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इंटरनेट और बच्चे

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पहले सिनेमा या टीवी को लेकर खबरें आती थीं कि किसी किरदार से प्रभावित होकर किसी बच्चे ने ‘सुपरमैन’ सरीखा स्टंट करने की कोशिश में जान गंवा दी या फिर किसी नौजवान ने कहानी के असर में अपराध कर डाला. यह बात अब सिर्फ सिनेमा या टीवी तक सीमित नहीं रही है. मीडिया जगत के […]

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पहले सिनेमा या टीवी को लेकर खबरें आती थीं कि किसी किरदार से प्रभावित होकर किसी बच्चे ने ‘सुपरमैन’ सरीखा स्टंट करने की कोशिश में जान गंवा दी या फिर किसी नौजवान ने कहानी के असर में अपराध कर डाला. यह बात अब सिर्फ सिनेमा या टीवी तक सीमित नहीं रही है.
मीडिया जगत के तमाम उत्पाद इस इंटरनेटी युग में व्यक्ति की हथेली में सिमट आये हैं. सो, हमारे लिए वक्त मीडिया उत्पादों के असर के बारे में नये सिरे से सोचने का है. यह तथ्य सिद्ध हो चुका है कि इंटरनेट की दुनिया, खासकर कंप्यूटर और स्मार्टफोन पर चलनेवाले खेल बच्चों की शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए घातक हो रहे हैं.
चंद रोज पहले खबर आयी थी कि मुंबई का एक किशोर ब्लू ह्वेल गेम इस हद तक आदी हुआ कि उसने इस खेल में दी गयी चुनौती को स्वीकार करते हुए एक ऊंची मंजिल से छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली. यह किशोर ब्लू ह्वेल गेम का पहला भारतीय शिकार बना. अलग-अलग देशों से इस गेम के चक्कर में किशोरों की मौत की खबरें आ रही हैं. इंग्लैंड के बाल आयुक्त एन लॉन्गफील्ड ने सोशल मीडिया के मालिकान की तीखी आलोचना की है कि वे बच्चों को ज्यादा से ज्यादा इंटरनेट के उपभोग के लिए जुगत लगा रहे हैं. उनकी नजर में बच्चों में ऑनलाइन की लत स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों की आदत की तरह है.
पहले की तुलना में आज मीडिया के उत्पाद कहीं ज्यादा अंतरंग हैं. स्मार्टफोन की मौजूदगी के कारण हम-आप अब पहले की तरह किसी समूह में बैठ कर सिनेमा या टीवी नहीं देखते, स्मार्टफोन के कारण विभिन्न उत्पादों को निजी एकांत में देखने-बरतने का मौका पैदा हुआ है. विचित्र यह भी है कि मीडिया के उत्पाद अपनी प्रकृति में सार्वजनिक होते हैं, लेकिन स्मार्टफोन जैसी युक्ति के कारण उनका उपभोग निजी एकांत की अंतरंगता में हो रहा है. किसी मीडिया उत्पाद की सार्वजनिक आलोचना-समीक्षा उसके ठीक-ठीक आस्वाद के लिए जरूरी होती है, लेकिन ऐसी सार्वजनिक आलोचना इंटरनेटी प्रसार और गति तथा स्मार्टफोन जैसी युक्ति से पैदा अंतरंगता के बीच संभव नहीं है.
शोधों के मुताबिक, बच्चे और किशोरों में इंटरनेट की लत उनके सामाजिक व्यवहार और मनोवैज्ञानिक संरचना पर नकारात्मक असर डाल रही है. तकनीक के द्रुत प्रसार के कारण यह समस्या सिर्फ पश्चिमी देशों की नहीं है. भारत भी तेजी से इसकी चपेट में आ रहा है. इसकी रोकथाम के लिए परिवार, स्कूल और सरकार सबकी तरफ से प्रयास होने चाहिए, अन्यथा इंटरनेट जैसा बदलाव, विकास और मनोरंजन का उम्दा साधन एक बड़ी तबाही का कारण बन सकता है.

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