अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस की सार्थकता

संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार और अन्याय को खत्म करने के लिए और जागरूकता फैलाने के लिए हर साल एक अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के रूप में मना उनको उनका सही स्थान दिलाने की कोशिश शुरू की, परंतु यह कैसी विडंबना है कि एक मां-बाप 10-10 बच्चों का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 8, 2018 6:38 AM
संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार और अन्याय को खत्म करने के लिए और जागरूकता फैलाने के लिए हर साल एक अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के रूप में मना उनको उनका सही स्थान दिलाने की कोशिश शुरू की, परंतु यह कैसी विडंबना है कि एक मां-बाप 10-10 बच्चों का परवरिश कर लेता है, परंतु 10 बच्चों पर बुढ़ापे में वही मां-बाप बोझ बन जाते हैं.
जीवन भर अपने मन-कर्म और वचन से रक्षा करने वाला, पौधों से पेड़ बनाने वाला व्यक्ति घर के एक कोने में उपेक्षित पड़ा रहता है या अस्पताल, वृद्धाश्रम में अपनी मौत की प्रतीक्षा करता है. आधुनिक उपभोक्ता, संस्कृति एवं सामाजिक मूल्यों के क्षरण की यह परिणति है. किसी भी दिन की प्रासंगिकता तभी रह जाती है, जब हम उसकी अहमियत को जीवन में उतारें, कुछ प्रेरणा लें.
डॉ हरि गोविंद प्रसाद, बेगूसराय

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