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रेल की बेहतरी

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हजारों किलोमीटर लंबी पटरियों पर दौड़ती भारतीय रेल हमारी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है. माल ढुलाई और यात्रियों के आवागमन का प्राथमिक साधन होने के साथ रोजगार उपलब्ध करानेवाली सबसे बड़ी संस्था रेल ही है. सत्ता में आते ही पीएम नरेंद्र मोदी ने इसके कायाकल्प का भरोसा दिलाया था. हालांकि ऐसे वादे पहले भी किये […]

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हजारों किलोमीटर लंबी पटरियों पर दौड़ती भारतीय रेल हमारी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है. माल ढुलाई और यात्रियों के आवागमन का प्राथमिक साधन होने के साथ रोजगार उपलब्ध करानेवाली सबसे बड़ी संस्था रेल ही है. सत्ता में आते ही पीएम नरेंद्र मोदी ने इसके कायाकल्प का भरोसा दिलाया था. हालांकि ऐसे वादे पहले भी किये गये थे.

रेल के विस्तार एवं विकास की दिशा में उल्लेखनीय उपलब्धियां भी हासिल हुई थीं, लेकिन यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा बेहतर करने तथा रेल नेटवर्क की व्यावसायिक संभावनाओं को वास्तविकता में बदलने की आकांक्षाएं संतोषजनक रूप से पूरी नहीं हो सकी थीं. मोदी सरकार के पहले बजट में ही तत्कालीन रेलमंत्री सदानंद गौड़ा ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी पर जोर देकर सुधार की पहलकदमी की थी.

उन्होंने रेल योजनाओं के लिए 65,445 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, जो रेल इतिहास का सबसे बड़ा आवंटन था. 2015-16 में उस समय के विभागीय मंत्री सुरेश प्रभु ने यात्री सुविधाओं पर बजट को केंद्रित किया था. उन्होंने पांच सालों में 8.5 लाख करोड़ के निवेश की योजना भी प्रस्तुत की थी और बजट की राशि में भी 50 फीसदी की बढ़ोतरी की थी.

अगले बजट में भी उन्होंने 21 फीसदी की वृद्धि की. रेल बजट की एक परंपरा बन गयी थी कि व्यापक विकास की आवश्यकताओं को किनारे रख राजनीतिक नफे-नुकसान को देखते हुए नयी यात्री रेलगाड़ियों की घोषणा की जाती थी. प्रभु ने इस परिपाटी को न सिर्फ तोड़ा, बल्कि पूरे रेल प्रणाली के आधुनिकीकरण, विद्युतीकरण और मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के रख-रखाव पर जोर दिया. खस्ताहाल पटरियों के कारण हमारे देश में ट्रेनों की गति कम है, इससे माल ढुलाई और यात्री गाड़ियां देरी से भी चलती हैं.

यह समस्या अब भी है, क्योंकि इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने में समय लगता है, लेकिन मौजूदा सरकार की कोशिशों से इसमें सुधार हुआ है और अनेक तेज गति की ट्रेनें चल रही हैं. एक महत्वपूर्ण निर्णय यह हुआ कि 92 साल से चली आ रही अलग रेल बजट की परंपरा को विराम देते हुए 2017 में रेल बजट को आम बजट में समाहित कर दिया गया. उस वर्ष 2016-17 के बजट से आठ फीसदी की वृद्धि की गयी थी. तब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पांच सालों में रेल सुरक्षा के लिए एक लाख करोड़ रुपये का कोष बनाने की घोषणा की थी. रेल सुरक्षा पर बातें पहले भी होती थीं, पर आवंटन की कमी से अच्छे परिणाम नहीं आते थे, पर बीते चार सालों में इस दिशा में बहुत काम हुआ है और दुर्घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आयी है.

पिछले आम बजट में रेल के लिए करीब डेढ़ लाख करोड़ का आवंटन सरकार की प्राथमिकता और गंभीरता को रेखांकित करता है. अब भारतीय रेल डिब्बे के 200 अरब डॉलर के वैश्विक कारोबार में शामिल होने की योजना बना रहा है. चुनावी वर्ष के कारण इस बार अंतरिम बजट पेश किया जाना है, पर उम्मीद है कि इंफ्रास्ट्रक्चर, सुविधा और सुरक्षा बढ़ाने की नीति जारी रखते हुए समुचित आवंटन किया जायेगा.

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