24.1 C
Ranchi
Thursday, February 13, 2025 | 07:33 pm
24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

जल-संवाद की जरूरत

Advertisement

मनींद्र नाथ ठाकुर एसोसिएट प्रोफेसर, जेएनयू manindrat@gmail.com आज दुनियाभर में जब पानी की कमी हो रही है, बिहार में पानी की बहुतायत का संकट है. हर साल की तरह एक बार फिर बिहार का लगभग आधा हिस्सा बाढ़ की चपेट में है. जान-माल की भारी क्षति सीधे तौर पर जितनी होती है, उससे कहीं ज्यादा […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

मनींद्र नाथ ठाकुर
एसोसिएट प्रोफेसर, जेएनयू
manindrat@gmail.com
आज दुनियाभर में जब पानी की कमी हो रही है, बिहार में पानी की बहुतायत का संकट है. हर साल की तरह एक बार फिर बिहार का लगभग आधा हिस्सा बाढ़ की चपेट में है. जान-माल की भारी क्षति सीधे तौर पर जितनी होती है, उससे कहीं ज्यादा इसका दूरगामी परिणाम होता है.
किसानों की हालत खराब हो जाती है. सड़कें टूट जाती हैं. महीनों तक रास्तों के बंद हो जाने से व्यापार चौपट हो जाता है. हाल के वर्षों में इन इलाकों में मक्के की जबरदस्त खेती शुरू हुई है. सड़क के किनारे बड़े-बड़े गोदाम बने हुए हैं. पिछले साल बाढ़ के कारण किसानों व व्यापारियों को अरबों का घाटा हुआ. खेती की पूंजी तक वापस नहीं आ पायी.
वैसे तो पूरे भारत में पानी को लेकर नीति बनाने की जरूरत है. कहीं बाढ़ और कहीं सुखाड़ की स्थिति को देखकर कोई भी कह सकता है कि हमारी जल-नीति सही नहीं है.
झारखंड में चक्रीय विकास योजना जैसे कुछ प्रयोग तो हुए हैं, जिसमें पानी की कमी से निजात पाने की तरकीब खोजने का प्रयास सफल रहा है. इस प्रयोग की शुरुआत करनेवाले पीआर मिश्रा जी मृदा वैज्ञानिक थे और चंडीगढ़ के सूखोमाझी प्रयोग के कारण बहुत प्रसिद्ध हुए थे, जिसने सुखना झील को बचा लिया था.
हालांकि, बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र को लेकर उनका कोई खास ज्ञान नहीं था, लेकिन सुखोमाझी प्रयोग से एक सीख की चर्चा अक्सर किया करते थे.
उनका मानना था कि इस प्रयोग के सफल होने के पीछे सबसे बड़ा कारण था वह संवाद जो ग्रामीणों और विशेषज्ञों के बीच हो पाया था. गांव के एक बूढ़े व्यक्ति ने उनके जैसे मृदा वैज्ञानिक को यह ज्ञान दिया कि वृक्षारोपण कैसे किया जाना चाहिए. यही बात आइआइटी के पूर्ववर्ती छात्र दिनेश मिश्र जी का भी कहना है, जिनकी प्रसिद्धि पानी पर काम करने लिए है.
उनका मानना है कि ग्रामीणों के पारंपरिक ज्ञान से उन्होंने भी बहुत कुछ सीखा है. मसलन ग्रामीणों को हर नदी के चरित्र के बारे में पता है. एक लंबी परंपरा रही है इन नदियों के चरित्र को कहानियों में पिरोकर संकलित करने की. यदि विशेषज्ञ उन कहानियों को केवल कथा नहीं समझकर उन्हें डिकोड कर सकें, तो शायद बहुत कुछ निकल सकता है.
भारत के जलपुरुष राजेंद्र सिंह के प्रयोग को यदि देखें, तो यह बात और स्पष्ट हो जायेगी. उन्होंने मुझे बताया कि एक वृद्ध सज्जन ने उन्हें नदियों को पुनर्जीवित करने का गुरु मंत्र दिया था.
इसी तकनीक से उन्होंने अरवारी, रूपरेल, सरसा, भगिनी और जहाजवाली जैसी पांच नदियों को पुनर्जीवित किया. उजड़ते हुए लगभग हजार गांवों को पुनः बसाया. राजस्थान में पारंपरिक जोहड़ प्रथा को पुनर्जीवित किया. उनका भी मानना है बाढ़ की समस्या के समाधान के लिए विशेषज्ञों और ग्रामीणों के बीच संवाद जरूरी है. कुछ ऐसा ही प्रयोग औरंगाबाद के संजय सज्जन जी ने किया है और एक पूरी नदी को पुनर्जीवित कर लिया है.
