17.1 C
Ranchi
Thursday, February 13, 2025 | 11:22 pm
17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

एकछत्र तानाशाह का उदय!

Advertisement

II पुष्पेश पंत II विदेश मामलों के जानकार pushpeshpant@gmail.com चीन की साम्यवादी पार्टी ने यह प्रस्ताव पेश किया है कि अब वहां राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के पद पर आसीन व्यक्ति के लिए मात्र दो पांचसाला कार्यकाल की सीमा रखने की जरूरत नहीं है. इसका मतलब साफ है- 2023 के बाद भी अपने पद पर शी […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

II पुष्पेश पंत II
विदेश मामलों के जानकार
pushpeshpant@gmail.com
चीन की साम्यवादी पार्टी ने यह प्रस्ताव पेश किया है कि अब वहां राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के पद पर आसीन व्यक्ति के लिए मात्र दो पांचसाला कार्यकाल की सीमा रखने की जरूरत नहीं है. इसका मतलब साफ है- 2023 के बाद भी अपने पद पर शी जिनपिंग बेखटके बने रह सकते हैं.
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि शी ने अपना पहला ही कार्यकाल पूरा नहीं किया, वह इस बात का पुख्ता इंतेजाम कर रहे हैं कि उनके जीवनकाल में उनको चुनौती दे सकनेवाला कोई ‘उत्तराधिकारी’ प्रकट न हो सके.
अमेरिकी पत्र-पत्रिकाओं में इसे ‘सम्राट शी’ की ताजपोशी कहा जाना शुरू हो गया है. कुछ ही दिन पहले पार्टी के अधिवेशन में उनका महिमामंडन जिस तरह किया गया, उससे यह जगजाहिर हो चुका है कि आज उनकी प्रतिष्ठा माओ के जैसी स्थापित की जा रही है.
वह सैनिक आयोग के अध्यक्ष होने के साथ-साथ पार्टी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेता तथा राष्ट्रपति पहले से हैं. सत्ता का ऐसा केंद्रीयकरण चीन में पहले भी हुआ है, परंतु माओ युग के अंत के बाद देंग सियाओ पेंग ने सामूहिक नेतृत्व का सूत्रपात किया था.
तब से अब तक दस साल की अवधि के बाद शिखर पर सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से हू जिंताओ, जियांग जेमिन से लेकिर शी तक होता रहा है. शी अभी 63 वर्ष के हैं और 2023 में सत्तर की दहलीज पर ही होंगे. दीर्घायु चीनी इसके बाद भी सत्ता-सूत्र संभाल रहे हैं, अतः शी की महत्वाकांक्षा असाधारण नहीं कही जा सकती.
जो बात टिप्पणी करने लायक है, वह यह कि लगभग तीन-चार दशक से चली आ रही परंपरा-व्यवस्था को क्यों बदला जा रहा है. देंग ने चीनी नमूने का समाजवाद (जो चीन की जरूरत के मुताबिक संशोधित पूंजीवाद ही था) लाने की राह तैयार की. चार महान आधुनिकीकरण और आर्थिक सुधार उनके नाम के साथ जुड़े हैं.
इसी तरह हू जिंताओ और जियांग जेमिन ने क्रमशः समरस चीनी समाज और चीनी राष्ट्रहित को आगे बढ़ानेवाली नीतियों को बदली विश्वव्यवस्था के (भूमंडलीकरण के) दबाव में पुनर्परिभाषित करने की चेष्टा की. क्या शी अपनी अलग वैचारिक छाप चीन पर छोड़ने के लिए ही ऐसा कर रहे हैं? एक राज्य दो व्यवस्थाओं वाली प्रणाली ने चीन को निश्चय ही आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली और अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रभावशाली बनाया है.
रूस तथा अमेरिका के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के साथ-साथ चीन ने दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के जरिये तथा उत्तरी एशिया में उत्तरी कोरिया के माध्यम से अलग राजनयिक पथ भी चुना है. आतंकवाद हो, कट्टरपंथी इस्लाम हो या पर्वावरणीय संकट से जूझने की रणनीति, चीन आम सहमति का अनुमोदन करने से कतराता रहा है.
