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छोटे उद्योग को बड़ी राहत

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रोजगार और आर्थिक बढ़त के लिहाज से सूक्ष्म, छोटे और मंझले दर्जे के उद्योग (एमएसएमई) बहुत अहम हैं. इस क्षेत्र में करीब 12 करोड़ रोजगार हैं और कुल आर्थिक उत्पादन में इसका योगदान 30 फीसदी के आसपास है. नोटबंदी के दौरान नकदी की किल्लत की मार सबसे ज्यादा इसी क्षेत्र ने झेली थी. जीएसटी लागू […]

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रोजगार और आर्थिक बढ़त के लिहाज से सूक्ष्म, छोटे और मंझले दर्जे के उद्योग (एमएसएमई) बहुत अहम हैं. इस क्षेत्र में करीब 12 करोड़ रोजगार हैं और कुल आर्थिक उत्पादन में इसका योगदान 30 फीसदी के आसपास है.

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नोटबंदी के दौरान नकदी की किल्लत की मार सबसे ज्यादा इसी क्षेत्र ने झेली थी. जीएसटी लागू होने से पैदा तात्कालिक व्यावसायिक व्यवधान का भी इस क्षेत्र पर असर पड़ा था. ऐसे में इन उद्योगों को कर्ज और अन्य सुविधा मुहैया कराने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा बड़ी सामयिक और नवजीवन देनेवाली है. अब छोटे और मंझोले उद्योगों को एक घंटे से भी कम समय में एक करोड़ रुपये का कर्ज मिल सकेगा और कर्ज अदायगी पर सूद में दो फीसदी छूट होगी.

इस क्षेत्र के निर्यातकों को सूद पर पांच फीसदी की राहत होगी. विभिन्न कानूनों में छूट तथा नियमों में नरमी भी नये उपायों का हिस्सा हैं. इस क्षेत्र में ऋण का सर्वाधिक भाग (50 से 55 प्रतिशत) सरकारी बैंकों से आता है, जबकि निजी बैंकों से 25 से 30 प्रतिशत और गैर-वित्तीय संस्थाओं से करीब 10 फीसदी. पिछले तीन सालों में इस क्षेत्र को बैंकों से मिलनेवाले कर्ज में सबसे ज्यादा कमी आयी है.

साल 2013-14 में एमएसएमई क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों को हासिल कुल कर्ज कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का 3.1 प्रतिशत था और इसमें बैंकों से मिलनेवाले कर्ज का हिस्सा जीडीपी का 1.1 प्रतिशत था. साल 2017-18 में कर्ज घटकर जीडीपी का 2.22 प्रतिशत हो गया और बैंकों से मिला कर्ज जीडीपी का मात्र 0.62 फीसदी रह गया.

बेशक, फंसे हुए कर्जों (एनपीए) के बढ़ते बोझ पर रोक के लिए रिजर्व बैंक ने उपाय किये हैं और सरकारी बैंकों के लिए कर्ज देना पहले से मुश्किल हो गया है, लेकिन आंकड़े यह भी संकेत करते हैं कि छोटे और मझोले उद्योगों में जो इकाइयां मैनुफैक्चरिंग से जुड़ी हैं, उन्हें बैंकों से मिलनेवाला कर्ज घटा है, जबकि सेवा क्षेत्र की इकाइयों को कर्ज ज्यादा मिला है. लिहाजा, ऋण उपलब्ध कराने की ताजा घोषणा से विनिर्माण क्षेत्र को सुस्ती से उबरने में मदद मिलेगी, वहीं सेवा क्षेत्र में नये व्यवसाय शुरू हो सकेंगे. पर इन खास उपायों के बावजूद कुछ अन्य पहलुओं पर अभी भी ध्यान देना जरूरी है.

एमएसएमई को सरकारी बैंकों से मिले कर्ज में एनपीए का अंश 2016 में 13 फीसदी था, जो अब 15 फीसदी है. निजी बैंकों में यह आंकड़ा पांच फीसदी है. सो, सरकारी बैंकों को कर्ज से जुड़े जोखिम के आकलन का तरीका बेहतर करना होगा. दूसरे, अच्छा होगा कि गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं से छोटे और मझोले उद्योगों को मिलनेवाला कर्ज बढ़े, क्योंकि उनमें कर्ज के ठीक से इस्तेमाल होने और उसकी वसूली के बारे में ठीक अनुमान की अधिक क्षमता है.

एमएसएमई क्षेत्र को बिजली, जमीन तथा अंतरराज्यीय व्यापारिक कर में रियायत की भी जरूरत है. बहरहाल, मौजूदा उपायों से अच्छे नतीजों की उम्मीद है.

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