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ई-कॉमर्स का बढ़ता दायरा

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डिजिटल तकनीक के प्रसार से चीजों की खरीद-बिक्री और वित्तीय लेन-देन में बड़ी सहूलियत हुई है. बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत मुख्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में 2022 तक करीब तीन अरब उपभोक्ता इंटरनेट से जुड़ चुके होंगे और डिजिटल खरीदारी चालीस खरब डॉलर के स्तर तक पहुंच जायेगी. नैस्कॉम और पीडब्ल्यूसी […]

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डिजिटल तकनीक के प्रसार से चीजों की खरीद-बिक्री और वित्तीय लेन-देन में बड़ी सहूलियत हुई है. बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत मुख्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में 2022 तक करीब तीन अरब उपभोक्ता इंटरनेट से जुड़ चुके होंगे और डिजिटल खरीदारी चालीस खरब डॉलर के स्तर तक पहुंच जायेगी.

नैस्कॉम और पीडब्ल्यूसी इंडिया के एक ताजा आकलन में बताया गया है कि 2022 तक भारत में ई-कॉमर्स बाजार सौ अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर जायेगा. फिलहाल यह बाजार 35 अरब डॉलर का है, जिसमें अगले पांच सालों तक 25 फीसदी सालाना बढ़त की उम्मीद है. इसका एक संतोषजनक पक्ष यह भी है कि 2023 तक इस क्षेत्र में दस लाख से अधिक रोजगार के अवसर भी बनेंगे. चूंकि विकसित देशों से करीब तीन गुना ज्यादा इंटरनेट उपयोगकर्ता चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका, फिलीपींस, इंडोनेशिया और ब्राजील जैसे उभरते बाजारों में हैं, इसलिए ई-कॉमर्स का विस्तार भी इन देशों में तेज गति से हो रहा है.

ऐसे में यह जरूरी है कि सरकार इस क्षेत्र की बेहतरी के लिए ठोस नियम और नीति बनाये. केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के तहत गठित इंवेस्ट इंडिया ने कुछ दिन पहले उद्योग जगत से सलाह मांगकर बड़ी पहल की है. यह विभाग ई-कॉमर्स से जुड़े हर मामले में मुख्य सरकारी एजेंसी है. जुलाई में सरकार ने इस संबंध में एक नीति का प्रस्ताव भी किया था, जिसे पुख्ता बनाने की कवायद हो रही है. इन कोशिशों के शुरुआती दौर में ई-कॉमर्स की बड़ी विदेशी कंपनियों से राय-मशविरा नहीं किया गया था, किंतु अब उनके सुझाव भी लेने की चर्चा है.

देश में इस क्षेत्र के विकास में विदेशी कंपनियों का योगदान 10 अरब डॉलर से अधिक है. डिजिटल तकनीक, इंटरनेट और ई-कॉमर्स का स्वरूप अंतरराष्ट्रीय है. इसलिए डेटा के समुचित उपयोग और उपभोक्ता हितों की रक्षा को सुनिश्चित करने के लिए देशी-विदेशी कारोबारियों को नीति-निर्धारण प्रक्रिया में शामिल करना जरूरी है.

ई-कॉमर्स डेटा को देश में ही रखने, थोक खरीद रोकने तथा दाम और छूट की प्रतिद्वंद्विता पर लगाम लगाने के सरकारी प्रस्तावों पर विदेशी कंपनियों को आपत्ति है, लेकिन घरेलू उपभोक्ताओं, उत्पादकों और वितरकों के लिए ऐसे कदम उठाने आवश्यक हैं. नीतिगत पहलों के साथ जमीनी स्तर पर भी उन पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए, जिनसे ई-कॉमर्स को बढ़ावा मिलता है. वितरण के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने तथा डिजिटल भुगतान का दायरा बढ़ाने की जरूरत है.

स्टार्टअप कंपनियों के लिए पहले कुछ सालों तक धन मुहैया कराना और पारिवारिक आमदनी को बढ़ाना भी ई-कॉमर्स की बेहतरी में अहम कारक होते हैं. हालांकि सरकारी और निजी स्तर पर कर्ज की उपलब्धता और डिजिटल बैंकिंग बढ़ाने पर हाल में जोर दिया गया है, पर इसे संतोषजनक नहीं माना जा सकता है. यदि ई-कॉमर्स के विस्तार को ठीक से संचालित किया जाता है, तो इससे हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में बड़ी मदद मिलेगी.

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