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..चलो एक हो लिया जाय

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खुटहरा मुस्कुराया. यह बिहार की हवा है भाई. अब हमें आगे निकलने दो. और वह चलता बना. अब यह नीलाका जेरे बहस हो गया. चिखुरी की मूछों पर हंसी तैर गयी- नी माने नीतीश, ला माने लालू, का माने कांग्रेस. उ से सबसे पहले काबरा कुकुर ने रोका. उसे देखते ही लपका. लगा अब पोंगा […]

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खुटहरा मुस्कुराया. यह बिहार की हवा है भाई. अब हमें आगे निकलने दो. और वह चलता बना. अब यह नीलाका जेरे बहस हो गया. चिखुरी की मूछों पर हंसी तैर गयी- नी माने नीतीश, ला माने लालू, का माने कांग्रेस.

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उ से सबसे पहले काबरा कुकुर ने रोका. उसे देखते ही लपका. लगा अब पोंगा काट के भागेगा. जैसा कि अमूमन वह करता है. लेकिन लाल साहेब पहले ही उसकी नियति को भांप गये और तुरतै ऐसा लहा के मारे कि काबरा चीख के भागा. और दूर तक पों पों करता रहा. अब लाल साहेब के काटने की बारी थी. लाल साहेब ने उसे पुचकार कर अपने पास बुलाया- का करते हो भाई? तुम्हारी टोपी तो इतनी रंगीन अहै कि कई पार्टी एकै साथ येह्मा समा जाय. और ये इत्ती छोटी काहे है? कुत्ते से बचा वह प्राणी दो बार लंबी सांस लिया और मुतमईन हुआ कि अब वह कबरा इधर नहीं आयेगा, जो ररा नाऊ की दुकान के सामने खड़ा उसे घूरे जा रहा है – साहेब हम तो रमता जोगी हैं. हमें लोग खुटहरा कहते हैं.

लाल साहेब की आंख गोल हो गयी- खुटहरा? यह कौन सी जाति हुई भाई? कंधे पर लटकी उसकी ‘गृहस्थी’ लाल साहेब की दुकान पर पसरे बेंच पर टिक गयी- साहेब ! हम तो आये हैं बहुत दूर से. एक चाय पीला दीजिए बस.. बहुत थके हैं. लाल साहेब को और क्या चाहिए. अलस्सुबह बोहनी हो जाय सो भी बगैर किसी बात-बतकही के, तो पूछना ही क्या. वह मन ही मन बुदबुदाये- ये ससुरे लोकलवाले बवाल करते हैं. इस महंगाई के जमाने में तीन रु पया निकालते कलेजा फटने लगता है, लेकिन परदेसी बेचारा क्या मोल-भाव करेगा- बैठो भाई.. पेसल चलेगी कि चालू? -कोई भी दे दो भाई! इत्मीनान से बैठो, पेसल बनाता हूं. कहते हुए लाल साहेब ने चाय चढ़ा दिया. हां तो बताया नहीं कि यह खुटहरा क्या होता है.. और आये कहां से? हम आ तो रहे हैं सोनागाछी से. लाल साहेब की आंख गोल हो गयी- सोनागाछी? कोलकाता से? -हा सेठ ! -तो करते क्या हो? -कान का खूट निकालता हूं. किसी भी तरह का बहरापन हो, तुरत ठीक हो जाता है.

लाल साहेब को समझ आ गया कि खुटहरा क्या होता है. चाय बनती रही. वह खुटहरा और सोनागाछी के बारे में जानकारी बटोरते रहे. एक एक करके लोग आना शुरू हो गये. भिखयी मास्टर. उमर दरजी. कयूम मियां. नवल उपधिया. लखन कहार. कीन पंडित और सबसे आखीर में आये मद्दू पत्रकार और उनकी मोटरसाइकिल पर लदे चिखुरी सुराजी. और सबकी नजर उसी खुटहरे पर. नवल ने साइकिल को ब्रेक मारा और आंख के इशारे से पूछा- आपका परिचय? लाल साहेब- ये हैं भाई खुटहरा. तशरीफ ला रहे हैं सोनागाछी से. कान का मैल निकालते हैं. कोई कितना भी असाध्य बहरा हो उसे सचेत सुनवैया बनाते हैं. पेसल चाय पीते हैं . उसे बना रहा हूं. आप लोगों में कौन है जो पेसल पियेगा, बताइए. बाद बाकी तो चालू है ही. इस बड़ी समस्या का हल चिखुरी ने कर दिया- आज सबको पेसल हमारी तरफ से. भगोने में पानी बढ़ा. दूध बढ़ा. अदरक गाढ़ी हुई और बात चल निकली खुटहरे पर. शुरुआत की नवल उपधिया ने- सुना है कान सब को होता है? तो भइये , इधर कैसे आ निकले? इस सवाल पर वह सूफियाना हो गया- राम्ता जोगी.. बोहता पानी हमने सुना, एई खाने चुनाब..

कीन ने बीच में ही टोका- हिंदी.. हिंदी.. बोलो भाई.

लाल साहेब ने घुड़का- कीन सोच-समझ के बोला कर.. ये भी अपने ही देश की भाषा है.. हां भाई हियां चुनाव होनेवाला है, लेकिन तुम का करने आये हो?

हमने सुना है हियां के लोगों का कान गड़बड़ा गया है. पिछले चुनाव में बहुत कुछ उसमें चला गया है. धूल, कचड़ा, राजनीति, झूठ-फरेब..

नवल ने ठहाका लगाया- हां भाई, बात तो वाजिब कही, इतना कुछ भर गया है कि सोते समय भी कान मो मो करता रहता है.

– इधर करिये. दाहिना दिखाइए.

– बहुत कचड़ा भरा है. इसे निकालने के लिए तीन रुपये अलग से लगेगा. – गारंटी का है?

-इस मुल्क में गारंटी किसी चीज की नहीं है. एक बात की गारंटी रहेगी कि कान यहीं रहेगा जहां है, ससुरा सुने या न सुने. कह कर उसने कान पकड़ लिया. कान में कुछ डाला. घुमाया. उसे बाहर खींच लिया. कुछ दुरुस्त हुआ सेठ? लाल साहेब बोले- यह तो नीलाका नीलाका बोलने लगा. खुटहरा अपनी सामग्री के साथ उठ खड़ा हुआ- अब चले भाई. लाल साहेब ने उसकी गठरी पकड़ ली. कान यह क्या बोल रहा है, यह तो बताते जाओ. खुटहरा मुस्कुराया. यह बिहार की हवा है भाई. अब हमें आगे निकलने दो. और वह चलता बना. अब यह नीलाका जेरे बहस हो गया. चिखुरी की मूछों पर हंसी तैर गयी- नी माने नीतीश, ला माने लालू, का माने कांग्रेस. कीन ने जुमला ठोंका- कल तक तो सब अलग रहे?

-अलग? समाजवाद की उपज है भइये. जब ये सत्ता के बाहर जाते हैं तो एकजुट हो जाते हैं. और जब सत्ता में रहते हैं तो कुकुर माफिक लड़ते हैं. नवल आल्हा गाने लगे- बडा बखेड़ा बा, गावै मान का नाय..

चंचल

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