इस बात में कोई शक नहीं है कि बिहार सरकार को बाढ़ से बचाव के लिए अपने दृष्टिकोण में भारी परिवर्तन लाना होगा. सरकार की वर्तमान नीतियों का आधार एक पुराना दृष्टिकोण है, जिसमें बाढ़ से निजात का उपाय बांध बनाना है. अब तक यह साबित हो चुका है कि बिहार की समस्या की जड़ में यही दृष्टिकोण है. उदाहरण के लिए महानंदा पर बने तटबंध को ही लें. पिछले कई वर्षों से इसके खिलाफ आंदोलन चल रहा है. लेकिन, सरकार इसे बनाने पर आमदा रहती है.
इसकी चपेट में पड़े ग्रामीणों से कोई संवाद नहीं है. किसी को पता नहीं है कि इसका क्या फायदा है. इस आंदोलन से अलबत्ता इतना जरूर हुआ है कि सरकार एक और तटबंध बनाने पर विचार कर रही है, जिसका परिणाम और भी घातक हो सकता है. आम लोगों को यह विश्वास है कि इन तटबंधों के पीछे सत्ता की नियत केवल धन अर्जन करने की है. यह एक तरह से सरकारी धन का बंदर बांट है.
राजेंद्र सिंह और दिनेश मिश्र की बात से ज्यादातर आम लोग सहमत हैं कि बाढ़ की समस्या का निदान तटबंध नहीं होकर नदियों और तालाबों को पुनर्जीवित करना है. सैकड़ों नदियां मर रही हैं. तालाबों की हालत खराब है. भू-माफिया सरकारी तालाबों पर कब्जा करने पर लगे हैं. सीमांचल में एक पूरा गांव है, जिसका नाम ही पोखरिया हुआ करता है, क्योंकि उसमें अनेक पोखर हुआ करते थे. अब सब मर चुके हैं.
मैंने पिछली केंद्रीय सरकार के पर्यावरण मंत्री से जिक्र किया था कि सीमांचल की बाढ़ की समस्या से निजात पाने के लिए नदियों को पुनर्जीवित करना जरूरी होगा. उनका कहना था कि सरकार के पास इतने पैसे नहीं हैं. सही है. पर बांध के लिए पैसे कहां से आ जाते हैं, पता नहीं. उससे आधे धन में नदियों को जीवित किया जा सकता है.
बिहार को इस संकट से निकालने के लिए जल-संवाद शुरू करने की जरूरत है, जिसमें सरकार, विशेषज्ञ और आम जनता के दृष्टिकोणों पर साफ तौर पर बहस हो सके. इन बहसों से ही शायद नदियों और तालाबों को बचाने की मुहिम भी शुरू हो पायेगी. बांध बनाने की मानसिकता से हमें मुक्ति मिल पायेगी. आखिर बांधों के बनाने के पहले पानी का प्रबंधन क्या था?
यह जानना जरूरी है. मिथिलांचल और सीमांचल की संस्कृति जल-संस्कृति है. उनका जीवन जल के आस-पास सजा-धजा है. बाढ़ कभी उनकी समस्या नहीं थी. पानी और नदियों के बारे में आधुनिक चिंतन से शायद उनकी सोच बेहतर थी. इसलिए इस संवाद का महत्व केवल उनके लिए नहीं होगा, बल्कि देश और दुनिया के दूसरे हिस्से के लिए भी होगा.
बाढ़ से निजात पाने के लिए जल संचयन की आज सख्त जरूरत है. यदि तालाबों और नदियों में सालों भर पानी सुरक्षित रहे, तो भूमिगत जलस्तर भी ठीक रहेगा और सिंचाई के लिए उसे निकालने की जरूरत भी नहीं होगी.
तालाबों और नदियों से पानी लेकर फसल को सींचने में ईंधन और श्रम की भी बचत होगी. इसके अलावा भोजन के लिए उत्तम किस्म की मछलियां भी उपलब्ध होंगी. यह भी एक विडंबना है कि पानी से भरपूर बिहार के इस इलाके में बड़े पैमाने पर मछली का आयात आंध्र प्रदेश से होता है.
यदि जल-प्रबंधन ठीक से हो जाये, तो बिहार के इस हिस्से की गरीबी दूर हो सकती है. हमें यह समझना होगा कि विकास का जो मॉडल पंजाब के लिए सही है, वही बिहार के लिए भी सही होगा, यह जरूरी नहीं. हमें अपने मॉडल के विकास के लिए इस जल-संवाद को आगे बढ़ाने की जरूरत है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें