‘राज्यों के पास फ्रीबीज के लिए धन हैं, जजों की सैलरी-पेंशन के लिए नहीं’, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
जम्मू: पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के बाद महबूबा मुफ्ती पर भी शिकंजा कसा जा सकता है. टेरर फंडिंग में जमात ए इस्लामी और हुर्रियत कांफ्रेंस के कई लोगों को जांच के घेरे में लिया गया है. महबूबा का इन संगठनों से करीबी रिश्ता रहा है. महबूबा ने जमात ए इस्लामी पर कार्रवाई का विरोध भी किया था. सुरक्षा एजेंसियां मामले की जांच कर रही हैं. संदिग्धों के रिकार्ड खंगाले जा रहे हैं.
फारुक जम्मू कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के घोटाले में जांच का सामना कर रहे हैं. इस बीच पीपुल्स एलायंस के सदस्यों ने मिलकर गुपकार समझौते पर आगे की रणनीति तय की है. फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि यह कोई देश विरोधी जमात नहीं है. पिपुल्स एलायंस गुपकार समझौते के लिए बनी सिमति में फारूक अब्दुल्ला को अध्यक्ष होंगे और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को उपाध्यक्ष बनाया गया है.
नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के अलावा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस एवं अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत कुछ संगठन इस एलायंस में शामिल हैं. इन सभी पार्टियों ने इस समझौते का नाम गुपकार से बदलकर पीपुल एलायंस गुपकार समझौता करने पर आम सहमति जताई थी. संगठन का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के लिए हमारी लड़ाई जारी रहेगी. जम्मू-कश्मीर की समस्या का समाधान राजनीतिक है.
क्या है गुपकार समझौता
चार अगस्त 2019 को फारूक अब्दुल्ला के गुपकार स्थित आवास पर एक सर्वदलीय बैठक हुई थी. यहां एक प्रस्ताव जारी किया गया था, जिसे गुपकार समझौता कहा गया. इसके अनुसार पार्टियों ने निर्णय किया कि वे जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को बनाए रखने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करेंगे. गुपकार समझौते के अगले ही दिन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया गया था और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख तो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया था.
Posted By: Pawan Singh