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पाक में लोकतंत्र फिर कमजोर

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आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर पाकिस्तान एक बार फिर अनिश्चितता के दौर में है. सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को अयोग्य ठहरा दिया है. इसके बाद उन्हें प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकारों को बरखास्त किये जाने का इतिहास पुराना है. वहां अक्सर सेना प्रमुख […]

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आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
पाकिस्तान एक बार फिर अनिश्चितता के दौर में है. सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को अयोग्य ठहरा दिया है. इसके बाद उन्हें प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकारों को बरखास्त किये जाने का इतिहास पुराना है. वहां अक्सर सेना प्रमुख तख्ता पलट करने के बाद नयी पार्टी गठित कर खुद पर लोकतांत्रिक मुलम्मा चढ़ा लेते हैं. लेकिन, इस बार मामला कुछ अलग है. इस बार न्यायपालिका के माध्यम से सरकार का तख्ता पलटा गया है.
भारत के संदर्भ में देखें तो पड़ोसी मुल्क में राजनीतिक अस्थिरता उसके हित में नहीं है. पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शाक्तियों का कमजोर हो जाना और सेना का मजबूत होना शुभ संकेत नहीं है. आपने गौर किया होगा नवाज शरीफ या इसके पहले जब भी किसी राजनेता ने भारत के साथ रिश्ते सामान्य करने की कोशिश की है, सेना ने उसमें पलीता लगाया है. पाकिस्तान में सेना आतंकवादियों को नियंत्रित करती है और ऐसी कोई पहल कामयाब न होने देने के लिए उनका इस्तेमाल करती है.
पाक सेना की हमेशा कोशिश रहती है कि चुना हुआ नेता बहुत लोकप्रिय और ताकतवर न हो जाये. सेना को नवाज शरीफ की प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकातें और रिश्ते सामान्य करने की कोशिशें पसंद नहीं आयीं थीं. कुछ समय पहले पाकिस्तानी अखबार डॉन में एक खबर छपी थी कि नवाज शरीफ ने एक मीटिंग में सेना के अधिकारियों से साफ तौर से कह दिया कि आतंकवादियों की ऐसे ही मदद जारी रही तो पाकिस्तान दुनिया में अलग -थलग पड़ जायेगा. इस पर भारी बावेला मचा. इसके बाद सेना और नवाज शरीफ के बीच तनातनी और बढ़ गयी.
नवाज़ शरीफ ने 2013 चुनाव में बहुमत हासिल कर तीसरी बार पाकिस्तान की सत्ता संभाली थी. लेकिन, विडंबना यह है कि वह देश के अन्य राजनीतिज्ञों की तरह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाते हैं. पिछली बार उनके सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने उनका तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया था. पिछली बार तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी से उन्होंने मेल-मिलाप की कोशिशें की थीं.
इस पर सेना प्रमुख मुशर्रफ ने करगिल में संघर्ष छेड़ दिया था. सेना की सत्ता पर मजबूत पकड़ का अंदाजा इस बात से लगता है कि जब सत्ता में वापसी के बाद नवाज शरीफ ने परवेज मुशर्रफ के खिलाफ तख्ता पलट की साजिश और भ्रष्टाचार के मामले चलाये, तो सेना के दबाव में उन्हें मुशर्रफ को देश से बाहर जाने की अनुमति देनी पड़ी. मुशर्रफ अब बड़े ठाठ से लंदन में रह रहे हैं.
नवाज शरीफ की स्थिति नेशनल असेंबली में काफी अच्छी है. शरीफ के बाद इमरान खान की पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी हैं, जिसने नवाज के खिलाफ मोरचा खोला हुआ है. इमरान पर पाक फौज का हाथ है. ऐसा भी नहीं है कि नवाज शरीफ दूध के धुले हों. उन्होंने और उनके परिवार ने अकूत संपत्ति अर्जित की है. लेकिन, नवाज शरीफ इस हमाम में अकेले नहीं हैं. इमरान खान पर भी विदेशों से धन स्वीकार करने का आरोप है.
एक और दिलचस्प तथ्य है कि नवाज शरीफ पर पनामा लीक से उजागर हुए भ्रष्टाचार के खुलासे का मामला चल रहा है. लेकिन, उन्हें इस आरोप में सत्ता से बेदखल नहीं किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने वजह यह बतायी कि यूएई में बेटे की कंपनी में बिना वेतन के चेयरमैन रहने की बात नवाज ने चुनावी हलफनामे में छुपायी.इस उठापटक के बीच पाकिस्तानी सेना खामोश है जबकि वह सूत्रधार है. नवाज के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच के लिए गठित टीम में आईएसआई और सेना की खुफिया इकाई के लोग थे. तब पाक फौज़ की ओर से दार्शनिक बयान आया था कि जो मुल्क का कानून है, फौज उन्हें पूरा करेगी.
पाकिस्तान में सेना का साम्राज्य फैला हुआ है. वह उद्योग धंधे चलाती है. उसकी अपनी अलग अदालतें हैं. सेना के फौजी ट्रस्ट के पास करोड़ों की संपदा है. अदालतें उसके इशारे पर फैसले सुनाती हैं, अन्यथा जजों को रुखसत कर दिया जाता है. अब तक के सभी तख्ता पलट को वहां के सुप्रीम कोर्ट ने उचित ठहराया है. सेना सत्तारूढ़ दल पर लगाम लगाने के लिए किसी कमजोर विपक्षी दल पर हाथ रख देती है.
अभी इमरान खान की पार्टी को सेना का पूरा समर्थन हासिल है. 1977 में जब जनरल जिया उल हक ने तख्ता पलट कर सत्ता संभाली, तब देश के बड़े नेता पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ कई मामले चला कर उन्हें फांसी पर लटकाया गया. तब नवाज शरीफ जिया के साथ और पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री थे.
माना जाता है कि उन्होंने ही नवाज शरीफ को अलग दल गठित करने को प्रेरित किया, उसके बाद ही मुसलिम लीग (नवाज) का उदय हुआ. 1980 से 90 का दशक पाकिस्तान में भारी उथल पुथल का रहा. इसी दौरान बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ के बीच सत्ता संघर्ष चला. सेना ने कमजोर नवाज शरीफ पर हाथ रख दिया. 1997 में जब नवाज शरीफ दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, तो उनके सेना से रिश्ते खराब हो गये. जब उन्होंने सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ को हटाना चाहा तो उन्होंने नवाज शरीफ का ही तख्ता पलट दिया.
पाकिस्तान में सेना और राजनीतिज्ञों के बीच शह मात के इस खेल का खामियाजा पड़ोसी होने के नाते भारत को भी झेलना पड़ता है. लोकतांत्रिक रूप से चुनी सरकार से संवाद की गुंजाइश रहती है. सेना पर भी थोड़ा बहुत अंकुश रहता है. वह खुलेआम आतंकवादियों को बढ़ावा नहीं दे पाती. लेकिन पाक सेना से भारत सरकार के संवाद की गुंजाइश नहीं रहती है.
अब तक के अनुभव के अनुसार पाकिस्तानी सेना सर्जिकल स्ट्राइक की भाषा ही समझती है. इस पूरे घटनाक्रम से लोकतांत्रिक सरकार कमजोर हो गयी है. हालांकि नवाज शरीफ के करीबी शाहिद अब्बासी को अंतरिम प्रधानमंत्री बना दिया गया है, जो. करीब डेढ़ महीने डमी पीएम बने रहेंगे. इस दौरान नवाज के भाई और पंजाब के सीएम शहबाज शरीफ चुनाव लड़कर सांसद बनेंगे, तब वह सत्ता संभालेंगे. लेकिन राजनीति में डेढ़ महीने का समय बहुत लंबा होता है. ऊंट किस करवट बैठेगा पता नहीं. भारत के दृष्टिकोण से यह घटनाक्रम चिंताजनक है.

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