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II रविभूषण II वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com कर्नाटक के मतदाताओं ने किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं दिया. कर्नाटक विधानसभा की कुल 224 सीटों में से 222 सीटों के चुनाव परिणाम में भाजपा को 104, कांग्रेस को 78, जेडीएस को 37, बसपा को 1, केपीजेपी को 1 और निर्दलीय को 1 सीट मिली. मतदाताओं ने […]

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II रविभूषण II
वरिष्ठ साहित्यकार
ravibhushan1408@gmail.com
कर्नाटक के मतदाताओं ने किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं दिया. कर्नाटक विधानसभा की कुल 224 सीटों में से 222 सीटों के चुनाव परिणाम में भाजपा को 104, कांग्रेस को 78, जेडीएस को 37, बसपा को 1, केपीजेपी को 1 और निर्दलीय को 1 सीट मिली.
मतदाताओं ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया. कांग्रेस का वोट प्रतिशत पिछले चुनाव से बढ़कर 38 प्रतिशत हुआ, पर उसकी 44 सीटें घट गयीं. भाजपा का वोट प्रतिशत 2013 के चुनाव से डेढ़ गुना से अधिक (36.2 प्रतिशत) बढ़ा और विधायकों की संख्या ढाई गुना से अधिक हुई. जेडीएस का वोट प्रतिशत भी घटा और सीट संख्या भी कम हुई.
निश्चित रूप से कर्नाटक का जनादेश कांग्रेस के विरुद्ध है, पर वह भाजपा के भी पक्ष में नहीं है. मतदाताओं ने आंख मूंदकर भाजपा को नहीं स्वीकारा है. बहुमत से आठ सीट भाजपा की कम है. यहां 2007 में पहली बार भाजपा की सरकार बनी थी. येदियुरप्पा उस समय मात्र सात दिन मुख्यमंत्री रहे थे.
दूसरी बार 30 मई, 2008 से 31 जुलाई, 2011 तक यानी वे तीन वर्ष 62 दिन तक मुख्यमंत्री रहे. उनके बाद डीवी सदानंद गौड़ा कुल 343 दिन (4 अगस्त 2011 से 12 जुलाई 2012) तक भाजपा के मुख्यमंत्री थे. साल 2013 में कर्नाटक में भाजपा तीन धड़ों में विभक्त हुई थी. एक तरफ भाजपा के निष्ठावान, समर्पित विधायक थे, दूसरी ओर येदियुरप्पा ने अपने समर्थकों के साथ एक नयी पार्टी- ‘कर्नाटक जनता पार्टी’ का गठन किया.
तीसरा धड़ा रेड्डी बंधुओं का था, जिन्होंने अपने अनुयायियों, समर्थकों और बीएस श्री रामालु के साथ वीआरएस का गठन किया. इस बार के विधानसभा के पहले ये तीनों धड़े एकजुट हुए. अब भाजपा में असंतुष्ट और विरोधी न रहे. तीनों धड़ों के मिल-जुलकर चुनाव लड़ने का नतीजा 104 सीटों में मिला.
वहीं दूसरी ओर, सिद्धारमैया की कोई योजना कारगर न हो सकी. अन्न, भाग्य, क्षीर योजनाओं और ‘इंदिरा कैंटीन’ से भी कोई चुनावी लाभ नहीं मिला. कन्नड़ अस्मिता, क्षेत्रीय अस्मिता का भी प्रभाव नहीं पड़ा. आंबेडकर के नाम पर जो अनेक कार्यक्रम हुए, उससे दलित वोट उन्हें प्राप्त नहीं हुए.
कर्नाटक में दलित 19 प्रतिशत हैं. पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक, मुसलमान का गठबंधन ‘अहिंद’ भी काम नहीं आया. शहरी और दलित मतदाता भाजपा की ओर झुके. कांग्रेस का दलित वोट घटा और भाजपा का बढ़ा. कर्नाटक के 82 विधानसभा क्षेत्रों में दलित बीस प्रतिशत से अधिक हैं.
भाजपा को 2013 में यहां से मात्र 9 सीटें मिली थीं, जो इस बार बढ़कर 31 हो गयीं और कांग्रेस की सीट 49 से घटकर 34 हुई. सिद्धारमैया चामुंडेश्वरी सीट 36 हजार से अधिक मतों से हारे और बादामी सीट मात्र 1,696 वोट से जीते.
कर्नाटक के कुछ हिस्सों में से पांच हिस्सों- मुंबई कर्नाटक, हैदराबाद कर्नाटक, तटीय कर्नाटक, मध्य कर्नाटक और बेंगलुरु शहर में भाजपा आगे रही. पुराना मैसूर जेडीएस का गढ़ रहा है. यहां उसे सर्वाधिक सीटें मिलीं. कुल 17 प्रतिशत आबादी वाला लिंगायत समुदाय ने येदियुरप्पा का साथ नहीं छोड़ा. अमित शाह की रणनीति के सामने सिद्धारमैया की रणनीति कमजोर रही.
यह तो लगभग तय था कि राज्यपाल वजुभाई वाला भाजपा को ही सरकार बनाने का न्योता देंगे. वे मोदी के अत्यंत करीबी हैं. हरेन पांड्या ने 2001 में नरेंद्र मोदी के लिए पालडी विधानसभा की सीट नहीं छोड़ी थी, तब वजुभाई वाला ने ही नरेंद्र मोदी के लिए अपनी विधानसभा सीट छोड़ी थी. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही वजुभाई वाला 1 सितंबर, 2014 को कर्नाटक के राज्यपाल बनाये गये थे.
आरएसएस से वजुभाई वाला का पुराना संबंध है. वे उसके ‘हार्ड कोर समर्थक’ हैं. कांग्रेस और जेडीएस ने बहुमत के आधार पर उनसे सरकार बनाने की मांग की थी. यह मांग नहीं सुनी गयी और उन्होंने येदियुरप्पा को 16 मई की रात को साढ़े नौ बजे सरकार बनाने के लिए पत्र भेजा.
उसके पहले शपथ-ग्रहण को लेकर भाजपा विधायक ट्वीट कर चुके थे. राज्यपाल ने संविधान का पालन नहीं किया और 17 मई को येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
सुप्रीम कोर्ट ने शपथ रोकने के लिए कांग्रेस-जेडीएस की अर्जी पर सुनवाई की, पर येदियुरप्पा के शपथ पर रोक नहीं लगायी. 18 मई को सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई को चार बजे शाम विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा. राज्यपाल ने प्रोटेम स्पीकर के रूप में केजी बोपैया को नियुक्त किया. राज्यपाल वजुभाई वाला ने संविधान और लोकतंत्र की मर्यादा का पालन नहीं किया है.
शाम चार बजे (19 मई को) विधानसभा में येदियुरप्पा ने इस्तीफा देने की बात कही. साल 2007 में येदियुरप्पा मात्र सात दिन मुख्यमंत्री रहे थे. इस बार मात्र दो दिन रहे.
यह सब जस्टिस एके सीकरी, एसए बोबडे और अशोक भूषण की विशेष बेंच (कोर्ट न. 6) के कारण संभव हुआ, जिसने 19 मई को शाम चार बजे ‘फ्लोर टेस्ट’ करने का निर्देश दिया था. लोकतंत्र और संविधान की रक्षा न भाजपा ने की, न कर्नाटक के राज्यपाल ने. यह रक्षा सुप्रीम कोर्ट ने की है. येदियुरप्पा ने बहुमत साबित न कर अपना त्यागपत्र दे दिया. जीत लोकतंत्र की हुई है और लोकतंत्र की रक्षा न्यायपालिका ने की है.

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