‘राज्यों के पास फ्रीबीज के लिए धन हैं, जजों की सैलरी-पेंशन के लिए नहीं’, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
National News : भारत में प्रतिवर्ष 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस, यानी National Forest Martyrs Day मनाया जाता है. देश के वनों और वन्यजीवों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों के बलिदान का सम्मान करने के लिए देश में इस दिवस को मनाने की शुरुआत हुई थी. वनों की महत्वपूर्ण भूमिका और उनकी रक्षा की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस दिन पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, शैक्षणिक संस्थानों और संगठनों द्वारा देशभर में विभिन्न तरह की गतिविधियों और कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं.
2013 में हुई थी इस दिवस को मनाने की शुरुआत
वर्ष 2013 के 11 सितंबर को पहली बार पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश में National Forest Martyrs Day मनाने की आधिकारिक शुरुआत की थी. इस दिवस के चुनाव के पीछे इस दिन का ऐतिहासिक महत्व होना है. वास्तव में 11 सितंबर ही वह दिन था, जब राजस्थान के खेजड़ली गांव में नरसंहार हुआ था. यही वह दिन था जब बिश्नोई समुदाय के सदस्यों ने मारवाड़ साम्राज्य में पेड़ों की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया था. यह दिन हमारे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के महत्व की भी याद दिलाता है.
जब एक ग्रामीण महिला अमृता देवी भिड़ गयी महाराजा अभय सिंह के सैनिकों से और फिर शुरू हुआ टकराव
11 सितंबर, 1730 का दिन उस भयावह दिवस की याद दिलाता है जब खेजड़ली के अनेक वन प्रेमियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. वास्तव में जोधपुर के तत्कालीन महाराजा अभय सिंह एक नये महल का निर्माण करा रहे थे. जिसके लिए उन्हें खेजड़ी के लकड़ी की जरूरत थी. इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए महाराजा ने राजस्थान के थार जिले के खेजड़ली गांव के खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया. राजा के आदेश का विश्नोई समाज द्वारा पुरजोर विरोध किया गया, परंतु उसकी मांग अनुसुनी कर राजा के आदेश का पालन हुआ और कई सारे पेड़ काट डाले गये. वास्तव में खेजड़ी के पेड़ बिश्नोईयों की जीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत थे और उनकी पारिस्थितिक प्रतिबद्धता का प्रतीक भी. पेड़ों के कटने से ग्रामीण क्षुब्ध हो उठे. अन्य पेड़ों को कटने से बचाने के लिए एक बिश्नोई महिला अमृता देवी और उनकी तीनों बेटियां खेजड़ी के पेड़ों से लिपट गयीं. बिना इस बात से डरे कि पास ही कुल्हाड़ी लिये पेड़ काटने पर आमादा महाराजा अभय सिंह के सैनिक खड़े थे. अमृता देवी और उनकी बेटियां द्वारा अपनी जान की परवाह किये बिना पेड़ों से लिपटने के साहसी कार्य का यह समाचार तेजी से आसपास फैल गया. इसके बाद वहां जल्द ही ग्रामीणों की भीड़ एकत्रित हो गयी, जो पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान देने को तैयार थी. इस प्रकार बिश्नोइयों और महाराजा के सैनिकों के बीच टकराव बढ़ गया. परिणामस्वरूप महाराजा के सैनिकों द्वारा भयानक नरसंहार को अंजाम दिया गया, जिसमें 363 से अधिक बिश्नोई पेड़ों की रक्षा करने के प्रयास में मारे गये.