भाजपा के जबर्दस्त संगठनात्मक कौशल, कठिन परिश्रम व चुनाव जीतने के स्पष्ट लक्ष्य से मानव बल व संसाधनों की लामबंदी की उसकी कोशिशें असरदार रही हैं.
नतीजों की परवाह किये बगैर मोदी और शाह ने हमेशा अपने भीतर चुनावी जीत की भूख दिखाई है. वे अपने चुनावी तंत्र को हमेशा चुस्त-दुरुस्त व सक्रिय रखते हैं. इसके उलट कांग्रेस ने शायद ही कोई मजबूत इरादा दिखाया हो. पूर्वोत्तर में तो इसने लगभग आत्मसमर्पण ही कर दिया था. गुजरात के सफल अभियान के बाद राहुल गांधी से उम्मीद थी कि वह सामने से नेतृत्व करेंगे, मगर वह परिदृश्य से नदारद दिखे. कांग्रेस के पास कर्नाटक चुनाव को गंभीरता से लेने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. यह उसके वजूद की लड़ाई होगी.
डॉ हेमंत कुमार, इमेल से