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परिवारवाद की राजनीति को जनता ने नकारा

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मोहन गुरुस्वामी mohanguru@gmail.com न रेंद्र मोदी और शाह की यह निश्चित ही बहुत बड़ी रणनीतिक जीत हुई है. पिछली लोकसभा के लिए जब नरेंद्र मोदी चुनावी मैदान में थे, तो कांग्रेस के खिलाफ लड़ने के लिए उनके पास ढेरों मुद्दे थे. अन्य विपक्षी पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस के खिलाफ मोदी ज्यादा प्रभावी और सक्रिय रहे, […]

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मोहन गुरुस्वामी

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mohanguru@gmail.com

न रेंद्र मोदी और शाह की यह निश्चित ही बहुत बड़ी रणनीतिक जीत हुई है. पिछली लोकसभा के लिए जब नरेंद्र मोदी चुनावी मैदान में थे, तो कांग्रेस के खिलाफ लड़ने के लिए उनके पास ढेरों मुद्दे थे. अन्य विपक्षी पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस के खिलाफ मोदी ज्यादा प्रभावी और सक्रिय रहे, जिसका परिणाम हुआ कि कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए गठबंधन को सत्ता से बेदखल होना पड़ा. इस बार भी मोदी ने अपने हिसाब से मुद्दे सेट किये.

आर्थिक मामलों और हालातों पर पूरे चुनाव में कोई चर्चा नहीं हुई. वे सीधे तौर पर इन मुद्दों से बचते रहते हैं. विपक्ष के पास विमुद्रीकरण, रोजगार और आर्थिक हालातों से जुड़े मुद्दे थे, लेकिन चुनाव के दौरान कहीं कोई चर्चा नहीं हुई. विपक्ष पूरे चुनाव के दौरान मोदी को घेरने में पूर्ण रूप से असफल रहा. विपक्ष ने जीतने के लिए जाति की राजनीति की, जिससे जनता के ठुकरा दिया है. ऐसे में भाजपा की धर्म की राजनीति भारी पड़ी.

दक्षिण भारत में देखें, तो कर्नाटक में भाजपा का प्रदर्शन बहुत शानदार रहा. देवगौड़ा का पूरा परिवार इस बार चुनाव मैदान में था. पूरी पार्टी को परिवार के भरोसे चलाना कहां तक उचित है. पार्टी खुद ही अंदरूनी विवादों से जूझ रही है. एमएलए एक-दूसरे के साथ खून-खराबा कर रहे हैं.

जब पार्टी बिना उद्देश्य और तैयारी के मैदान में उतरेगी, तो यही हश्र होगा. केरल में सबरीमाला मामले को तूल देने की भरपूर कोशिश हुई, लेकिन इसका कोई असर केरल की राजनीति में नहीं हुआ. कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन फेल होने का सबसे बड़ा कारण परिवारवाद की राजनीति है. देवगौड़ा का पूरा परिवार पार्टी पर काबिज हो चुका है. देवगौड़ा के बेटे, पोते सबके सब मैदान में थे, सात सीटों में से पांच पर एक ही परिवार के लोग मैदान में उतरे. राजनीति को जागीरदारी की तरह लेकर चुनाव तो नहीं लड़ा जा सकता है. राजनीति का तौर-तरीका बदल रहा है. पुरानी और एक ही ढर्रे पर चलनेवाली राजनीति से लोग थक चुके हैं.

आंध्र प्रदेश की राजनीति में भी बड़ा परिवर्तन हुआ है, जनादेश इस बार वाईएसआर के पक्ष में गया है. तेलंगाना में केसीआर को झटका लगा है. परिवारवाद के पैरोकारों को सभी राज्यों में इस बार तगड़ा झटका लगा है. जनता ने अब फैसला कर लिया है कि परिवारवाद और जातिवाद की राजनीति को ज्यादा बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. राजद हो, कांग्रेस हो या जेडीएस, अकाली हो या कोई अन्य क्षेत्रीय दल परिवारवाद की राजनीति को झटका लगा है.

नये भारत की राजनीति में परिवार व जाति आधारित राजनीति और घपले- घोटालों को जनता बर्दाश्त नहीं कर सकती है. भाजपा ने राष्ट्रवाद को चुनाव में मुद्दा बनाया है. हालांकि, भाजपा का राष्ट्रवाद बिल्कुल अलग प्रकार का है. राष्ट्रवाद की अलग-अलग परिभाषा हो सकती हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में क्षेत्रीय दल किसी एक खास परिवार पर निर्भर हो चुके हैं, उनकी राजनीति और रणनीति भी इन्हीं परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती है, जबकि राजनीति हमेशा ऐसी संकीर्णताओं से ऊपर उठकर होनी चाहिए.

(बातचीत ः ब्रह्मानंद मिश्र)

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