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अहम मोड़ पर खड़ा पाकिस्तान

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कमर आगा अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार qamar_agha@yahoo.com पाकिस्तान में इसी 25 जुलाई को होनेवाले आम चुनाव में इमरान खान की पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ’ (पीटीआई) और कुछ इस्लामिक पार्टियों के गठबंधन वाली सरकार बनने के आसार दिख रहे हैं. अगर ऐसा हुआ, तो इमरान खान पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं. बीते लंबे समय से […]

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कमर आगा

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अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार

qamar_agha@yahoo.com

पाकिस्तान में इसी 25 जुलाई को होनेवाले आम चुनाव में इमरान खान की पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ’ (पीटीआई) और कुछ इस्लामिक पार्टियों के गठबंधन वाली सरकार बनने के आसार दिख रहे हैं. अगर ऐसा हुआ, तो इमरान खान पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं. बीते लंबे समय से इमरान खान जिस तरह से नवाज शरीफ पर राजनीतिक हमला बाेलते रहे हैं, नवाज पर भ्रष्टाचार का फैसला आने के बाद उनकी राजनीतिक हैसियत मजबूत हुई है.

नवाज शरीफ की पार्टी को तोड़ने में इमरान ने कोई कसर बाकी नहीं रखी थी और इस काम में उनके साथ सेना भी साथ थी. अपने चुनावी भाषणों में इमरान हमेशा यह बात कहते रहे हैं कि पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर वह देश को आगे ले जायेंगे. इसका अर्थ है कि सेना ही वहां सरकार चलायेगी. यही काम नवाज शरीफ नहीं कर पा रहे थे.

इस वक्त पाकिस्तान चुनाव में तीन इस्लामिक समूह मैदान में हैं. एक, सूफियों की ‘तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान’, मौलाना फजल-उर-रहमान की ‘जमिअत-ए-उलेमा इस्लाम’ और हाफिज सईद के जमात-उद-दावा की राजनीतिक शाखा ‘मिल्ली मुस्लिम लीग’ (एमएमएल) के समर्थन वाली ‘अल्लाहु-अकबर तहरीक पार्टी’, ये तीनों चुनावी मैदान में हैं और इनका सेना के साथ अच्छा तालमेल है और जिस तरह से इमरान यह कहते आये हैं कि वह सेना के साथ हैं, इससे तो यही लगता है कि चुनाव के बाद होनेवाले गठबंधन में इन तीनों पार्टियों के साथ इमरान चले जाएं, लेकिन यहां गौर करनेवाली बात यह है कि इस बार के चुनाव में इन प्रमुख पार्टियों के चुनावी घोषणापत्र में कश्मीर मसला का जिक्र कम है.

उधर नवाज शरीफ की पार्टी ‘पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज’ (पीएमएल-एन) पर नवाज की गिरफ्तारी के फैसले के बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं का हौसला कुछ कम जरूर हुआ है, लेकिन वे अपनी पूूरी कोशिश करेंगे कि चुनाव में बढ़त हासिल करें.

दरअसल, नवाज शरीफ पंजाब क्षेत्र के बड़े नेता हैं और उनकी पहुंच गांव-देहातों, मजदूर-कामगारों और छात्रों के बीच बहुत गहरी है. नवाज हमेशा से लोकतंत्र की हिमायत करते रहे हैं और लोगों के हक की बात करते रहे हैं. उनके ऊपर भ्रष्टाचार का फैसला एक अलग बात है, लेकिन एक नेता के तौर पर वह अब भी पाकिस्तान में लोकतंत्र के पैरोकार हैं.

नवाज ने हमेशा इस बात की कोशिश की है कि पाकिस्तान के शासन-तंत्र में सेना का दखल न हो और सरकार पर सेना का कोई बेजा दबाव न हो. यही लोकतंत्र को आगे बढ़ाने का तरीका भी है और इसी के लिए नवाज ने एक बड़ी लड़ाई सेना के साथ छेड़ी हुई थी. यही वजह है कि इमरान का साथ देने के लिए पाक सेना हमेशा तैयार रहती है.

अब इमरान खान यह कह रहे हैं कि वह भारत के साथ रिश्ते में शांति की स्थापना करेंगे और एक-दूसरे के साथ सहयोग और पारस्परिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिए काम करेंगे.

नवाज शरीफ तो इस बात को हमेशा मानते रहे हैं कि भारत के साथ हमारी दोस्ती प्रगाढ़ होनी चाहिए और बातचीत के रास्ते सारे मसलों को हल किया जाना चाहिए.

आतंकवाद को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए. नवाज शरीफ का मानना रहा है कि सेना को सत्ता में दखल देने के बजाय आतंकवाद को खत्म करने में जी-जान लगा देनी चाहिए. यह बात सेना को नागवार गुजरती थी, इसलिए सेना इमरान का साथ देने लगी.

जाहिर है, पाकिस्तान में आतंकवाद को सह देनेवाली सेना नवाज की बात से कैसे इत्तेफाक रख सकती थी? यही वजह है कि सेना और नवाज सरकार में हमेशा ठनी रहती थी. इसी का फायदा उठाकर इमरान खान और बाकी दीगर पार्टियों ने सेना को साथ लेकर चलने की बात कही और चुनावी रैलियों में नवाज शरीफ पर जमकर जुबानी हमले किये.

बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो की ‘पाकिस्तान पीपल्स पार्टी’ (पीपीपी) भी मैदान में हैं, जिनका मानना है कि कश्मीर समस्या का हल जरूरी है.

शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग और जमात-ए-इस्लामी भी मैदान में हैं. नवाज शरीफ की पार्टी के साथ ‘पश्तून मुहाफिज मूवमेंट’ है, जो सेना के खिलाफ रहे हैं, तो वहीं बलूचिस्तान में भी पार्टी की हालत ठीक है. जिस तरह से इस बार इस्लामिक पार्टियां चुनाव मैदान में हैं, उससे तो यही लगता है कि इस चुनाव में पारदर्शिता कम ही होगी.

ऐसे में अगर साफ-सुथरा चुनाव हो गया, तो इमरान गठबंधन के लिए कुछ मुश्किल हो सकती है, क्योंकि वहां की ज्यादातर जनता अब भी नवाज शरीफ के साथ दिखती है.

सभी पार्टी के नेता के बयानों में आर्थिक तरक्की का जिक्र भी देखने को मिल रहा है.पाकिस्तान को चीन ने एक बिलियन डॉलर का कर्ज दिया है, जिससे पाकिस्तान पर दबाव है कि वह विकास के रास्ते पर चले. लेकिन, अगर सेना के साथ मिलकर इमरान के साथ इस्लामिक पार्टियों का गठबंधन होता है, तो पाकिस्तान के हालात और खराब होंगे और हिंसा बढ़ सकती है.

इमरान के पास सत्ता संभालने का कोई अनुभव नहीं है, इसलिए सेना अपनी मनमानी करेगी और इससे पाकिस्तान की छवि पर असर पड़ेगा. अब देखना यह है कि आम चुनाव में पाक-जनता कितनी समझदारी दिखाती है.

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