्त सचिव. वाह! वाह! ऐसा 14 क्या, 140 साल में भी नहीं हुआ था? तो इस लिहाज से सचमुच वर्तमान सरकार ने जो एक साल में किया, वह 14 साल में नहीं हुआ था और आगे 14 साल में भी नहीं होगा.