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किस जबान ने सच बोला!

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संतोष उत्सुक व्यंग्यकार santoshutsuk@gmail.com समय सचमुच बदल गया है. आदमी बढ़ते जा रहे हैं, आदमियत विरली हो चली है. कहीं दिख जाये तो कोई दोबारा देखना पसंद नहीं करेगा. कम दाम में भी बिकना चाहे, तो कोई खरीदेगा नहीं. लुभावने विज्ञापन के साथ-साथ पैकिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर की कर दी जाये, तो भी खरीदकर वापस दे […]

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संतोष उत्सुक
व्यंग्यकार
santoshutsuk@gmail.com
समय सचमुच बदल गया है. आदमी बढ़ते जा रहे हैं, आदमियत विरली हो चली है. कहीं दिख जाये तो कोई दोबारा देखना पसंद नहीं करेगा. कम दाम में भी बिकना चाहे, तो कोई खरीदेगा नहीं. लुभावने विज्ञापन के साथ-साथ पैकिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर की कर दी जाये, तो भी खरीदकर वापस दे जायेगा.
विकास युग में असली ही नहीं, नकली चमड़े के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय जूते आलीशान वातानुकूलित शोरूम में सजे-धजे बिक रहे हैं. चमड़ा रीयल मान लिया जाये और ज्यादा चलने का आश्वासन मिले, तो बिकेगा.
अखबारों के फ्रंट पेज पर कभी शानदार जूतों के, तो कभी राजनीतिक सफलताओं वख्वाबों के विज्ञापन उत्सव का माहौल रच रहे हैं. त्योहारों की रौनक हमारी जिंदगी की तंग सड़क पर तेज चलनेवाली बाईक पर सवार है.
उधर दूसरे बाजार में जबान के चमड़े से चीख-चीखकर चैनल अपना नकली और असली सच बेच रहे हैं. समय सचमुच बदल गया है. अब तो जो खतरनाक बोले वही बढ़िया, सफल व प्रसिद्ध हो जाये और खूब बिके, खूब चले समाज में.
राजनीति में जबान का चमड़ा हमेशा से सफल रहा और अब भी खूब चल रहा है. पिछले दिनों समझदार लोगों द्वारा चुनी हुई जबान ने समझाया कि भारत को भीतर से ही इसके बुद्धिजीवियों और उदारवादियों से गंभीर खतरा है. यह लोग राज्य-व्यवस्था पर बोझ से ज्यादा कुछ नहीं. चमड़े ने कहा कि ये सब राष्ट्रविरोधी हैं और पुलिस को चाहिए इन सबको कतार में खड़ा कर गोली मार दे. वाह क्या चमड़ा है. लीजिए फिर साबित हुआ कि झगड़ा तो अब भी जबान का है.
विद्यार्थियों-शिक्षकों को पाठ पढ़ानेवाले किन्हीं राज्य के शिक्षा मंत्री ने विद्यार्थियों को खबरदार किया कि अपने गुरु के सम्मान में आज तालियां नहीं बजायीं, तो अगले जन्म में घर-घर जाकर तालियां बजानी पड़ेंगी.
समझदार वोटरों द्वारा जितायी हुई बढ़िया चमड़े की एक और राजनीतिक जबान ने फरमाया कि नौकरी न मिलने के कारण हताश युवक रेप करते हैं. अब नौकरी पैदा करने का वायदा भी तो जबान से किया जाता है. एक बार अपनी नौकरी लग जाये, तो जबान को इधर-उधर घुमाने में क्या जाता है. आखिर यह छोटा सा चमड़ा ही तो है.
इतिहास ही नहीं वर्तमान के पन्नों पर भी बारंबार लिखा गया है कि सबसे बदबूदार चमड़ा इंसानी जबान का है. नेताओं के लिए कुछ योग्यता रख दी जाये, तो चमड़ा खुशबूदार हो जाये.
कुछ दिन बाद फिर कोई विषय उग आता है और शुरू हो जाता है जबान से कड़वा स्प्रे, जिससे कुछ बुरे कीटाणु मर जाते हैं, तो कुछ अच्छे भी. मीटू के आंगन में क्या पता किसकी जबान ने सच बोला और किस जबान ने पुराने कोड़े मारकर हिसाब बराबर किया. जबान के चमड़े को धोने के लिए नये ऑर्गेनिक वाशिंग पावडर की जरूरत लग रही है. इस बार भी रावण के पुतले जलाने से बुराई कम नहीं हुई.

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