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इस तरह दुराग्रहों से नहीं चलता लोकतंत्र

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने नागपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मेट्रो रेल की आधारशिला रखने के कार्यक्रम में भाग नहीं लेने का निर्णय किया. यह कड़ा फैसला हरियाणा में मोदी की उपस्थिति में भीड़ द्वारा शोर-गुल कर वहां के मुख्यमंत्री के भाषण में व्यवधान पैदा करने के विरोध में लिया गया. गुरुवार को झारखंड में […]

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने नागपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मेट्रो रेल की आधारशिला रखने के कार्यक्रम में भाग नहीं लेने का निर्णय किया. यह कड़ा फैसला हरियाणा में मोदी की उपस्थिति में भीड़ द्वारा शोर-गुल कर वहां के मुख्यमंत्री के भाषण में व्यवधान पैदा करने के विरोध में लिया गया. गुरुवार को झारखंड में भी एक कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री के साथ भीड़ ने लगभग वैसा ही सलूक किया. कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा कुछ राज्यों में आसन्न चुनावों से पहले प्रधानमंत्री के सरकारी दौरों का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रही है.

वहीं, भाजपा का कहना है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री अपनी लोकप्रियता खो चुके हैं और अब वे प्रधानमंत्री के बहिष्कार का बहाना खोज रहे हैं. देश की राजनीति के इस दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय पर यूरोप के महान दार्शनिक मेकियावेली की उक्ति याद आती है, ‘राजनीति का कोई संबंध नैतिकता से नहीं है.’ कांग्रेस भूल रही है कि उसकी पार्टी से संबद्ध प्रधानमंत्री भी सरकारी कार्यक्रमों का निर्धारण राजनीतिक नफा-नुकसान के चश्मे से करते रहे हैं. प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों का मुख्यमंत्री द्वारा बहिष्कार देश व जनहित में नहीं है.

प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री दोनों ही जनप्रतिनिधि हैं तथा दोनों का काम देशहित को आगे बढ़ाना है. जाहिर है, मौजूदा टकराव से देश के विकास और लोकतांत्रिक राजनीति को नुकसान पहुंचेगा. लोकतंत्र में नाराजगी जाहिर करने के कई स्वस्थ तरीके हैं. इसलिए कांग्रेस को प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों के बहिष्कार का निर्णय वापस ले लेना चाहिए.

साथ ही, प्रधानमंत्री को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी पार्टी सरकारी कार्यक्रमों को दलीय कार्यक्रम बनाने से परहेज करे. उन्हें अपने कार्यकर्ताओं को विरोधी दलों के नेताओं के प्रति सम्मान दिखाने का आह्वान करना चाहिए. वे यदि इस मसले पर गंभीरता दिखाएं, तो जनता में एक अच्छा संदेश जायेगा. अशोभनीय हरकतों से जो गलत परंपरा स्थापित होगी, वह भविष्य में किसी भी पार्टी के लिए मुसीबत का कारण बन सकती है. श्रीकांत वर्मा ने एक कविता में कहा था, ‘कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता/ कोसल में विचारों की कमी है.’ यह प्रश्न दोनों पार्टियों से है कि क्या अब भारतीय लोकतंत्र विचार-विमर्श की बजाय राजनीतिक दुराग्रहों से संचालित होगा!

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