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ये गुलमोहर, वो गुलमोहर

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मिथिलेश कु. राय युवा रचनाकार एक बार जब सड़क के किनारे के सवा सौ साल पुराने बूढ़े पीपल को काटा जा रहा था, कक्का के मुंह से हठात ही निकला था कि मनुष्य ने अपने रहने के लिए घर और चलने के लिए सड़क बनाने के लिए सबसे ज्यादा वृक्षों से ही बलिदान लिये हैं. […]

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मिथिलेश कु. राय
युवा रचनाकार
एक बार जब सड़क के किनारे के सवा सौ साल पुराने बूढ़े पीपल को काटा जा रहा था, कक्का के मुंह से हठात ही निकला था कि मनुष्य ने अपने रहने के लिए घर और चलने के लिए सड़क बनाने के लिए सबसे ज्यादा वृक्षों से ही बलिदान लिये हैं.
बगल के शहर में आते-जाते मुझे गुलमोहर का एक वृक्ष ध्यान खींचता है, लेकिन वह एक गंदी जगह पर है. मैं देखता हूं कि कोई भी उसे निहारने के लिए नहीं ठहरता. लोग वहां से नाक बंद करते हुए जल्दी निकल जाना चाहते हैं.
मुझे लगता है चलते-चलते ही लोग एक आंख की कनखी से उसके फूलों के गुच्छे को देखते होंगे. मैं यह भी सोचता हूं कि लोग क्षणभर खड़ा होकर उसे निहारना भी चाहते होंगे, लेकिन गंदगी के कारण और संक्रमण के डर से वे ऐसा नहीं करते होंगे.
मैंने लोगों को फूलों को निहारते हुए देखा है. मैंने कई बार यह नोट किया है कि लोग रंग-बिरंगे फूलों को देखकर अपनी चाल धीमी कर लिया करते हैं.
वे ठहरकर चलते हुए फूलों को निहारते हैं और उसकी सुगंध को महसूस करना चाहते हैं. ऐसा करते हुए उनके चेहरे पर प्रसन्नता की रेखाओं को उभरते हुए देखा जा सकता है. इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि अगर वह साफ-सुथरी जगह होती, तो लोग वहां क्षणभर ठहरते और न भी ठहरते तो वहां से धीरे-धीरे निकलते. विशाल गुलमोहर के वृक्ष के कारण वह जगह शहर के खास जगह में शुमार हो जाता. लेकिन गंदगी ने सब चौपट कर दिया.
मैं सोचता हूं कि गुलमोहर ने वहां उगकर उस जगह को गंदगी से निजात देनी चाही होगी कि सुंदर फूलों वाले पेड़ के कारण लोग वहां कचरा फेंकना बंद कर देंगे. मैंने यह महसूस किया है कि लोग फूल की सुंदरता और सुगंध से प्यार करते हैं और प्यार एक मोह को जन्म देता है, जो बचाने की भावना को प्रबल करता है.
पेड़ों-पौधों को, पशु-पक्षियों को, मनुष्यों को, पृथ्वी को, जल को, सबको. प्यार में जो मोह होता है, वह चीजों को खत्म करने की संस्कृति को टक्कर देने का दम भरता है. लेकिन अब इसमें भी ह्रास हो रहा है.
जब मैं छोटा था, तब गांव में गुलमोहर के दो बड़े विशाल वृक्ष थे. मौसम जब परवान पर होता, गुलमोहर में पत्ते नजर नहीं आते. पत्ते जरूर होते होंगे, मगर वे फूलों के ढेर में खो जाते थे. याद आता है गुलमोहर के फूलों का रंग.
वे धूप में दूर से धधकते शोले की तरह दिखते थे. बेहद दिलकश थे! गुलमोहर तलवार जैसी फलियों में अपना बीज छुपाकर रखता था. उसकी शाखाओं से ये तलवार ऐसे लटके रहते, मानो वृक्ष कोई सजग सिपाही हो और कभी भी कूच करने के लिए तैयार हो.
वे गुलमोहर के वृक्ष पता नहीं कहां गुम हो गये हैं. दोनों में से कोई कहीं नहीं दिख रहा है. मैंने सोचा है कि पता लगाऊंगा कि वे आखिर कहां चले गये. क्यों और कब चले गये. मुझे पूरा विश्वास है कि वे मरे नहीं होंगे. उनकाे मार दिया गया होगा. खोजबीन करूंगा तो मुझे पता चलेगा कि पहले जहां गुलमोहर के वृक्ष थे, अब वहां एक घर हुआ करता है.

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