इसी वजह से शी के व्यक्तिगत भविष्य-महत्वाकांक्षा और चीन के सामरिक आचरण को एक-दूसरे से अलग कर देखना-परखना असंभव होता जा रहा है. कुछ विद्वानों का तो यहां तक मानना है कि इस घटनाक्रम का साम्य रूस में पुतिन द्वारा अपना एकछत्र साम्राज्य स्थापित करनेवाले पराक्रम से किया जाना चाहिए.
अमेरिका हो, रूस हो या चीन, सभी महाशक्तियों में तानाशाही व्यक्तिवादी प्रवृत्तियां उदीयमान हैं. शायद भारत भी इसका अपवाद नहीं है! वहीं यह सुझानेवाले भी कम नहीं हैं कि संभवतः यह प्रवृत्ति अंततः तनाव घटानेवाली साबित होगी.
जो लोग इस समय चीन में जनतांत्रिक व्यवस्था के नष्ट होने का मातम मना रहे हैं, उनको यह याद दिलाने की जरूरत है कि चीन कभी भी जनतांत्रिक समाज या राज्य नहीं रहा है.
न महान चीनी साम्राज्यों के काल में और न ही राष्ट्रवादी एवं साम्यवादी क्रांति के युग में. महामानव सरीखे नेता के दिशा-निर्देश बिना अपने विवेक की कसौटी पर कसे-मानने के आदी चीनी रहे हैं.
इसी का नतीजा था कि महान सांस्कृतिक क्रांति के उथल-पुथल वाले दौर में माओ अपने देश को सर्वनाशक अराजकता की कगार पर धकेल सके, बिना किसी प्रतिरोध का सामना किये. साल 1970 के दशक में एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट जे लिफ्टन ने माओ की जीवनी लिखी थी, जिसका शीर्षक था ‘क्रांतिकारी अमरत्व की तलाश’(क्वेस्ट फॉर रिवोल्यूशनरी इम्मोर्टलिटी) इस समय लगभग इसी मानसिकता का उद्घाटन पुनः होता दिखायी दे रहा है.
भारत के लिए यह सवाल सिर्फ अकादमिक शोध का विषय नहीं है. जब से शी ने सत्ता ग्रहण की है, वह भारत को बड़े राजनयिक कौशल से असंतुलित रखने में कामयाब हुए हैं.
कभी सुलह और मैत्रीपूर्ण सहकार का संकेत देकर, तो कभी अचानक विवादग्रस्त सीमा पर तनाव बढ़ानेवाली भड़काऊ घुसपैठ के जरिये. यह सच है कि भारत के गले में जहर-बुझे मोतियों की माला पहनाने की रणनीति शी के पूर्ववर्ती चीनी शासक-नेता अपना चुके थे, पर इसे कसने का काम शी कहीं अधिक प्रभावशाली तरीके से कर रहे हैं.
नेपाल में चीन का समर्थन-प्रोत्साहन ही ओली (नेपाल के) को दुस्साहसिक भारत-विरोधी तेवर अपनाने का हौसला देता रहा है. यही मालदीव के संदर्भ में भी कहा जा सकता है. डोकलाम के माध्यम से भूटान तथा भारत के बीच दरार पैदा करने की कोशिश भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए.
हाफिज सईद जैसे खूंखार दहशतगर्द को चीन का (शी के कार्यकाल में प्रदान) कवच ही अभयदान दे रहा है. बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका में भारत पर निरंतर दबाव बनाये रखने में शी ने कभी रियायत नहीं की है. इसे भारत की अदूरदर्शिता ही कहा जा सकता है कि वह यह सोचता है कि आर्थिक रिश्तों के पैमाने को ध्यान में रखकर शी बैर-भाव से मुक्त होंगे.
शी ही नहीं, चीन के किसी भी नेता के लिए भारत की अपेक्षा अमेरिका एवं रूस प्राथमिक महत्व के रहेंगे. खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में भारत और चीन की प्रतिद्वंद्विता कई वर्ष तक जारी रहेगी.
चीन शी या किसी भी अन्य सम्राट के अधीन जितना ताकतवर बनेगा, वह भारत के लिए उतनी ही विकट चुनौतियां पेश करता रहेगा. चीन के आक्रामक विस्तारवाद की चपेट में आज सिर्फ भारत ही नहीं है. दक्षिणी चीनी सागर में वियतनाम तथा प्रशांत परिधि में जापान एवं फिलीपींस भी शी जिनपिंग को लेकर आशंकित हैं.
भारत तथा चीन के हितों में बुनियादी टकराव है और रहेगा. शी का एकछत्र तानाशाह के रूप में उदय निश्चय ही हमारे लिए चिंता का विषय है. सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस जटिल विषय में हमारे विकल्प बहुत सीमित हैं.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें