मानहानि केस में राहुल गांधी को 2 साल की सजा, क्या जायेगी लोकसभा की सदस्यता, जानें क्या कहता है कानून
राहुल गांधी को सजा सुनाये जाने के बाद सबके मन में यह सवाल तैर रहा है कि क्या राहुल गांधी अब सांसद नहीं रहेंगे? चूंकि कोर्ट ने उन्हें दो साल की सजा सुनायी है और अगर उन्हें ऊपरी अदालत से राहत नहीं मिली तो क्या उनकी संसद की सदस्यता रद्द होगी?
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राहुल गांधी को कोर्ट ने मानहानि के केस में दो साल की सजा सुनाई है. उन्हें यह सजा ‘मोदी सरनेम’ पर टिप्पणी करने के मामले में सुनायी गयी है. हालांकि बाद में कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी और 30 दिनों तक सजा पर रोक लगा दी है. इस अवधि में राहुल गांधी ऊपरी अदालत में गुहार लगा सकते हैं.
क्या राहुल गांधी की सदस्यता जायेगी?
राहुल गांधी को सजा सुनाये जाने के बाद सबके मन में यह सवाल तैर रहा है कि क्या राहुल गांधी अब सांसद नहीं रहेंगे? चूंकि कोर्ट ने उन्हें दो साल की सजा सुनायी है और अगर उन्हें ऊपरी अदालत से राहत नहीं मिली तो क्या उनकी संसद की सदस्यता रद्द होगी? सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार अगर किसी सांसद या विधायक को किसी आपराधिक मामले में दो साल से अधिक की सजा होती है तब उनकी सदस्यता पर खतरा उत्पन्न होता है.
राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए बना अधिनियम
गौरतलब है कि राजनीति का अपराधीकरण रोकने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी किया है, जिसके तहत जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 कोर्ट द्वारा दोषी घोषित राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकता है. हालांकि जिन नेताओं पर सिर्फ मुकदमा चल रहा हो, उन्हें चुनाव लड़ने से यह अधिनियम नहीं रोकता है.
दो साल से अधिक की सजा पर सदस्यता होती है रद्द
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (1) और (2) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि कोई सांसद या विधायक हत्या, बलात्कार, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करना, आतंकवादी गतिविधि या संविधान का अपमान करना जैसे अपराधों में शामिल हो तो उसकी संसद और विधानसभा की सदस्यता रद्द हो जायेगी. साथ ही इसी अधिनियम की धारा 8(3) में प्रावधान है कि इन अपराधों के अलावा अन्य अपराधों के लिए भी दोषी ठहराये जाने और दो वर्ष से अधिक की सजा सुनाये जाने के बाद किसी विधायक या सांसद की सदस्यता रद्द हो सकती है और छह वर्ष तक उसके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग सकता है. अपनी सीट पर बने रहने के लिए यह अधिनियम सदस्यों को तीन महीने तक का समय देता है, इस अवधि के अंदर उन्हें ऊपरी अदालत में गुहार लगानी होती है अन्यथा सजा सुनाये जाने के बाद उनकी सदस्यता रद्द हो सकती है.
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