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एक और खुलासा

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टैक्स-हैवन में गुपचुप धन रखने के एक बड़े मामले का खुलासा अब से कोई चार साल पहले ‘ऑफशोर लीक्स’ के नाम से हुआ था. इसमें 600 से ज्यादा भारतीयों के नाम सामने आये. फिर 1100 से ज्यादा भारतीयों के नाम ‘स्विस लीक्स’ के नाम से हुए खुलासे में सामने आये. इन खुलासों को लेकर कोई […]

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टैक्स-हैवन में गुपचुप धन रखने के एक बड़े मामले का खुलासा अब से कोई चार साल पहले ‘ऑफशोर लीक्स’ के नाम से हुआ था. इसमें 600 से ज्यादा भारतीयों के नाम सामने आये. फिर 1100 से ज्यादा भारतीयों के नाम ‘स्विस लीक्स’ के नाम से हुए खुलासे में सामने आये.

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इन खुलासों को लेकर कोई निष्कर्ष सामने आता, इसके पहले ही ‘पनामा पेपर्स’ के नाम से देश के विदेशी बैंक या कंपनी में रकम रखनेवाले लोगों की एक सूची सामने आ गयी. और अब इसी टेक पर एक खुलासा ‘पैराडाइज लीक्स’ के नाम से हुआ है. इसमें एप्पलबाइ नाम के लॉ फर्म से जुटाये गये आंकड़ों के विश्लेषण के बाद टैक्स-हैवेन में धन रखनेवाले 700 से ज्यादा भारतीयों के नाम सामने आये हैं.

इसमें भी राजनीति से लेकर उद्योग जगत और फिल्म इंडस्ट्री की नामी-गिरामी हस्तियों के नाम हैं. कालाधन खत्म करने के दावे के साथ की गयी नोटबंदी के एक साल पूरा होने के चंद रोज पहले ये खुलासा हुआ है, सो यह सवाल तो बनता ही है कि क्या सरकारी स्तर पर इसका कोई संज्ञान लिया जायेगा? टैक्स-हैवेन में धन रखनेवाले धनपतियों के अंतरराष्ट्रीय तंत्र और खुद भ्रष्टाचार को लेकर चली आ रही समझ पर नजर रखें, तो इस सवाल का उत्तर नकारात्मक नजर आयेगा.

मिसाल के लिए, पैराडाइज लीक्स में एक नाम अमेरिकी वाणिज्य सचिव विल्बर रॉस का है. राष्ट्रपति ट्रंप के नजदीकी रॉस उस फर्म के हिस्सेदार हैं, जो रूसी राष्ट्रपति पुतिन के दामाद की कंपनी के साथ व्यापार करती है. जब धनपतियों की पहुंच और पूछ वैश्विक शक्ति तंत्र के इतने अहम मुकाम पर हो, तो आशंका रहेगी कि राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सचमुच टैक्स-हैवेन में धन रखने के बारे में सरकारों के बीच या सरकारों के भीतर कोई कारगर रणनीति बनेगी.

साथ ही, एक मसला भ्रष्टाचार की पहचान, उसके स्वभाव और होनेवाली प्रतिक्रिया से भी जुड़ा है. उदाहरण के तौर पर, अपने देश में छोटा-मोटा, टूटपूंजिया किस्म का भ्रष्टाचार सबकी नजर में होता है. जैसे मिड-डे मील स्कीम या मनरेगा में होनेवाला भ्रष्टाचार. इसकी शासन-प्रशासन में शिकायत की जाती है, मामला अदालतों तक भी पहुंचता है.

भ्रष्टाचार बड़ा लगे, जैसे कि कोल-ब्लॉक का आवंटन और स्पेक्ट्रम की नीलामी, तो नागरिक संगठन, विपक्षी दल और मीडिया के साझे प्रयास से वह राष्ट्रीय फलक पर चिंता का विषय बनता है. टैक्स-हैवेन के गुप्त खातों का मसला अलग है. वह लोगों की नजर में आता है, तब भी जांच की पहल नहीं होती, क्योंकि कानूनी नुक्ते उलझे होते हैं. एक तरफ से कोई उसे भ्रष्टाचार कह सकता है, तो दूसरी तरफ से सफाई दी जा सकती है कि किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है.

बार-बार के ‘लीक्स’ से अहम शख्सियतों को लेकर लोगों में सवाल बने रहते हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार समाधान के लिए निष्पक्ष जांच के प्रयास करेगी और इसके लिए जरूरी अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए तत्पर होगी.

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