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चिंताजनक ट्रेड वार

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सीमाओं पर हथियारों से लड़े जानेवाले युद्ध अब बीसवीं सदी की बात हुए. मौजूदा सदी के सबसे बड़े और कठिन युद्ध का मैदान कारोबार है. इसमें जीत का मतलब है अपनी वस्तुओं और सेवाओं के लिए वैश्विक स्तर पर फायदेमंद शर्तों के साथ बाजार तैयार करना और तमाम उपलब्ध विकल्पों (जिसमें परंपरागत युद्ध भी शामिल […]

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सीमाओं पर हथियारों से लड़े जानेवाले युद्ध अब बीसवीं सदी की बात हुए. मौजूदा सदी के सबसे बड़े और कठिन युद्ध का मैदान कारोबार है.
इसमें जीत का मतलब है अपनी वस्तुओं और सेवाओं के लिए वैश्विक स्तर पर फायदेमंद शर्तों के साथ बाजार तैयार करना और तमाम उपलब्ध विकल्पों (जिसमें परंपरागत युद्ध भी शामिल है) के सहारे उसे बनाये रखना. फिलहाल दो आर्थिक और सामरिक महाशक्तियों (अमेरिका और चीन) के बीच यही होता दिख रहा है. चीन की बढ़त से अपने बाजार को बचाने के लिए अमेरिका संरक्षणवादी नीतियां अपना रहा है, जिसका असर वैश्विक ताने-बाने का अहम हिस्सा बन चुके भारत पर पड़ना लाजिमी है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में इस्पात और एल्यूमीनियम के आयात पर क्रमशः 25 और 10 फीसदी शुल्क का इजाफा किया है. अमेरिका ने जनवरी में सोलर पैनल तथा वाशिंग मशीन के आयात पर भी 20 से 50 प्रतिशत तक शुल्क में बढ़ोत्तरी की थी. इन फैसलों का मुख्य निशाना चीन है, जो अमेरिका के दस बड़े व्यापारिक साझीदार देशों में एक है.
वर्ष 2017 में चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 375 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका था. चूंकि चीन अभी आर्थिक और राजनीतिक तौर पर दमदार स्थिति में है, सो बहुत संभावना है कि अमेरिका को सबक सिखाने के लिए चीन पलटवार करे. चीन मकई, मांस और सोयाबीन का बड़े पैमाने पर आयात अमेरिका से करता है और अगर वह इन चीजों को किसी और देश से मंगाने लगे, तो अमेरिकी खेतिहर उत्पादों की ताकतवर लॉबी को जोरदार झटका लगेगा. दो महाशक्तियों के बीच पैदा होते आर्थिक युद्ध की इस पृष्ठभूमि में भारत के लिए जरूरत अपनी रणनीति नये सिरे से गढ़ने की बन रही है.
भारत भी अमेरिका के दस बड़े व्यापारिक साझीदार देशों में एक है और फिलहाल अमेरिका के साथ भारत का व्यापार मुनाफे (तकरीबन 22 बिलियन डॉलर) की स्थिति में है यानी अमेरिका को होनेवाले भारतीय निर्यात का मोल अमेरिका से होनेवाले आयात से ज्यादा है. वैसे अमेरिका को भारतीय निर्यात में हीरा, दवाइयां, मछली, कपड़े आदि प्रमुख हैं, लेकिन भारत अमेरिका को इस्पात तथा एल्यूमीनियम और इनसे बने उत्पादों का भी अच्छी मात्रा में निर्यात करता है, जिन पर अमेरिका ने आयात शुल्क बढ़ाने की घोषणा की है.
विकल्प के तौर पर या तो भारत को अमेरिका से अपने लिए तरजीही बरताव की मांग करनी होगी या फिर इस्पात और अल्यूमीनियम निर्यात के मामले में उसे नये बाजार तलाशने होंगे. ऐसे में भारत के लिए चुनौती आर्थिक मोर्चे पर एल्यूमीनियम और इस्पात के बने सामानों के सबसे बड़े निर्यातक चीन के साथ प्रतिद्वंद्विता की स्थिति से निबटने की होगी. इस ट्रेड वार से आर्थिक मंदी की आशंका है.
इसलिए इससे निबटने की तैयारी भी पहले से होनी चाहिए, ताकि किसी चुनौती का सामना आत्मविश्वास से किया जा सके. वैश्विक खींचतान में कूटनीतिक संतुलन और राष्ट्रीय हित को साधने के इंतजाम भी किये जाने चाहिए.

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